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विडंबना: चारों ओर से पहाड़ व जंगल से घिरा है घाघर गांव, पानी के लिए गांव छोड़ रहे लोग

माेहड़ा: चारों ओर से जंगल व पहाड़ से घिरे माेहड़ा प्रखंड की तेतर पंचायत के घाघर गांव में जीवन कभी आसान नहीं रहा. गांव तक पहुंचने का जंगल से होकर एक ही रास्ता है. अतरी-जेठियन मुख्यमार्ग से करीब दाे किलाेमीटर अंदर बसे गांव में गाड़ी-वाहन, तो दूर की बात है, सही-सलामत पैदल पहुंच पाना भी […]

माेहड़ा: चारों ओर से जंगल व पहाड़ से घिरे माेहड़ा प्रखंड की तेतर पंचायत के घाघर गांव में जीवन कभी आसान नहीं रहा. गांव तक पहुंचने का जंगल से होकर एक ही रास्ता है. अतरी-जेठियन मुख्यमार्ग से करीब दाे किलाेमीटर अंदर बसे गांव में गाड़ी-वाहन, तो दूर की बात है, सही-सलामत पैदल पहुंच पाना भी मुश्किल. घाघर में 35 घर आबादी है. यादव, मांझी व राजवंशी जाति के लाेग रहते हैं. यह राजस्व गांव बिकैपुर का टाेला है. बिकैपुर घाघर से साढ़े चार किलाेमीटर दूर है.
आज पूरा गांव पानी की तंगी झेल रहा है. यह साल दर साल होनेवाली परेशानी है. पानी की तलाश में अधिकतर लोग गांव छोड़ कर चले जाते हैं. ईंट-भट्ठे पर रोजी-रोटी की तलाश में. बचे-खुचे लोग दो किलोमीटर पैदल चल कर तेतर से पानी लाते हैं. गांव में प्रशासनिक व सरकारी स्तर पर कोई सुविधा नहीं है. गांव में एक चापाकल तक नहीं है. एक कुआं भी है, तो जलस्तर इतना नीचे कि गांववालों के पास उतनी लंबी रस्सी ही नहीं है.
गांववालों को नहीं था किसी पर भरोसा
सात अप्रैल को गांव के जंगलों में जब आग लगी, तो स्थिति भयावह हो गयी. गांववाले चारों ओर से घिर गये थे. उन्हें भी इस बात का भान था कि अफसरों को उनके गांव के बारे में जानकारी नहीं है. उसकी भौगोलिक स्थिति साफ नहीं है. उन्हें न तो दमकल विभाग से उम्मीद थी, न ही पुलिस से. गांव में पानी भी नहीं कि सामूहिक प्रयास से वे आग पर काबू पा सकें. इस परिस्थिति में गांववाले गांव छोड़ कर निकल गये. हालांकि, बाद में वन विभाग के अधिकारियों ने माथापच्ची कर आग पर काबू पाया.

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