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साहत्यि अकादमी की मौन तोड़ा, कलबुर्गी की हत्या की निंदा की

साहित्य अकादमी की मौन तोड़ा, कलबुर्गी की हत्या की निंदा की नयी दिल्ली : साहित्य अकादमी के बाहर दो धडों में बंटे रचनाकारोंं के विरोध प्रदर्शन के बीच अकादमी ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की और इसके विरोध स्वरूप पुरस्कार लौटा रहे लेखकों से इसे वापस लेने की […]

साहित्य अकादमी की मौन तोड़ा, कलबुर्गी की हत्या की निंदा की नयी दिल्ली : साहित्य अकादमी के बाहर दो धडों में बंटे रचनाकारोंं के विरोध प्रदर्शन के बीच अकादमी ने कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की और इसके विरोध स्वरूप पुरस्कार लौटा रहे लेखकों से इसे वापस लेने की अपील की. अकादमी के कार्यकारी मंडल की शुक्रवार यहां आपात बैठक हुई, जिसमें हाल के घटनाक्रम को लेकर विचार-विमर्श किया गया. बैठक में साहित्यिक इकाई ने इस्तीफा देनेवाले सदस्यों से इस्तीफे वापस लेने की भी अपील की.बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया, अकादमी कलबुर्गी की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करती है और अन्य बुद्धिजीवियों व विचारकोेें की हत्या पर शोक प्रकट करती है. यह भारतीय भाषाओं की एकमात्र स्वायत्त संस्था के रूप में देश के किसी भी हिस्से में लेखकों के खिलाफ किसी भी तरह के अत्याचार या उनके प्रति क्रूरता की कड़े शब्दों में निंदा करती है. अकादमी ने केंद्र और राज्य सरकाराें से अपराधियाें के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का अनुरोध किया और कहा कि भविष्य में लेखकोें की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये. कार्यकारी मंडल के सदस्य कृष्णास्वामी नचिमुतू ने कहा, अकादमी कलबुर्गी की हत्या की कड़ी निंदा करती है और राज्य सरकारों व केंद्र सरकार से भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कदम उठाने की अपील करती है. बैठक में अकादमी के कार्यकारी मंडल के 24 सदस्यों में से 20 शामिल हुए. डोंगरी के ललित मंगरोत्रा, अंगरेजी के के सच्चिदानंदन, नेपाली के प्रेम प्रधान और मराठी के भालचंद्र नेमाडे इसमें शामिल नहीं हुए. साहित्य अकादमी की आपात बैठक से पहले यहां रचनाकारों और उनके समर्थकों ने मुंह और हाथ पर काली पट्टी बांध कर एकजुटता रैली निकाली और इन लोगों ने अकादमी के अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा. कार्यकारी मंडल के सदस्य और उर्दू लेखक चंद्रभान ख्याल ने कहा, साहित्यकारों के जान-माल की सरकार को फिक्र करनी चाहिए और किसी को भी अपनी बात कहने से रोका नहीं जाना चाहिए. इसके साथ ही अमन और भाईचारे का माहौल बरकरार रहना चाहिए. कभी भी साहित्य को सियासत का अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए. कवि केकी एन दारुवाला ने कहा, हम लेखकों और कलाकारों के विरोध में बढ़ रही असहिष्णुता देख रहे हैं, जैसा कि पुणे के फिल्म संस्थान में हुआ. पुरस्कार लौटाये जा रहे हैं. कुछ लोगों का दावा है कि यह ‘गढ़ा’ जा रहा है. क्या गढ़ा जा रहा है? ऐसी कौन-सी फैक्टरी है, जहां लेखक गढ़े जाते हैं ? अंगरेजी की लेखक गीता हरिहरन ने कहा, ‘‘यह दुखद दिन है कि लेखकों और कलाकारों को इतने पुलिस बल के साथ उस संस्थान तक आना पड़ रहा है, जो हमारा खुद का है. प्रदर्शन सिर्फ कलबुर्गी के साथ हुई घटना के खिलाफ नहीं है, बल्कि लेखकों के साथ हो रही घटनाओं के खिलाफ है. अकादमी के सूत्र ने बताया कि सुबह बैठक शुरू होने पहले अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने इस बात पर अफसोस जताया था कि लेखकों की संस्था में पुलिस बल बुलाना पड़ रहा है. एक अन्य समूह ने जनमत की अगुआई में जवाबी प्रदर्शन किया, जिसमें अभाविप के कार्यकर्ता शामिल थे. उन्होंने लेखकों द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घटनाओं को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया. इस बैठक में के सच्चिदानंदन शामिल नहीं हुए, जिन्होंने यह कहते हुए साहित्य अकादमी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था कि यह ‘‘लेखकों के साथ खड़े होने का अपना दायित्व निभाने और संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने में विफल रही है. अकादमी अब 17 दिंसबर को इस संबंध में बैठक करेगी. 36 लेखकों के अकादमी पुरस्कार लौटाने के बाद यह आपात बैठक बुलायी गयी थी. पुरस्कार लौटानेवाले लेखकों में कृष्णा सोबती, काशीनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश, नयनतारा सहगल, मुनव्वर राणा और के सच्चिदानंदन शामिल हैं.

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