विदेश में लाखों रुपये महीने की नौकरी की, लेकिन नौकरी रास नहीं आयी. वर्ष 2013 में पहली बार उन्होंने बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन) का एग्जाम दिया व 17वां रैंक प्राप्त कर डीएसपी बन गये.
आइआइटी पास करनेवाले छात्र ही मर्चेंट नेवी की पढ़ाई कोलकाता स्थित डीएटी व नवी मुंबई स्थित टीएस चाणक्या कॉलेज से कर सकते थे. लिहाजा टीएस चाणक्या कॉलेज उन्हें रास आया व उन्होंने दाखिला ले लिया. नॉटिकल साइंस की पढ़ाई पूरी की व इटैलियन कंपनी सियर लैंड ज्वाइन कर लिया. ज्वाइन करते ही विदेश में नौकरी करने का दौर शुरू हुआ. विभिन्न कंपनियों में काम किया. नौकरी ज्वाइन की थी, तो वह कैडेट थे. उस समय उनकी तनख्वाह 50000 हजार रुपये थी. इसके बाद थर्ड ऑफिसर इंचार्ज हुए, तो उनकी सैलरी डेढ़ लाख प्रतिमाह हो गयी. जब सेकेंड अफसर बने, तो उनकी तनख्वाह 2.70 लाख रुपये हो गयी. नौकरी करते हुए उन्होंने विदेश के 28-30 शहरों का भ्रमण भी किया. इस बीच उनके बड़े भाई भी यूएस शिफ्ट कर गये. घर में उनके माता-पिता अकेले पड़ गये. परिवार के प्रति नैतिक जिम्मेदारी का खयाल भी उन्हें परेशान करने लगा. मां पिता विदेश जाने को राजी नहीं थे, सो वह असमंजस की स्थिति में पहुंच गये. तय किया कि इंडिया में ही रह कर कुछ बेहतर किया जायेगा. यूपीएससी का एग्जाम दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली. इस बीच वर्ष 2013 में बीपीएससी का एग्जाम दिया व पहली बार में ही सफलता मिल गया. उन्हें इस परीक्षा में 17वां रैंक मिला. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें मुजफ्फरपुर के नक्सलग्रस्त सरैया थाने का एसएचओ बनाया गया. वहां रहते हुए उन्होंने 50000 रुपये के इनामी नक्सली अमीन सहनी को गिरफ्तार किया.