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बड़ी मुश्किल से बची जान

भोरे : रात का गहरा सन्नाटा, अंधेरी रात, कदम जहां भी पड़ते, वहां लाश ही लाश पड़ी होती. फिर भी जिंदगी के लिए एक संघर्ष जारी था, जो दृश्य खुली आंखों से दिख रहा था. उसे याद करने के बाद रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. स्थिति इतनी भयावह थी कि हरिद्वार पहुंचने के बाद […]

भोरे : रात का गहरा सन्नाटा, अंधेरी रात, कदम जहां भी पड़ते, वहां लाश ही लाश पड़ी होती. फिर भी जिंदगी के लिए एक संघर्ष जारी था, जो दृश्य खुली आंखों से दिख रहा था. उसे याद करने के बाद रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. स्थिति इतनी भयावह थी कि हरिद्वार पहुंचने के बाद भी लाशों से पीछा नहीं छूटा.

मानो एक झटके में सब कुछ तबाह हो गया हो. यह कहना है लाशों के बीच से निकल आये भोरे के आधा दर्जन तीर्थ यात्रियों का. जैसे ही यह तीर्थ यात्री भोरे पहुंचे कि उनकी आवास पर शुभचिंतकों की भीड़ उमड़ पड़ी. ऐसे में ‘प्रभात खबर’ ने उन तीर्थ यात्रियों से यह जानने की कोशिश की कि आखिर किस संघर्ष की बदौलत वे आज वापस भोरे लौटे.

इससे पूर्व यह बता दें कि भोरे से लगभग आधा दर्जन लोग 13 जून को हरिद्वार पहुंच गये. जो तीर्थ यात्री ट्रेन से गये थे, उनमें भोरे गांव के विश्वनाथ मिश्र, उनकी पत्नी कलावती देवी, बहू नीलम देवी, रामाशीष प्रसाद, रवि प्रसाद एवं भोजिया देवी शामिल थे. 13 जून को हरिद्वार पहुंचने के बाद वे लोग 14 जून को यमुनोत्री गये, जहां जानकी पट्टी में विश्रम किया. 15 जून को यमुनोत्री दर्शन के बाद उसी दिन शाम में गंगोत्री दर्शन की योजना थी.

तीर्थ यात्री विश्वनाथ मिश्र ने बताया कि रास्ते में ब्रह्मखाल के पास पुलिस ने उन्हें रोक दिया. इन लोगों को उत्तर काशी के धरातु में जाना था, जहां इनके मित्र कॉलेश्वर पंडा रहते थे. काफी कोशिश की, इसके बाद भी उत्तराखंड पुलिस ने उन्हें जाने से रोक दिया. बताया गया कि आगे भारी बारिश के कारण तबाही मची है.

सुबह जैसे ही इन लोगों की नींद खुली, पुन: सूचना मिली कि धरातु का अस्तित्व समाप्त हो चुका है. जिस मित्र के यहां जाना था. उनका घर भी जमींदोज हो गया. इससे भी विकराल स्थिति उस जगह की होने लगी, क्योंकि यमुना नदी का पुल पानी में बह गया. विश्वनाथ मिश्र एवं उनके सभी साथियों ने अपनी खुली आंखों से उस मौत के मंजर को देखा, जहां नदी के बीच गाड़ियों एवं लाशों का तांता लगा था. उक्त लोग नया गांव पहुंचे, जहां पहुंचते-पहुंचते उनकी स्थिति बिगड़ने लगी और विश्वनाथ की पत्नी कलावती देवी की स्थिति काफी खराब हो गयी.

खराब स्थिति को देख कर जब उन लोगों ने सामने के एक मकान में शरण लेने की कोशिश की, तब तक उनकी आंखों के सामने वह मकान यमुना नदी में गिर पड़ा. मकान के अंदर 19 लोग थे, जिनमें से दो लोगों ने किसी तरह अपनी जान बचायी, लेकिन 17 लोगों की मौत उनकी आंखों के सामने हो गयी.

इस आपात स्थिति में नया गांव के डॉक्टर, जो पटना के रहने वाले है, उन्होंने अपने यहां शरण देते हुए कलावती देवी का इलाज भी किया. स्थिति बदतर हो चुकी थी, क्योंकि वहां पानी का बोतल 15 की जगह 80 रुपये में बिक रहा था. पेट की आग शांत करने के लिए एक हजार में पारले जी के चार पैकेट खरीदे गये. वहां से उनलोगों को सेना के जवानों ने बाहर निकाला.

किसी तरह वे लोग हरिद्वार पहुंचे. शांति कुंज के पास गंगा नदी से उनकी आंखों के सामने 87 लोगों के शवों को निकाला जा चुका था. भोरे पहुंचने के बाद भी कलावती देवी स्थिति काफी गंभीर है. विश्वनाथ मिश्र बताते हैं कि यह त्रसदी मनुष्य द्वारा प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा है. फिलहाल सभी तीर्थ यात्री सदमे में हैं.

* सिसकियों के बीच से बची है जान
।। अरुण कुमार मिश्र ।। गोपालगंज : आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा था. गले से आवाज बाहर नहीं आ रही थी. बड़ी मुश्किल से मोबाइल पर अपनी रूह कंपाने वाली व्यथा सुना कर फफक पड़े. सात दिनों तक चारों तरफ सैकड़ों शवों के बीच यह दंपती भगवान के भरोसे भूख और प्यास से तड़प रहे थे.

अंतत: आर्मी वालों की नजर सातवें दिन पड़ी और उन्हें निकाल कर हरिद्वार पहुंचाया गया. मैं बात कर रहा हूं उचकागांव थाना क्षेत्र के दहीभत्ता गांव के निवासी तथा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक दीनानाथ तिवारी के पुत्र अरुण तिवारी तथा उनकी सुनीता तिवारी की. 16 जून से ही इन लोगों का संपर्क कटा हुआ था.

बड़ी खुशी के साथ सात लोगों के साथ केदारनाथ यात्रा पर देवभूमि गये थे, जहां 16 जून को दर्शन करने के बाद लौटने के दौरान गौरी कुंड पहुंचने से पूर्व ऐसी आफत आयी कि इनके साथ चलने वाले लोग कहां हैं इनको भी पता नहीं. ऐसी आफत जीवन में कभी सुनी तक नहीं थी. उर्दू कॉलेज गोपालगंज के प्रो अरुण तिवारी अपनी पत्नी के साथ पहाड़ के बीच किसी तरह जीवित बचे रहे. अरुण तिवारी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए फ फक पड़ते थे.

उनकी श्रद्धा थी जिससे भोलेनाथ ने इनकी जान बख्श दी है. उन्होंने बताया कि साथ गये पांच लोग गोपालगंज के ही हैं, जिनका आज तक कोई पता नहीं चल पाया है. वे बार-बार प्रशासन से पहल करने की मांग करते रहे.

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