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दोपहर तक बहती रही गीत-संगीत की रसधार

दोपहर तक बहती रही गीत-संगीत की रसधार समदाउन के साथ त्रिदिवसीय मिथिला विभूति पर्व संपन्नशास्त्रीय संगीत ने बांधी समांफोटो. 8परिचय. कार्यक्रम के समापन के मौके पर संस्थान के महासचिव डा. बैद्यनाथ चौधरी, बुद्धिनाथ झा, कुंज बिहारी मिश्र व अन्य.प्रतिनिधि, दरभंगाविद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित त्रि दिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह संपन्न हो गया. […]

दोपहर तक बहती रही गीत-संगीत की रसधार समदाउन के साथ त्रिदिवसीय मिथिला विभूति पर्व संपन्नशास्त्रीय संगीत ने बांधी समांफोटो. 8परिचय. कार्यक्रम के समापन के मौके पर संस्थान के महासचिव डा. बैद्यनाथ चौधरी, बुद्धिनाथ झा, कुंज बिहारी मिश्र व अन्य.प्रतिनिधि, दरभंगाविद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित त्रि दिवसीय मिथिला विभूति पर्व समारोह संपन्न हो गया. बुधवार की शाम जमी गीत-संगीत की महफिल गुरुवार की दोपहर तक जमी रही. समदाउन के संग इसका विधिवत समापन हो गया. एमएलएसएम कॉलेज में आयोजित इस समारोह के अंतिम दिन लोग गीत-संगीत का कार्यक्रम आरंभ हुआ. अन्य साल की तुलना में काफी लंबा खिंचे उद्घाटन सत्र के समाप्त होने के बाद रात करीब 11 बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ हुआ. हालांकि उद्घाटन सत्र के क्रम में भी गीत-संगीत का कार्यक्रम बीच-बीच में चलता रहा, लेकिन पूर्णरूप से गीत-संगीत की महफिल 11 बजे रात के करीब जाकर ही जमी. मैथिली मंच के स्थापित कलाकारों ने जब मंच संभाला तो मानो गीत-संगीत की रसधारा प्रवाहित हो उठी. विद्यापति संगीत के बाद लोक गायन आरंभ हुआ तो दर्शक-श्रोता सुधबुध खोकर इसमें डूब से गये. आमता घराना के राम कुमार मल्लिक के साथ सुबह में कुंज बिहारी मिश्र, अरविंद कुमार झा आदि ने शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया तो पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया. इससे पहले पूनम मिश्र, सुरेश पंकज, रंजना झा, पुष्कर भारती, दुखीराम रसिया, रामबाबू झा, नंद, ओम प्रकाश सिंह, कन्हैया आदि ने अपने सधे स्वर में तान छेड़ी तो श्रोताओं के दिलों के तार झंकृत हो उठे. आधी रात ढलने के बाद जब शिव के नचारी, महेशवाणी, सोहर आदि का दौर आरंभ हुआ तो एकबारगी मंच पर मिथिला की समृद्ध संस्कृति साकार हो उठी. इसी बीच डा. नलिनी चौधरी, उषा पासवान के भाव नृत्य ने जहां समां बांध दिया, वहीं धरोहर मंच के कलाकारों की प्रस्तुति से दर्शकों के दिल में कला की हिलोरें उठा दीं. बीच-बीच में संचालक रामसेवक ठाकुर व अद्भुतानंद श्रोताओं को गुदगुदाते रहे. इस कलात्मक त्रिवेणी में कलाप्रेमी गोते लगाते रहे. यह आयोजन गुरुवार के पूर्वाहृन 11.05 बजे तक निर्वाध चलता रहा. एक से एक प्रस्तुति देकर कलाकारों ने श्रोताओं को बांधे रखा. रात में कार्यक्रम का आनंद से वंचित रहे श्रोता सुबह में आ जमे. परंपरानुरूप समदाउन के बाद गोसाउनिक गीत ‘जय-जय भैरवि, असुर भयाओनि’ के संग इसका समापन हो गया.