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कम अवधि वाले धान की प्रजाति का करें चयन

मानसून के सामान्य से कम रहने की संभावना पर किसानों को जारी किया समसामयिक सुझाव दरभंगा. मानसून के सामान्य से कम रहने की संभावना को देखते हुए किसानों राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विभाग ने सलाह दी है कि कम अवधि वाले धान की प्रजाति का चयन करें. इसकी बुआई कम क्षेत्र में निचली भूमि […]

मानसून के सामान्य से कम रहने की संभावना पर किसानों को जारी किया समसामयिक सुझाव दरभंगा. मानसून के सामान्य से कम रहने की संभावना को देखते हुए किसानों राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विभाग ने सलाह दी है कि कम अवधि वाले धान की प्रजाति का चयन करें. इसकी बुआई कम क्षेत्र में निचली भूमि में करें अथवा जहां सिंचाई की उत्तम व्यवस्था हो वहीं लगावें. जल की कम आवश्यकता वाली फसल जैसे- अरहर का चयन कर सकते हैं. गरमा सब्जियों में तापमान बढ़ने से पानी के आवश्यकता में वृद्धि होने की संभावना है. इसलिए साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई करते रहें. मूंग, उरद की तैयार फलियों की तुड़ाई कर लें तथा हरी खाद के लिए उसके पौधों को मिट्टी पलटने वाले हल से जमीन में गाड़ दें. भिंडी फसल में माइट कीट का प्रकोप दिखाई देने पर इथियॉन नामक दवा के 1़5 से दो मिली लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. खरीफ प्याज की खेती के लिए नर्सरी (बीजस्थली) की तैयारी करें. स्वस्थ पौध के लिए नर्सरी में गोबर की खाद अवश्य डालें. खरीफ प्याज के लिए एन. 53, एग्रीफाउंड डार्क रेड, अर्का कल्याण, भीमा सुपर किस्में अनुशंसित हैं. बीज गिराने के पूर्व बीजोपचार कर लें. बीज की दर 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें.मिर्च के खेत में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दे, तदुपरांत इमिडाक्लोप्रिड एक मिलीलीटर तीन लीटर पानी की दर से घोल बनाकर सुबह अथवा शाम के वक्त छिड़काव करें. तैयार लीची तोड़ने के बाद लीची के बगीचों की जुताई कर गोबर की खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग कर सिंचाई करें. पशुओं के प्रमुख रोग एन्थ्रेक्स, ब्लैक क्वार्टर (डकहा) एवं गलघोंटु से बचाव के लिए पशुओं को टीके लगावें.

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