गया : पब्लिक लाइब्रेरी में रविवार की शाम आचार्य शिवपूजन सहाय जयंती समाराेह सह कवि गाेष्ठी आयाेजित हुई. इसकी अध्यक्षता डॉ राम सिंहासन सिंह ने की. इस माैके पर मगध विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ वंशीधर लाल ने आचार्य शिवपूजन सहाय की जीवनी व साहित्यिक अवदानाें की चर्चा की. उन्हें हिंदी साहित्य में आंचलिक कहानियाें व उपन्यास का प्रणेता बताया.
उन्हाेंने कहा वे कितने ही रचनाकाराें के संशाेधन व परिमार्जन किये. यहां तक कि जयशंकर प्रसाद की कामायनी, प्रेमचंद की रंगभूमि व गाेदान जैसे उपन्यास का भी परिमार्जन किया. मारवाड़ी सुधार पत्रिका से पत्रकारिता में प्रवेश करने वाले आचार्य श्री सहाय ने ‘हिमालय’, ‘बालक’ सहित कई पत्रिकाआें का संपादन किया. महज मैट्रिक की डिग्री रहने के बाद भी उनके पास विलक्षण प्रतिभा थी. वह 1950-59 तक बिहार राजभाषा परिषद, पटना के अध्यक्ष भी रहे. इस माैके पर आयाेजित कवि गाेष्ठी में नाैशाद नादां ने अपनी रचना ‘सरहद पे नाैजवान अकेले नहीं हाे तुम…’, पढ़कर सुनाया.
राजीव रंजन ने आजादी कविता में ‘अस्सी बरस की बूढ़ी हड्डियाें में, जब आजादी बिजली बन समायी थी…’ पढ़ा. कुमार कांत ने ‘जिंदगी माैत की अर्चना कर रही, वीरता पंथ की सर्जना कर रही…’हरेंद्र गिरि शाद ने ‘माना कि तेरा साया मेरे कद से बड़ा है, कि तू कभी मेरे बराबर नहीं हाेगा…’सुनाया. इसके अलावा सुरेंद्र पांडेय साैरभ, खालिक हुसैन परदेशी, बैजू सिंह, अनंद धीरा अमन, मुंद्रिका सिंह, राेशन कुमार आदि ने कविताएं पढ़ीं.