फिर हावी होती नजर आयी फूहड़ताफीकी पड़ी लोक संगीत की मिठासपैरोडी के सहारे ही तालियां बटोरने की कोशिश करते रहे कलाकारदरभंगा. मिथिला-मैथिली हित समर्पित मंच के रूप में प्रसिद्ध विद्यापति सेवा संस्थान के तीन दिनी आयोजन के अंतिम दिन एक बार फिर गीतों में फूहड़ता हावी होती नजर आयी. कई कलाकारों ने स्तरीयता की सीमा तोड़ दी. इससे मैथिली कलाप्रेमियों को काफी निराश हाथ लगी. उल्लेखनीय है कि करीब पांच साल पहले तक इस कार्यक्रम में फूहड़ता काफी हावी हो गयी थी. कलाप्रेमियों के अनुसार इसकी शुरुआत दशकों पूर्व शुरू हो गयी थी. इसी वजह से हजारों की संख्या में जिस आयोजन में महिला श्रोताओं की भीड़ जुटा करती थी, वह धीरे-धीरे समाप्त हो गयी. अश्लील गीतों के बढ़ते चलन के कारण होनेवाली हुल्लड़बाजी को देखते हुए लोग सपरिवार इसमें आने से कट से गये. दूसरा दुष्प्रभाव यह सामने आया कि आधी रात होते-होते भीड़ काफी कम हो जाती थी. लगभग पांच साल पहले से इस पर नकेल कसा जाना शुरू हुआ. फलत: इसकी स्तरीयता मेनटेन होने लगी. नतीजतन पूरी रात आयोजन स्थल एकबार फिर से खचाखच भरा रहने लगा. मौजूद श्रोताओं के अनुसार इसमें पूनम मिश्र ने हद पार कर दी. रामबाबू झा की प्रस्तुति भी स्तरीय नहीं रही. पुष्कर भारती के द्वारा गाया एक गीत तो ऐसा था जिसे आकाशवाणी से हो रहे जीवंत प्रसारण में प्रसारित करने में परेशानी हुई. मैथिली अपनी शालीनता व समृद्ध कला के कारण मशहूर है. ऐसे में अगर फिल्मी गीतों के तर्ज पर पैरोडी सुनने को मिले तो कलाप्रेमियों को निराशा होना लाजमी है. कई कलाकार पैरोडी पर ही तालियां बटोरने की कोशिश करते दिखे. अपनी गायकी के लिए मशहूर कुंज बिहारी मिश्र तक पैरोडी का सहारा लेते नजर आये. सस्थान के महासचिव डा. बैद्यनाथ चौधरी के अनुसार संपन्न 42वें आयोजन में मैथिली लोक संगीत की मिठास फीकी पड़ी नजर आयी. श्रोताओं को खूब खली कमला बाबू की कमीदरभंगा. सांस्कृतिक मंच के सिद्धहस्त संचालक के रूप में मशहूर कमलाकांत झा की कमी इस आयोजन में सबको खली. श्रोता पहले ही दिन से उन्हें खोजते नजर आये. सांस्कृतिक कार्यक्रम को समर्पित अंतिम दिन के कार्यक्रम में जुटी भारी भीड़ से उनके नाम की आवाज बीच-बीच में उठती सुनी गयी. उद्घाटन सत्र में ही दर्शक दीर्घा से कई बार श्रोताओं ने कहा ‘ कमलाबाबू के बजाउ ने कहां छथि’. हलांकि संचालक ने इस पर ध्यान नहीं दिया. उल्लेखनीय है कि मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष कमला कांत झा के संचालन के श्रोता कायल हैं. अपने अलग अंदाज में वे श्रोताओं को बांधे रखते हैं. हालांकि अंतिम दिन के कार्यक्रम में वे पूरी रात पिछले कई साल से नजर नहीं आते, लेकिन इस साल तो उनकी पूरे आयोजन में झलक तक नहीं मिली. वैसे जानकारों का कहना है कि वे संस्थान की गतिविधि से क्षुब्ध चल रहे हैं, इसी वजह से इस साल वे कहीं नहीं दिखे.

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