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साफ होने लगे धूल जमे ब्लैक बोर्ड

साफ होने लगे धूल जमे ब्लैक बोर्ड शुरू हुई चौक-डस्टर की तलाशडीएम के कड़े रूख का दिखने लगा विद्यालयों पर असरलगातार औचक निरीक्षण से फ्रेंचबाजों में हड़कंपगुणवत्तापूर्ण शिक्षा की ओर डीएम का पहला कदमदरभंगा. ब्लैक-बोर्ड पर अरसे से जमी धूल साफ होने लगी है. चौक-डस्टर की तलाश आरंभ हो गयी है. बेंच-डेस्क व्यस्थित होने लगे […]

साफ होने लगे धूल जमे ब्लैक बोर्ड शुरू हुई चौक-डस्टर की तलाशडीएम के कड़े रूख का दिखने लगा विद्यालयों पर असरलगातार औचक निरीक्षण से फ्रेंचबाजों में हड़कंपगुणवत्तापूर्ण शिक्षा की ओर डीएम का पहला कदमदरभंगा. ब्लैक-बोर्ड पर अरसे से जमी धूल साफ होने लगी है. चौक-डस्टर की तलाश आरंभ हो गयी है. बेंच-डेस्क व्यस्थित होने लगे हैं. विद्या के मंदिर में शिक्षा की घंटी बजनी शुरू हो गयी है. डीएम बालामुरूगन डी के औचक निरीक्षण का असर सरकारी विद्यालयों पर दिखने लगा है. आदतन अधिकांश दिन गायब रहने वाले शिक्षकों में हड़कंप है. झलक दिखाकर गायब हो जाने वाले स्कूल परिसर में दिखने लगे हैं. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को धरातल पर उतारने के लिए डीएम की ओर से उठाया गया यह पहला ठोस कदम है. हालांकि इसे शत-प्रतिशत साकार करने में उन्हें अभी प्रयास करना होगा. सनद रहे कि डीएम ने यहां कमान संभालने के साथ ही शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने को टारगेट पर लिया है. इसी मद्देनजर उन्होंने लगातार औचक निरीक्षण कर जिले के स्कूलों की जमीनी हकीकत से पहले खुद रूबरू हुए. अब कसौटी पर कसना आरंभ कर दिया है. नतीजा हाथों-हाथों सामने आने लगा है. शिक्षकों की उपस्थिति पर इसका असर पड़ने लगा है. निरीक्षण की नहीं हो सकी किसी को खबरडीएम की पहल पर गुणवत्ता शिक्षा लाने के प्रयास में बीआरपी एवं सीआसीसी से सीधे संवाद के साथ ही प्रखंडों के प्रशासनिक व शिक्षा अधिकारियों से कराये गये औचक निरीक्षण में बड़ी संख्या में शिक्षकों का ससमय स्कूल नहीं पहुंचने का स्याह पक्ष सामने आना अपने-आप में महत्वपूर्ण है. समन्वयकों को दिये गये टास्क का असर जानने का प्रयास जब डीएम ने गत 7 जनवरी को किया तो 11 विद्यालयों के 63 शिक्षक पूर्वाह्न 10 बजे तक अपने स्कूल नहीं पहुंच पाये थे. पुरानी परंपराओं की खामी को ध्यान में रखते हुए इस बार निरीक्षण का कार्यक्रम इस तरह बनाया कि कानों-कानों किसी को खबर नहीं हो सकी और सच्चाई सामने आ गयी. इसकी सबसे बड़ी कामयाबी यही हुई कि स्कूल के समय अन्यत्र रहने वाले शिक्षक भी विद्यालय कैंपस छोड़ने में खतरा महसूस रहे हैं. कार्य प्रणाली में दिखने लगा परिवर्तनइस परिणाम स्वरूप स्कूली माहौल में बदलाव के संकेत भी मिलने लगे हैं. स्कूल की समय-सीमा तय होने लगी है. इसे दुरुस्त किया जा रहा है. धूल जमे ब्लैक-बोर्ड साफ होने लगे हैं. चौक-डस्टर की तलाश होने लगी है. बंद पड़े शौचालय को चालू करने पर मंथन होनी शुरू हो गयी है. बैठक के बाद जो समन्वयक इस भ्रम में थे कि उनकी कार्य प्रणाली को कोई सुधार नहीं सकता, वे भी सचेत होने लगे हैं. प्रखंडों व संकुलों का भ्रमण शुरू कर दिया है. शिक्षा व्यवस्था के लिए यह शुभ संकेत है. बदलनी होगी अभिभावकों को अपनी भूमिकास्कूली शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए जिस तरह के प्रयास आरंभ हुए हैं, उसमें एक के बाद एक कड़ी से 6 लाख स्कूली बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकेगी. हलांकि इसके लिए शिक्षकों के साथ ही अभिभावकों एवं जनप्रतिनिधियों को भी अपनी वर्त्तमान की भूमिका में बदलाव लाना होगा. सिर्फ अपने पाल्यों के मिड डे मील व मिलनेवाली सरकारी राशि प्राप्ति तक ही अपनी जागरूकता सीमित रखेंगे तो यह अभियान सफल नहीं हो सकता. वैसे पटरी से शिक्षा व्यवस्था जितनी दूर निकल गयी है, उसमें इस तरह के निरंतर अभियान से ही वापस इसे पटरी पर लाया जा सकता है. इसे बॉक्स में डालें::::::::::::::::::::ये भी हैं गुणवत्ता शिक्षा की राह के रोड़ेआवंटन के बावजूद समय पर शिक्षकाें को वेतन नहीं मिलनास्कूलों में शिक्षकों का असमान वितरणसमय पर मध्याह्न भोजन के चावल का आवंटन नहीं होनाससमय पाठ्य पुस्तकाें की अनुपलब्धतानियमित शिक्षक-अभिभावक संगोष्ठी का नहीं होनापाठ्यक्रम व समय सारिणी की अनुपलब्धताबालिकाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था का नहीं होनाबड़ी संख्या में बच्चों का फर्जी नामांकन होनायोजनाओं के लिए सिंगल विंडो सिस्टम का नहीं होना

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