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निजी वद्यिालयों के छात्रों में बढ़ रही है प्राइवेट ट्यूशन पर नर्भिरता

निजी विद्यालयों के छात्रों में बढ़ रही है प्राइवेट ट्यूशन पर निर्भरता दरभंगा : जब अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला कराते हैं तब उनके जेहन में अच्छी शिक्षा की तस्वीर होती है. उन्हें लगता है कि अब उनके बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर अच्छा मुकाम हासिल करेंगे. कई अनुशासन में रुटिन के […]

निजी विद्यालयों के छात्रों में बढ़ रही है प्राइवेट ट्यूशन पर निर्भरता दरभंगा : जब अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला कराते हैं तब उनके जेहन में अच्छी शिक्षा की तस्वीर होती है. उन्हें लगता है कि अब उनके बच्चे बेहतर शिक्षा हासिल कर अच्छा मुकाम हासिल करेंगे. कई अनुशासन में रुटिन के अनुसार परीक्षा पूर्व पाठ्यक्रम पूरा होगा. अपने विषय वस्तु पर पकड़ होगी किंतु जब उनके बच्चे प्राइवेट ट्यूशन के लिए कहते हैं तब उनका माथा ठनकता है. आखिर इतने अच्छे स्कूल में पढाने का क्या मतलब? जब उन्हें ट्यूशन दिलाना पड़े. वो भी उन्हीं ट्यूटर से जो उन्हीं के स्कूल के टीचर है. आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि जो शिक्षक उन्हें स्कूल में पढाते हैं, उन्हीं से उनके बच्चे को पढना है. बहुत कुरेदने पर पता चलता है कि आंतरिक मूल्यांकन में अच्छा अंक लाने के लिए ऐसा करना आवश्यक है. उनके बच्चे तक तर्क देते हैं कि जो बच्चे इस स्कूल के टीचर से पढ रहे हैं उनका परफारमेंस आंतरिक परीक्षा फल में साफ दिख रहा है. यह दर्द मिर्जापुर के राम खेलावन चौधरी का है जिनका बच्चा एक नामी निजी स्कूल के कक्षा 9 का छात्र है. यही स्थिति अधिकांश स्कूल छात्र का है, जिनकी निर्भरता प्राइवेट ट्यूशन की ओर बढता जा रहा है. ऐसे में यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि जब अभिभावक अपने बच्चो को निजी विद्यालयों में दाखिला कराते है तो उन्हें फीस एवं अन्य मदो मं अच्छी रकम व्यय करना होता है. फिर अलग से उनकी शिक्षा पर खर्च करने का कहां तक औचित्यपूर्ण है. यह तस्वीर का एक पहलू है, जबकि अब स्थिति ऐसी बनती जा रही है कि इन स्कूलों में पढनेवाले बच्चों को किसी न किसी से प्राइवेट ट्यूशन पढने की प्रवृति में इजाफा हो रहा है जो किसी भी नजरिये से निजी विद्यालयों के गुणवत्तापूर्ण पढाई पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है. अगर बच्चे इतना कमजोर हैं कि कक्षा की पढाई को समझ नहीं पा रहे तो इसकी भरपाई स्मार्ट क्लासेज आदि से हो सकता है. अगर शिक्षक उतने काबिल नहीं हैं तो बेहतर शिक्षक की व्यवस्था स्कूल प्रबंधन की जिम्मेवारी है. मामला जो भी हो किंतु यह एक चिंतनीय विषय है. जिस पर समय रहते विचार नहीं हुआ तो अभिभावकों को निजी विद्यालयों के प्रति जो धरणा है उसे बदलते देर नहीं लगेगी. जब उनके बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन पर ही निर्भरता रहेगी तो ऐसे में निजी विद्यालयों में भारी फीस देने की जरुरत पर सोचने को मजबूर होंगे.

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