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दो दिनों की बैंकों की बंदी से गया को 200 करोड़ रुपये का नुकसान

गया : कम वेतन वृद्धि के विरोध में दो दिनों तक सरकारी बैंकों के बंद रहने के कारण जिले में करीब 200 करोड़ रुपये का व्यवसाय प्रभावित हुआ है. यूं कहे कि नुकसान हुआ है. बैंक अधिकारियों के मुताबिक मगध प्रमंडल का मुख्यालय होने की वजह से गया में व्यापारिक दृष्टिकोण से लेन-देन अधिक होता […]

गया : कम वेतन वृद्धि के विरोध में दो दिनों तक सरकारी बैंकों के बंद रहने के कारण जिले में करीब 200 करोड़ रुपये का व्यवसाय प्रभावित हुआ है. यूं कहे कि नुकसान हुआ है. बैंक अधिकारियों के मुताबिक मगध प्रमंडल का मुख्यालय होने की वजह से गया में व्यापारिक दृष्टिकोण से लेन-देन अधिक होता है.
जहानाबाद छोड़ लगभग सभी जिले का व्यापार मुख्यालय भी गया ही है. इन कारणों से यहां बैंकों में लेन-देन का काम भी अधिक होता है. दो दिनों के बैंक बंद होने की वजह से व्यापारी से लेकर आम वर्ग तक के लोगों का लेन-देन बंद रहा. महीने के अंतिम दिन होने की वजह से लगभग सभी को पैसों की जरूरत होती है.
ऐसे में बैंक के बंद होने की वजह से सभी काम प्रभावित हुए. शहर के लोगों ने बताया कि महीने के बीच में बैंक बंद होने से खास प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन महीने के अंत और शुरुआत में बैंकों के बंद होने से लगभग हर काम प्रभावित होते हैं. शुक्रवार को बैंक खुलने के साथ ही दबाव भी बढ़ेगा. कर्मचारी भी मान रहे हैं कि शुक्रवार और शनिवार को बैंकों में काफी भीड़ जमा होगी.
राज्य में 14 हजार करोड़ प्रभावित
गुरुवार को दूसरे दिन भी जिले के सभी बैंक बंद रहे. यूनाइटेड फोरम आॅफ बैंक यूनियन के मुताबिक इस आंदोलन में प्राइवेट बैंकों का भी अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन रहा. बीपीबीआई के महासचिव प्रमोद पांडेय ने हड़ताल को पूरी तरह से सफल बताया. उन्होंने बताया कि पूरे बिहार में 14 हजार करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ है. शहर के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी कामकाज बंद रहे.
उन्होंने कहा कि सरकार ने आधार कार्ड तक बनाने की जिम्मेदारी बैंककर्मियों को दी है और वेतन बढ़ाने की बात आती है, तो उस पर कुछ नहीं होता. उन्होंने कहा कि सरकार इस आंदोलन के बाद भी नहीं मानती है, तो आगे और भी आंदोलन होंगे. कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जायेंगे.
सरकारों को बैंक कर्मियों की फिक्र नहीं
इधर, दो दिनों से हड़ताल पर रहे बैंक कर्मियों का कहना है कि बैंक के बंद होने से लोगों के काम-काज प्रभावित होते हैं. ऐसे में लोगों का समर्थन बैंक कर्मियों को नहीं मिलता. दूसरा, नेताओं के लिए बैंक कर्मचारी कभी वोट बैंक के रूप में नहीं रहे. इसलिए कोई राजनीतिक पार्टी कभी बैंक कर्मियों के आंदोलन का हिस्सा नहीं बनती. बैंक कर्मी अपने अधिकारी की लड़ाई वर्षों से अपने ही प्रयास पर लड़ रहे हैं. बैंक कर्मियों ने कहा कि सरकार में बैठे लोगों को इस बात से भी मतलब नहीं है कि बैंक में कर्मचारियों की कितनी कमी है.
सरकारों ने बीते 10 सालों में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बैंकों पर काम का बेतहाशा दबाव बनाया. लेकिन कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ाई. नतीजा यह है कि आज एक कर्मचारी पर चार – चार कामों का दबाव है. इन सब के बाद जब उसके वेतन में महज दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की जाती है तो उसका नाराज होना जायज है.

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