गया: चुनाव आयोग देश में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए कदम उठा रहा है. कारपोरेट्स भी आगे आ रहे हैं. लोग मतदान के लिए जरूर आगे आयें, इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.
रैली हो रही है, नुक्कड़ नाटकों का सहारा लिया जा रहा है, पोस्टर-बैनर व फ्लैक्स आदि लगाये जा रहे हैं व महंगे विज्ञापन भी दिये जा रहे हैं. लेकिन, जैसे-जैसे जागरूकता के प्रयास बढ़ रहे हैं, वोट बहिष्कार की घोषणाएं भी बढ़ रही हैं. इस बार के चुनाव में यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा.
जहां कहीं भी वोट बहिष्कार की घोषणा हो रही है, आमजन के इस स्टैंड के पीछे असली वजह नागरिक सुविधाओं की कमी बतायी जा रही है. कहीं लोग ‘नो रोड, नो वोट’ की बात कर रहे हैं, तो कहीं ‘बिजली नहीं, तो वोट नहीं’ की गूंज सुनाई पड़ रही है. पानी के सवाल पर भी लोगों ने वोट नहीं डालने की बात सुना डाली है.
कैमूर, सासाराम, औरंगाबाद, गया व नवादा जिलों में वोट बहिष्कार के ढेर सारे मामले अब तक सामने आ चुके हैं. लोगों ने पोस्टर-बैनर लगा कर सभी दलों के प्रत्याशियों को उनसे वोट की उम्मीद नहीं करने की हिदायत दे डाली है. कई जगह तो लोगों ने उम्मीदवारों को जनसंपर्क के सिलसिले में उनके गांवों में प्रवेश नहीं करने तक की चेतावनी दी है. वोट बहिष्कार करनेवाले लोगों का कहना है कि वे अब अपने निकम्मे जन प्रतिनिधियों को देख आपे से बाहर आ जा रहे हैं. अपने-आप पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे. दरअसल, बातचीत से पता चल रहा है कि अब लोग अपने जन प्रतिनिधियों को चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए वोट बहिष्कार को भी एक कारगर हथियार मानने लगे हैं.