जेल में कैदियों के जीवन परिवर्तन के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी महाविद्यालय की एपी कॉलोनी के सेंटर में पत्रकारों को संबोधित करते हुए पंचम सिंह ने कहा कि हमने अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण पूरे परिवार को त्याग कर लोगों से बदला लेने के लिए हथियार उठाया था, पर बाद में हमें सब कुछ खोने के बाद समझ में आया है इसलिए बिहार की जेलों में अपनी जीवन में घटित घटनाओं को बता कर लोगों को शांति मार्ग अपनाने की सलाह दे रहे हैं. अपनी जीवन की घटनाओं के बारे में श्री सिंह ने कहा कि चंबल के 556 डाकुओं के साथ उनकी पूरी टीम ने जयप्रकाश नारायण की सलाह पर आत्मसमर्पण किया था. उन्हें खुली जेल में भोपाल के मोगावली में रखा गया.
कोर्ट ने उन्हें फांसी की सजा दी थी, जिसे सरकार की पहल पर माफ कर दिया गया था. उस वक्त के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ईश्वरीय विश्वविद्यालय के लोगों को डाकुओं के विचार में बदलाव लाने की सलाह दी थी. इसके बाद लगातार तीन साल तक हमलोग को इसकी जानकारी जेल में ही दी जाने लगी. विचार व व्यवहार में बदलाव के कारण सरकार ने आठ साल की सजा के बाद छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि ज्ञान व राजयोग के प्रभाव से कोई भी अपने कुविचार को त्याग करने के विवश हो जायेगा, यह हमारा विश्वास है. इस मौके पर केंद्र संचालिका ब्रह्माकुमारी सुनीता बहन मौजूद थीं.