लोक परंपरा को जीवंत रखना जरूरी : वीसी
Advertisement
कार्यक्रम. मिथिला लोकगाथा व संस्कृति पर जोर
लोक परंपरा को जीवंत रखना जरूरी : वीसी दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी संगीत विभाग परिसर मेंं लनामिवि एवं संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित देशज के तहत तीन दिवसीय विविध लोक एवं पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति गुरुवार से शुरु हुई. इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते […]
दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी संगीत विभाग परिसर मेंं लनामिवि एवं संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित देशज के तहत तीन दिवसीय विविध लोक एवं पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति गुरुवार से शुरु हुई. इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि जितना बड़ा यह आयोजन है इसे कमतर कर आंका गया है.
इसमें जितनी विधाओं को दिखाया जा रहा है वह समाज से जुड़ा हुआ है. आजकल विकास और बौद्धिक संपदा को अर्थ से जोड़ दिया गया है. नई पीढी इससे दूर होते जा रहे हैं. वैसे मिथिला में ये दोनों एकरूप में देखने को मिलता है. मिथिला की संस्कृति व सोच दूसरों से अलग रही है. उन्होंने कहा कि हमलोग दिल से भारतीय हैं परंतु परंपरा को भूलते जा रहे हैं. जरुरत इस बात की है कि परंपरा को जिंदा रखा जाये.
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मैथिली पुत्र प्रदीप ने अपनी रचना ‘जगदंब अहिं अवलंब हमर…. . गीत गाकर आशीर्वाद दिया. कार्यक्रम के दौरान कुलपति ने मैथिली पुत्र प्रदीप को सम्मानित किया. छात्र कल्याण अध्यक्ष डॉ केपी सिंहा ने इस आयेाजन के लिए संगीत नाटक अकादमी के प्रति आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया. स्वागत भाषण लनामिवि के पीजी संगीत विभागाध्यक्ष डॉ पुष्पम नारायण ने की. सत्र का संचालन किशोर केशव ने किया.
कार्यक्रम मेंे साहित्य अकादमी के उप सचिव सुमन कुमार, कुलानुशासक डॉ अजयनाथ झा के अलावा डॉ लावण्य कीर्त्ति सिंह काव्या सहित कई अधिकारी, शिक्षक एवं कर्मी मौजूद थे. वहीं विभिन्न विधाओं से जुड़े
लोकगीत पर रहा जोर
विद्यापति संगीत परंपरा कार्यक्रम के तहत मधुबनी के गुरु राधा मोहन मिश्र व उनके दल द्वारा ‘सुनू सुनू रसिया आब नहिं बजाउ विपिन बसिया… ., माधव कतऽ तोर करब बड़ाई… ,कनक भूधर शिखरवासिनी… . आदि की प्रस्तुति मिथिला की मिथिला की भूली बिसरी यादों को मानों ताजा कर दिया हो. इनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. दर्शक विद्यापति गीत से जुड़े विभिन्न भाव से डूबे ही हुए थे कि राजा सलहेस की लोक गाथा ने उन्हें भावविभोर कर दिया.
भूपट्टी मधुबनी के यदुवीर यादव ने जब अपनी टोली के साथ सलहेस उत्सव का अनुष्ठानिक दृश्य मंच बांधा तो भगतई की याद ताजा हो उठी. बाबूबरही के लक्ष्मी महाराज की टोली ने कारुख महराय की विख्यात गायन शैली को जीवंत कर दिया. विलुप्त होती जा रही भक्तिपरक नृत्य गान नारदी को मधेपुरा के मनपुर से आये महेंद्र कुमार ने साक्षात कर दिया.
दिल्ली के गुरु श्री हरि की महेशवाणी, पटना के रविभूषण कुमार की झरनी, यहीं के अजित कुमार अकेला के पारंपरिक गीत, स्थानीय दरभंगा के शंभु कुमार सिंह के सामा चकेबा तथा स्नातकोत्तर सागर कुमार सिंह की रमखेलिया लोक नाटक ने समृद्ध प्रदर्शन कला की छाप छोड़ दी.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement