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बाप-रे ! जनता के 84 लाख रुपये का कोई मोल नहीं

गया : स्वास्थ्य विभाग के जिला व राज्यस्तर के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से पब्लिक के लाखों रुपये बर्बाद हो गये. सांसद फंड से छह साल पहले मिले दो चलंत चिकित्सा वाहन यूं ही बेकार पड़े हैं, जबकि ये अब तक के सबसे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस एंबुलेंस हैं. 2012 में सांसद हरि मांझी […]

गया : स्वास्थ्य विभाग के जिला व राज्यस्तर के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से पब्लिक के लाखों रुपये बर्बाद हो गये. सांसद फंड से छह साल पहले मिले दो चलंत चिकित्सा वाहन यूं ही बेकार पड़े हैं, जबकि ये अब तक के सबसे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस एंबुलेंस हैं. 2012 में सांसद हरि मांझी ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत 42-42 लाख रुपये के दो चलंत चिकित्सालय जिले को मुहैया कराये थे. इसमें ऑपरेशन करने की भी व्यवस्था थी. शौचालय तक की सुविधा दी गयी थी. इसका प्रयोग केवल मरीजों को अस्पताल तक लाना नहीं, बल्कि गंभीर रूप से घायल मरीजों का इलाज करना भी था.

किसी दुर्घटना के बाद घायल को अगर तुरंत ट्रीटमेंट की जरूरत हुई, तो चलंत चिकित्सालय में ही शुरू किया जा सकता था. इसके अलावा किसी ग्रामीण इलाके में स्वास्थ्य सेवा देने के लिए भी चिकित्सकों की टीम इसका प्रयोग कर सकती थी. कुल मिला कर ये वाहन जिले की स्वास्थ्य सेवाओं को अपग्रेड करने में सहायक साबित होते. लेेकिन, यह अफसोस और शर्म की बात है कि यहां के अधिकारियों ने इन वाहनों को पब्लिक के उपयोग के लायक नहीं बनाया.

उपयोग नहीं था, तो लिया क्यों गया?: चलंत चिकित्सालय का प्रयोग नहीं होने के संदर्भ जिले में स्वास्थ्य विभाग के किसी भी अधिकारी से पूछें, तो एक ही जवाब मिलता है कि इन्हें चलाने वाले ड्राइवर और टेक्नीशियन के नहीं होने की वजह से इसका प्रयोग नहीं हुआ. तो क्या छह सालों में इन गाड़ियों के लिए कर्मचारी तक जुटाना संभव नहीं हो सका. इन छह सालों में दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की बहाली तो हो गयी, तो फिर इसके लिए क्यों नहीं? अब मेडिकल काॅलेज कहता है कि इस गाड़ी की जरूरत नहीं है. इसका प्रयोग प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में किया जा सकता है, तो फिर सवाल है कि जब जरूरत नहीं है तो सांसद से ये वाहन लिये ही क्यों गये?
अधिकारियों के पास नहीं है जवाब
इस मामले में मगध मेडिकल काॅलेज व जिला स्वास्थ्य विभाग के कई वरीय पदाधिकारियों से बात की गयी. लेेकिन, किसी के पास भी कोई सटीक जवाब नहीं है. पहले तो अधिकारी यह कह कर टालने का प्रयास करते हैं यह उनके वक्त का मामला नहीं है. लेकिन, जब उनसे यह सवाल किया जाता है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में क्या किया? इसका उनके पास कोई सटीक जवाब नहीं है. कभी कहते हैं कि कर्मचारी की समस्या है, तो कभी कहते हैं कि वाहन का प्रयोग नहीं है. कुल मिला कर यह कहें कि उनके पास जवाब ही नहीं है. सब एक-दूसरे पर टाल कर अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं.
डिमांड के बाद दिये गये थे वाहन
इधर, इस मामले में सांसद हरि मांझी के निजी सचिव कमलेश सिंह ने कहा कि दोनों वाहनों की डिमांड थी, तब सांसद ने मुहैया कराया. इसके प्रयोग के लिए सांसद ने कई बार जिला प्रशासन के वरीय अधिकारियों से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक पत्राचार किया, लेकिन अाज तक सेवा नहीं शुरू की गयी.

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