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फसलों मेेंं पीलापन, खेतों में दरार

मौसम की बेरुखी Â सूनी आंखों से आसमान निहार रहे किसान, धान का कटोरा रह जायेगा खाली कमतौल : मौसम की बेरुखी खरीफ सीजन में भी किसानों का पीछा नहीं छोड़ रही है. बाढ़ का नैहर माने जाने वाले मिथिला में पानी का अकाल आ गया है. किसान सुनी आंखों से खाली आसमान की ओर […]

मौसम की बेरुखी Â सूनी आंखों से आसमान निहार रहे किसान, धान का कटोरा रह जायेगा खाली

कमतौल : मौसम की बेरुखी खरीफ सीजन में भी किसानों का पीछा नहीं छोड़ रही है. बाढ़ का नैहर माने जाने वाले मिथिला में पानी का अकाल आ गया है. किसान सुनी आंखों से खाली आसमान की ओर आशा भरी निगाहों से निहार रहे हैं. खेतों में दरार आ गया है. नन्हें पौधे पानी के बिना पीले पड़ गये हैं. मिथिला में धान का कटोरा कहा जाने वाला जाले प्रखंड इस बार पैदावार के मामले में निचले पायदान पर भी नहीं रह जायेगा.
वैसे ही समय पर पानी नहीं होने से बमुश्किल 50-60 फीसदी धान की ही बोआई या रोपनी हो सकी थी. बारिश नहीं होने से बिचड़ा खेतों में ही लगा रह गया. थोड़ी बहुत रोपनी हुई भी तो मौसम के तेवर देख कर नहीं लगता कि इस बार धान के कटोरा आधा भी भर पाएगा. सावन माह में हुई छिटफुट बारिश के बाद भादो माह में अच्छी बारिश की उम्मीद की जा रही थी. काले बादल उमड़-घुमड़ तो रहे हैं, लेकिन बरसते नहीं. किसानों का कहना है कि रबी के बाद खरीफ में झटका लगा तो वे कहीं के नहीं रहेंगे.
मानसून के दगा देने से मायूस हैं किसान: सावन माह बीत चुका है, भादो जा रहा है. मौसम की बेरुखी के कारण चिलचिलाती तीखी धूप से खेतों में गिराये गए धान के बिचडे की कौन कहे, रोपे गए धान सूखने लगे हैं. खेतों में दरार पड़नी शुरू हो गयी है. वेवश किसान सरकारी घोषणाओं के बलबूते धान उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने की असफल कोशिश में जुटे हैं. अहियारी के शिवराम ठाकुर, उमेश ठाकुर, मिर्ज़ापुर के महेंद्र राय, गोट के राम विलास यादव, कमतौल के शालिग्राम ठाकुर, अशेश्वर प्रसाद आज़ाद, रजौन के स्नेही सिंह, मस्सा के अफजल आदि कई किसानों की मानें तो यहां ज्यादातर किसान बरसात के भरोसे ही खेती पर निर्भर हैं. उन्हें रबी की बर्बादी के बाद खरीफ से बड़ी आस थी, लेकिन मानसून के दगा देने से उनकी निराशा बढ़ने लगी है. मौसम की दगाबाजी से अन्नदाता की पेशानी पर बल पड़ है. रतनपुर के मनोज ठाकुर, ब्रह्मपुर के सुरेश ठाकुर, राढ़ी के कार्तिकेश कुमार, दोघरा के जमीरूल, लतराहा के संजीवन आदि ने बताया की कई सक्षम किसान तो निजी नलकूप के सहारे धान की रोपनी कर, दुबारा, तिबारा पटवन कर धान की फसल में जान डाल रहे हैं, लेकिन ज्यादातर किसान इंद्रदेव की मेहरबानी की ही दुआ कर रहे हैं. जोगियारा के शिवचंद्र सिंह कहते हैं कि मौसम के तेवर देख इस बार धान लगाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. रबी की बर्बादी के बाद धान से उम्मीद लगाई थी, परंतु अब निराश होने लगे हैं. अहियारी गांधीनगर के अजय ठाकुर, बृजनंदन ठाकुर आदि कई किसान कहते हैं कि बेदम बदरा कलेजा चाक कर रहा है. यदि एकाध हफ्ते में अच्छी बरसात नहीं हुई तो बरबादी निश्चित मानिए.

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