13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जलायें मट्टिी के दीये ..किसी को रोटी मिलेगी और आपको सुकून

जलायें मिट्टी के दीये ..किसी को रोटी मिलेगी और आपको सुकून पेज तीन – इस दीपावली में अपने घर को रौशन करने की तैयारी में जुटे हैं तो अपने घर को मिट्टी के दीयों से रौशन करें. चाइनीज कृत्रिम प्रकाश उपकरणों से तौबा कर लें, क्योंकि मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति में रचे-बसे हैं. कुछ […]

जलायें मिट्टी के दीये ..किसी को रोटी मिलेगी और आपको सुकून पेज तीन – इस दीपावली में अपने घर को रौशन करने की तैयारी में जुटे हैं तो अपने घर को मिट्टी के दीयों से रौशन करें. चाइनीज कृत्रिम प्रकाश उपकरणों से तौबा कर लें, क्योंकि मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति में रचे-बसे हैं. कुछ नहीं तो बाजार में खरीदारी से पहले मिट्टी सने उन हाथों को याद कर लें, जो अपने हुनर से खुद के लिए रोटी जुटाते हैं. हम उनके चेहरों पर कुछ पल के लिए ही सही, मुस्कान तो दे ही सकते हैं.फोटो न. 5 गोपालगंज . दीपावली में अपने घर को रौशन करने की तैयारी में जुटे हैं तो अपने घर को मिट्टी के दीयों से रौशन करें. चाइनीज कृत्रिम प्रकाश उपकरणों से तौबा कर लें, क्योंकि मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति में रचे-बसे हैं. कुछ नहीं तो बाजार में खरीदारी से पहले मिट्टी सने उन हाथों को याद कर लें, जो अपने हुनर से खुद के लिए रोटी जुटाते हैं. हम उनके चेहरों पर कुछ पल के लिए ही सही, मुस्कान तो दे ही सकते हैं. शायद हम उस बचपन को भूल चूके हैं. जब अपने बड़ों का हाथ पकड़े गांव के एक छोर पर बने उस घर में जाते थे, जहां मिट्टी की चाक घूमा करते थे. उस चाक पर मिट्टी साकार होती थी. घड़े-सुराही और भी न जाने क्या – क्या बना करते थे. हम उन्हें घर लाते थे. दिन बदले, मार्केट में कृत्रिम चीजें आती गयी. मिट्टी के बरतन बिसरते गये. फिर भी दीपावली व दीयों का नाता तो बरकरार रहा, पर यह नाता भी टूटता गया. चाक धीमा पड़ता गया अब तो दीपावली पर भी हमें उन हाथों की याद नहीं आती..पर उन हाथों ने दीये गढ़ना नहीं छोड़ा है. उस आस को नहीं छोड़ा है कि उनके दिन लौटेंगे. हमारी सोच बदलेगी. शायद वो वक्त आ गया है. बस हमें यही करना है कि बाजार की ऑर्टिफिशियल चीजों की जगह दीये खरीदने होंगे. इससे इन्हें बनाने वाले को अपना रोजगार आगे भी बढ़ाने का संबल मिलेगा, और बदले में हमें किसी की मदद करने का सुकून. टिकाऊ भी तो नहीं होते चाइनीज सामान ! चाइनीज प्रकाश उपकरण महंगे भी होते हैं. जितनी भी खरीदारी करते हैं ये रुपये पड़ोस के मुल्क को जाते हैं और उस देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. सामान टिकाऊ भी नहीं होते. एक बार उपयोग में लाये जाने के बाद दम तोड़ देते हैं. ऐसे में आपके खर्च किये गये रुपया बेकार हो जाते हैं. ये उपकरण नष्ट भी होते हैं तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. मायूस हैं..कहते हैं-बेरोजगारी बढ़ी हैशहर के कैथवलिया मोहल्ले के मिट्टी बरतन व्यवसायी का कहना है कि बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. आज मिट्टी के दीये की जगह लोग केरोसिन का दीया या फिर चाइनीज झालर, मोमबत्ती या बल्ब जलाते हैं. ऐसे में मिट्टी के बरतन से जुड़े व्यवसायी दिन व दिन बेरोजगार होते जा रहे हैं. मिट्टी के दीये पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं अन्य कई मायनों में भी फायदेमंद है. बिजली की भी बचत, पर्यावरण भी सुरक्षित दीये खरीदने की हमारी पहल मिट्टी के बरतन के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए रोजगार का अवसर प्रदान तो करता ही है उनके भी घर को रौशन करने में मदद करता है. मिट्टी के दीये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि दीया शुद्ध घी या सरसों तेल से जलायें तो माना जाता है कि मां लक्ष्मी भी खुश होती है. ऐसे में इस साल मिट्टी के दीये की अधिक से अधिक खरीदारी करें ताकि इस व्यवसाय से जुड़े गरीबों का घर भी रौशन हो सके और उनके बच्चे भी नये कपड़े पहन सकें. मिट्टी के कारीगरों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी तो देश भी सुदृढ़ होगा. बिजली की खपत तो कम होगी ही. कीमत मिला लें, फिर तय करें मिट्टी के छाटे दीये (सैकड़ा) 60-70मिट्टी के बड़े दीये (सैकड़ा) 270-300चाइनीज दीया (10 पीस) 140-250चाइनीज मोमबत्ती (10 पीस) 90-150 चाइनीज झालर 150-200चाइनीज झूमर 400-600

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें