बिरौल. प्रखंड क्षेत्र की नदियों की स्थिति वर्तमान में अत्यंत गंभीर है. क्षेत्र की प्रमुख नदियों में सुपौल बाजार के मध्य से निकलने वाली मरने कमला नदी, मरने कमला नदी पोखराम, सहसराम समेत अन्य जो कभी इस क्षेत्र के जीवनदायिनी जलस्रोत थी, वे अब जलसंकट व प्रदूषण से जूझ रही हैं. इन नदियों में पानी की कमी है, जो स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय है. इन नदियों का जलस्तर कम होने के साथ ही इनके किनारे बसे गांवों में गंदगी की समस्या भी गंभीर हो गयी है. ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे का उचित प्रबंधन नहीं होने के कारण यह कचरा नदियों में बहकर उन्हें दूषित कर रहा है. इससे न केवल जल प्रदूषण बढ़ा है, बल्कि पशुओं के पानी के स्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं. पोखराम के गोविंद चौधरी, संतोष चौधरी व विकास चौधरी ने बताया कि गांव की नदी में गंदगी का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. इससे नदियों का प्रदूषण और अधिक हो रहा है. इसके अतिरिक्त नदी किनारे बसे लोग लगातार नदियों का अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे नदियों का आकार छोटा होता जा रहा है और जल प्रवाह बाधित हो रहा है. वहीं सुपौल बाजार के चूड़ा मिल संचालक व व्यवसायी रवींद्र मंडल ने बताया कि इस जलसंकट का प्रभाव स्थानीय किसानों पर भी पड़ रहा है. पानी की कमी के कारण सिंचाई की समस्या बढ़ गयी है. इससे कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है. यह स्थिति किसानों के लिए एक भयंकर चुनौती बन गयी है. रामविलास भारती ने कहा कि इस समस्या का समाधान केवल सामूहिक प्रयासों एवं सरकारी सहयोग से ही संभव है. स्थानीय लोगों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना आवश्यक है. इसके लिए लोगों को प्रेरित करना अत्यंत जरूरी है. सनोज नायक ने कहा कि सामुदायिक स्तर पर स्वच्छता अभियान चलाना, नदियों के किनारे पौधारोपण करना और प्राकृतिक स्रोतों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाना आवश्यक है. सरकार को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. युवा नेता मिथिलेश सहनी का कहना था कि नदियों की स्वच्छता व उनके प्राकृतिक स्थिति को बनाए रखने के लिए सख्त कानून का पालन करवाना आवश्यक है. जल स्रोतों के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए और उनका कड़ाई से पालन करना चाहिए. साथ ही प्रदूषण फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि नदियों की दुर्दशा रोकी जा सके. राज कुमार अग्रवाल ने कहा कि सरकार व स्थानीय लोगों के सम्मिलित प्रयासों से ही इस जल संकट का समाधान निकाला जा सकता है. सामुदायिक जागरूकता और सरकारी सहयोग से नदियों को फिर से जीवंत व स्वच्छ बनाया जा सकता है, जिससे भविष्य में जल संकट जैसी स्थिति से बचा जा सके.
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