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मरीजों का निवाला गटक रहा डायट विभाग

अस्पताल प्रशासन व कर्मियों की मिलीभगत भिखारियों की तरह मरीजों को परोसा जा रहा भोजन मरीजों के लिए भोजन बनाते कर्मी, जंग लगे ठेला से मरीजों को परोसा जाता भोजन व आहार विद‍् कार्यालय में बंद पड़ा ताला दरभंगा : उत्तर बिहार के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान डीएमसीएच में मरीजों के इलाज में लापरवाही की […]

अस्पताल प्रशासन व कर्मियों की मिलीभगत भिखारियों की तरह मरीजों को परोसा जा रहा भोजन

मरीजों के लिए भोजन बनाते कर्मी, जंग लगे ठेला से मरीजों को परोसा जाता भोजन व आहार विद‍् कार्यालय में बंद पड़ा ताला
दरभंगा : उत्तर बिहार के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान डीएमसीएच में मरीजों के इलाज में लापरवाही की चर्चा तो आम है.
समय से चिकित्सकों का नहीं पहुंचना, नर्स द्वारा मरीजों का नीयत समय पर फॉलोअप नहीं करना, दवा नहीं मिलना और सुविधा रहते हुये भी जांच के लिये निजी पैथोलैब में जाना गरीब मरीजों की नीयती बन गई है. लेकिन, डायट विभाग डीएमसीएच में भर्ती मरीजों के लिये सरकार द्वारा दिये जाने वाले निवाले को भी अस्पताल प्रशासन व कर्मियों की मिलीभगत से गटक रहा है.
एक सौ मरीजों का प्रतिदिन भोजन का हो रहा है गोलमाल: डीएमसीएच में प्रतिदिन औसतन 550 भर्ती मरीजों के लिये नास्ता व भोजन दिया जाता है. इसमें करीब एक सौ मरीजों का भोजन अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से डायट विभाग चट कर जा रहा है. बताया जाता है कि डीएमसीएच में प्रतिदिन एक सौ मरीजों की छुट्टी होती है और औसतन इतने ही मरीजों की नई भर्ती होती है.
छुट्टी होने वाले मरीज नाम कटने के बाद अपने घर चले जाते हैं. इससे प्रतिदिन भोजन व नास्ता करने वाले मरीजों की संख्या औसतन एक सौ कम हो जाती है. जिसका भोजन व नास्ता विभाग बचा लेता है. जबकि नये भर्ती मरीजों को भर्ती होने के अगले दिन तक भोजन नहीं दिया जाता है. इस गोलमाल की जानकारी होने के बाद भी अस्पताल प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करती है.
गुणवत्ता का ख्याल नहीं: भर्ती मरीजों को दिये जाने वाले भोजन में अस्पताल प्रशासन गुणवत्ता ख्याल तक रखना जरूरी नहीं समझती.
मरीजों को दिन रात भोजन में चावल, दाल व सब्जी परोसा जाता है. भोजन में दिये जाने वाले दाल का नाम मरीज गंगाजल रख दिया है. वहीं सब्जी के नाम पर आलू में थोड़ा बहुत हरी सब्जी मिलाकर मरीजों को परोस दिया जाता है. जबकि मरीजों को बिना उबाला हुआ दूध व कच्चा अंडा दिया जाता है. मरीजों का कहना है दूध गर्म करने के लिये चाय दुकानदार दस रुपये लेता है. वहीं अस्पताल में अंडा उनके किसी काम का नहीं है.

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