गया: माओवादियों से साठ-गांठ, सीआरपीएफ से संबंधित जानकारी लीक करने सहित अन्य मामलों के आरोपित सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट संजय कुमार यादव को बाराचट्टी कैंप से वापस गया शहर स्थित सीआरपीएफ की 159वीं बटालियन के मुख्यालय बुला लिया गया है.
शनिवार को सीआरपीएफ के एक वरीय अधिकारी ने बताया कि सहायक कमांडेंट के विरुद्ध इमामगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई है. पुलिस जांच कर रही है. अनुसंधान की प्रक्रिया बाधित न हो, इस कारण उसे मुख्यालय क्लोज कर दिया गया है. जांच से पहले उसकी गिरफ्तारी संभव नहीं है. हालांकि, सहायक कमांडेंट की गिरफ्तारी को लेकर शुक्रवार की शाम से ही उधेड़बुन बनी हुई है. एसएसपी निशांत कुमार तिवारी व अन्य सभी पुलिस अधिकारी कुछ भी स्पष्ट बताने को तैयार नहीं हैं. सभी जवाब देने से कतरा रहे हैं.
पुलिस पर भी सवाल
प्राथमिकी दर्ज होने के बाद सीआरपीएफ व पुलिस पदाधिकारियों में तरह-तरह की चर्चा शुरू हो गयी है. इसी में यह बात सामने आयी है कि करीब पांच वर्ष पूर्व आमस थाने में पोस्टेड दो पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध भी ऐसे ही आरोप लगे थे. लेकिन, उन पर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति ही हुई थी. हालांकि, इस मामले पर भी अधिकारी चुप हैं. शायद, इस कार्रवाई से सीआरपीएफ खेमे में नाराजगी भी है. हाल ही में उसे राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया था. लेकिन, प्राथमिकी दर्ज होने से उसकी साख को आंच आयी है.
कांबिंग ऑपरेशन पर असर!
इस कार्रवाई का कांबिंग ऑपरेशन पर भी असर पड़ सकता है. सीआरपीएफ व पुलिस के बीच की दूरियां बढ़ सकती हैं. कांबिंग ऑपरेशन में इसका प्रभाव पड़ेगा. सीआरपीएफ के कारण ही अब वरीय अधिकारियों को बांकेबाजार, इमामगंज, मैगरा, डुमरिया सहित अन्य नक्सलग्रस्त इलाकों में जाने के लिए मुख्य मार्गो पर आरओपी नहीं लगाया जाता. पुलिस की इस कार्रवाई से सीआरपीएफ मर्माहत है. इसके वरीय अधिकारियों के एक वर्ग का मानना है कि सहायक कमांडेंट पर पुलिस को संदेह था, तो इससे उन्हें अवगत कराना चाहिए था. सीआरपीएफ खुद इसे गंभीरता से लेती है और कार्रवाई करती.
नीलकमल बने आइओ
एसटीएफ के अधिकारी राजीव कुमार द्वारा इमामगंज थाने में सहायक कमांडेंट संजय कुमार यादव व पाकरडीह (इमामगंज) निवासी प्रदीप यादव के विरुद्ध दर्ज कराये गये मामले की जांच करने की जिम्मेवारी सब-इंस्पेक्टर नीलकमल को सौंपी गयी है. इधर, शुक्रवार की देर रात प्रदीप यादव को गया शहर से इमामगंज थाने में लाया गया और मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर शनिवार को जेल भेज दिया गया. इस पर शेरघाटी अनुमंडल में कई तरह की चर्चाएं शुरू हैं. सवाल भी उठने लगे हैं. प्रदीप का आपराधिक इतिहास नहीं रहा है. इसके बावजूद उसे जेल भेज दिया गया और सहायक कमांडेंट अब भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं है. दोनों को एक ही प्राथमिकी में आरोपित बनाया गया है. अब सवाल है कि क्या सरकारी नौकरी में रहनेवाले सहायक कमांडेंट और ग्रामीण प्रदीप यादव के लिए अलग-अलग कानून कैसे हो गये?