बदल गये पर्व के मायनेफोटो न.14संवाददाता. गोपालगंजयाद है वह जमाना जब आठ बजते हीं युवकों की टोलियां बाल्टी में पांक भरकर निकल पड़ती थी, जो ही मिला बस क्या था कीचड़ से सराबोर हो गया जहां गये, दो चार पुआ पकवान मिल गया. दो बजे तक यह हुड़दुंग चलता था. फिर रंग की फुहार होती थी. दोस्त, भौजाई भी इस हुड़दुंग में पीछे नहीं थे. होली के अवसर अपने गुजरे जमाने की होली याद कर असील में खो जाते है बयोवृद्ध दीनानाथ तिवारी कहते हैं तीन दशक में सब कुछ बदला पर्व के माचने हीं बदल गये सबके साथ स्नेह, भाव था आज कटुता है, एक दूसरे से भय है. प्रेम का स्थान दुश्मनी पकड़ लिया संस्कृति अश्लिलता के रंग में ढ़क गया. होली तो है लेकिन अब न भाव रहा न स्नेह. नयी पीढ़ी एक ऐसी लकीर खींच रही है कि होली का रूप हीं विकृत हो गया है. अब तो पर्व के दिन लोग मिलने जुलने से भी कतराते हैं
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अब के होली में न भाव रहा न स्नेह (असंपा)
बदल गये पर्व के मायनेफोटो न.14संवाददाता. गोपालगंजयाद है वह जमाना जब आठ बजते हीं युवकों की टोलियां बाल्टी में पांक भरकर निकल पड़ती थी, जो ही मिला बस क्या था कीचड़ से सराबोर हो गया जहां गये, दो चार पुआ पकवान मिल गया. दो बजे तक यह हुड़दुंग चलता था. फिर रंग की फुहार होती […]
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