यही लब्बोलुआब है गुरुवार को रेनेसां में चल रही दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में देशभर से आये साहित्यकारों, मीडियाकर्मियों व बुद्धिजीवियों के वक्तव्यों का. चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा ने कहा कि पेज थ्री लाइफ को न्यूज रूम में बैठीं महिलाएं स्वीकार करती हैं. अपराध व राजनीति की खबरों को छोड़ महिलाओं को केंद्र में रख कर ईलता परोसी जाती है. यह सब टीआरपी का खेल है. महिलाओं को इसके विरोध में आना होगा. साहित्यकार उषा किरण खान ने कहा कि साहित्य में महिलाओं ने 50 साल पहले दस्तक दी थी. उन्होंने खबरों की संपादकीय शैली पर सवाल उठाये. संपादकों की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि उनके निर्देश पर खबरें तोड़-मरोड़ कर पेश की जाती हैं. उन्होंने कहा कि लेखक (पत्रकार) कोई कैरेक्टर नहीं, जिसके लिए निर्देशक की जरूरत हो. उन्हें लिखने-पढ़ने की आजादी देनी होगी.
श्रीमती खान ने कहा कि महिला पत्रकारों को संपादक चैंबर में बुला कर निर्देश देते हैं, यह उनके दोहरे चरित्र का परिचायक है. उन्होंने साहित्य लिखने-पढ़ने पर जोर दिया. ‘आनंद बाजार’ की मुख्य संवाददाता स्वाति भट्टाचार्य ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति कम है. कोलकाता प्रेस क्लब के 412 सदस्यों में मात्र 24 महिलाएं हैं. राइटर्स बिल्डिंग में पत्रकारों के प्रवेश पास में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी है. पाकिस्तान में महज पांच महिला पत्रकार ही हैं. बांग्लादेश की भी यही स्थिति है. छह हजार पत्रकारों में महिलाएं 400 ही हैं.
दो दिनों तक चलनेवाले इस सेमिनार में पहले दिन शिक्षा, साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र से देश भर की कई प्रमुख हस्तियों ने हिस्सा लिया.