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गया : पंडा समाज के भरोसे ही पिंडदान कर रहे तीर्थयात्री

तीर्थयात्रियों को नहीं मिल रहीं बुनियादी सुविधाएं गया : आदि काल से मोक्षधाम यानी गयाजी में साल में दो बार पितृपक्ष मेला लगता आ रहा है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में लगने वाले पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से आनेवाले तीर्थयात्रियों के लिए प्रशासनिक स्तर पर सभी तरह की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं. […]

तीर्थयात्रियों को नहीं मिल रहीं बुनियादी सुविधाएं
गया : आदि काल से मोक्षधाम यानी गयाजी में साल में दो बार पितृपक्ष मेला लगता आ रहा है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में लगने वाले पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से आनेवाले तीर्थयात्रियों के लिए प्रशासनिक स्तर पर सभी तरह की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती हैं. लेकिन, पौष मास में लगनेवाला छोटी पितृपक्ष मेला प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हो जाता है.
इस मेले में तीर्थयात्रियों के लिए जिला प्रशासन द्वारा किसी तरह की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी जाती हैं. अलबत्ता नगर निगम साफ-सफाई के प्रति सजगता जरूर दिखाता है. पंडा समाज के भरोसे से तीर्थयात्री पिंडदान करने को मजबूर हैं.
पौष मास में एक जनवरी से मकर संक्रांति तक यह मेला आयोजित होता है. इस मेले में प्रतिवर्ष औसतन दाे से ढाई लाख तीर्थयात्री आते हैं. लेकिन, इस वर्ष एक से डेढ़ लाख यात्री गयाजी पहुंच कर अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान व तर्पण कर रहे हैं. तीर्थयात्रियों की इतनी अधिक संख्या पहुंचने के बाद भीजिला प्रशासन इन तीर्थयात्रियों की बुनियादी सुविधाओं के प्रति अब तक गंभीर नहीं हो सका है.
व्यवस्था अनुकूल नहीं, कम आ रहे यात्री : पंडा समाज की मानें, तो बुनियादी सुविधाओं में कमी के कारण बीते कई वर्षों से पौष मास में लगने वाले इस मेले में तीर्थयात्रियों के आने की संख्या में काफी कमी आयी है.
यदि प्रशासनिक व्यवस्थाओं का हाल यही रहा, तो फिर आने वाले कुछ समय में तीर्थयात्रियों के आने की संख्या में और अधिक कमी हो सकती है. तीर्थयात्रियों की इस कमी की वजह से यहां की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है. क्योंकि औसतन एक तीर्थयात्री श्राद्ध कर्म व अन्य मद में कम से कम पांच सौ रुपये तक खर्च करते हैं. तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी होने से यहां के कारोबार में भी कमी होगी. इससे यहां की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
कई राज्याें के आये हैं तीर्थयात्री
इधर, गयापाल तीर्थ वृति सुधारिणी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल कटरियार व पंडा समाज के दामोदर गोस्वामी बताते हैं कि श्राद्धकर्म के निमित गयाजी पहुंचे तीर्थयात्री हमारे अतिथि होते हैं. आवासन सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना हम लोगों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है. फल्गु नदी में आवारा पशुओं की भरमार रहने के सवाल पर ये लोग बताते हैं कि आसपास के घरों से पशुओं को खोल दिया जाता है, जो चारा चरने के उद्देश्य से नदी में आ जाते हैं. इन लोगों ने बताया कि इन पशुओं के मालिकों को इसके लिए कई बार मना भी किया गया है.
लेकिन, अब तक यह प्रयास विफल रहा. उन्होंने बताया कि इस पर प्रशासन द्वारा पहल करने की अब जरूरत है. इन लोगों ने बताया कि छोटी पितृपक्ष में महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बंगाल सहित देश के लगभग सभी राज्यों के तीर्थयात्री आते हैं व श्राद्ध कर्म का कर्मकांड कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं.
नदी में विचरनेवाले पशु बन रहे पिंडदानियों की परेशानी का सबब
प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं, सुरक्षा व्यवस्था संबंधित कई बुनियादी समस्याओं से जूझते हुए तीर्थयात्री श्राद्ध कर्म व तर्पण कर अपने घर वापस चले जाते हैं. इस पौष मास में लगने वाले छोटी पितृपक्ष मेले में देवघाट के फल्गु नदी में आवारा पशुओं का भी पूरे दिन भरमार लगा रहता है.
कई बार तो पशुओं की चपेट में आकर तीर्थयात्री घायल भी हो जाते हैं. ऐसे में घायल तीर्थयात्रियों को चिकित्सा सेवा की कमी खल जाती है. अंतः सलिला फल्गु नदी होने के कारण पानी का भी घोर किल्लत है. नदी में कुंड बना कर कारोबार कर रहे लोगों से जल खरीद कर तीर्थयात्री श्राद्धकर्म व तर्पण करने के लिए मजबूर हैं. हालांकि बुनियादी सुविधाओं में कमी से संबंधित शिकायतें तीर्थयात्रियों द्वारा प्रशासन से अब तक नहीं की जा सकी है. अब जिला प्रशासन ने भी अपनी ओर से पहल करने की जहमत नहीं उठायी है.

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