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महिलाओं ने काफी मेहनत कर समाज में बनायी है अपनी जगह

गया: महिलाओं ने काफी मेहनत कर समाज में अपनी जगह बनायी है. इसके विरोध में पुरुषवादी सोच के लोगों ने उन पर हमले भी किये हैं. यह महिलाओं की सक्रियता के खिलाफ प्रतिक्रिया है. लेकिन, महिलाओं ने इसके खिलाफ मोरचा खोल दिया है, संघर्ष को और तेज कर दिया है. एक समय आयेगा, जब महिलाएं […]

गया: महिलाओं ने काफी मेहनत कर समाज में अपनी जगह बनायी है. इसके विरोध में पुरुषवादी सोच के लोगों ने उन पर हमले भी किये हैं. यह महिलाओं की सक्रियता के खिलाफ प्रतिक्रिया है. लेकिन, महिलाओं ने इसके खिलाफ मोरचा खोल दिया है, संघर्ष को और तेज कर दिया है. एक समय आयेगा, जब महिलाएं सर्वस्वीकार होंगी. यह संघर्ष का अंतिम व सफल चरण होगा.

यही लब्बोलुआब है गुरुवार को रेनेसां में चल रही दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में देशभर से आये साहित्यकारों, मीडियाकर्मियों व बुद्धिजीवियों के वक्तव्यों का. चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा ने कहा कि पेज थ्री लाइफ को न्यूज रूम में बैठीं महिलाएं स्वीकार करती हैं. अपराध व राजनीति की खबरों को छोड़ महिलाओं को केंद्र में रख कर ईलता परोसी जाती है. यह सब टीआरपी का खेल है. महिलाओं को इसके विरोध में आना होगा. साहित्यकार उषा किरण खान ने कहा कि साहित्य में महिलाओं ने 50 साल पहले दस्तक दी थी. उन्होंने खबरों की संपादकीय शैली पर सवाल उठाये. संपादकों की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि उनके निर्देश पर खबरें तोड़-मरोड़ कर पेश की जाती हैं. उन्होंने कहा कि लेखक (पत्रकार) कोई कैरेक्टर नहीं, जिसके लिए निर्देशक की जरूरत हो. उन्हें लिखने-पढ़ने की आजादी देनी होगी.

श्रीमती खान ने कहा कि महिला पत्रकारों को संपादक चैंबर में बुला कर निर्देश देते हैं, यह उनके दोहरे चरित्र का परिचायक है. उन्होंने साहित्य लिखने-पढ़ने पर जोर दिया. ‘आनंद बाजार’ की मुख्य संवाददाता स्वाति भट्टाचार्य ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति कम है. कोलकाता प्रेस क्लब के 412 सदस्यों में मात्र 24 महिलाएं हैं. राइटर्स बिल्डिंग में पत्रकारों के प्रवेश पास में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी है. पाकिस्तान में महज पांच महिला पत्रकार ही हैं. बांग्लादेश की भी यही स्थिति है. छह हजार पत्रकारों में महिलाएं 400 ही हैं.

दूसरे सत्र में बीबीसी (हिंदी) के संपादक निधिश त्यागी ने कहा कि अपराध व राजनीति से अलग हट कर मीडिया को समुदाय की ओर कदम बढ़ाने की जरूरत है. गौरतलब है कि साहित्य, कला, संस्कृति व मीडिया में महिलाओं की प्रभावशाली भागीदारी और इन क्षेत्रों में महिलाओं से जुड़ीं समस्याओं पर ऑक्सफेम, साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ बिहार, स्त्रीवादी पत्रिका स्त्रीकाल, सीआइआइएल व रेनेसां जैसी संस्थाओं ने मिल कर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया है.

दो दिनों तक चलनेवाले इस सेमिनार में पहले दिन शिक्षा, साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र से देश भर की कई प्रमुख हस्तियों ने हिस्सा लिया.

कार्यशाला में भाग लेनेवाले विशिष्ट लोगों में कथाकार सुधा अरोड़ा, उषा किरण खान, गुलबर्ग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष परिमाला आंबेकर, प्रो शैलेंद्र सिंह, सुनीता गुप्ता, आनंद बाजार पत्रिका की मुख्य संवाददाता स्वाति भट्टाचार्य, बिहार विश्वविद्यालय की सुनीता गुप्ता, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कमलानंद झा व कर्मानंद आर्य, थंब प्रिंट की वरिष्ठ पत्रकार अनंदिता दास, फिल्म समीक्षक मोहम्मद गनी, वरिष्ठ पत्रकार अजीथा मेनन, अमृता व बीबीसी (हिंदी) के संपादक निधिश त्यागी शामिल हैं. कार्यक्रम में विशेष प्रवेश साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया के बिहार चैप्टर की अध्यक्ष निवेदिता ने कराया.

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