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लोग कराने लगे बीमा

भूकंप के झटके ने किया मजबूर दरभंगा : हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्र होने के कारण दरभंगा जिला हाई सिस्मिक जोन के अंतर्गत आता है.अर्थात जिला पर भूकंप का खतरा लगातार बना रहता है. उच्च तीव्रता के भूकंप आने पर सबसे ज्यादा नुकसान मकानों को होता है. शनिवार से लगातार हो रहे भूकंप के झटकों से […]

भूकंप के झटके ने किया मजबूर
दरभंगा : हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्र होने के कारण दरभंगा जिला हाई सिस्मिक जोन के अंतर्गत आता है.अर्थात जिला पर भूकंप का खतरा लगातार बना रहता है.
उच्च तीव्रता के भूकंप आने पर सबसे ज्यादा नुकसान मकानों को होता है. शनिवार से लगातार हो रहे भूकंप के झटकों से नेपाल में जो त्रसदी मची वह किसी से छिपी नहीं है. नेपाल की तस्वीर बताती है कि भूकं प में मकानों का क्या हश्र होता है. ऐसे कई उदाहरण पूर्व में देश के विभिन्न भागों में भी देखने को मिले हैं. 1934 व 1988 के भीषण भूकंप में दरभंगा में भी काफी नुकसान हुआ. हालांकि इस बार भूकंप से उस रुप में क्षति का आकलन सामने नहीं आया है. यह थोड़ी राहत की बात हो सकती है. लेकिन भविष्य में ऐसा संकट न आवे यह कहना मुश्किल है.
बावजूद जिले में मकानों के बीमा से संबंधित जो आंकड़ें मिले हैं वह यही दर्शातें हैं कि क्षेत्र में लोगों में इस दिशा में काफी उदासीनता है. हालांकि लोगों की नींद खुली है और मकानों का बीमा कराने के प्रति जागरुक हुए हैं.
दरभंगा जैसे आर्थिक रुप से पिछड़े जिले में अधिकांश लोग अपने जीवन में एक अदद मकान तैयार कर लेने को अपनी उपलब्धि मानते हैं. भूगर्भ शास्त्रियों की माने तो इस क्षेत्र में कभी भी उच्च तीव्रता के भूकंप आ सकते हैं.
ऐसे में जरा सोचिये कि जिनकी पूरी जिंदगी की कमाई एक मकान बनाने में लग जाती है. अगर वह मकान क्षतिग्रस्त हुआ या पूरी तरह ध्वस्त हो गया तो उनपर क्या बीतेगी. लोगों के जीवन के साथ ही उनके भौतिक संपदाओं की सुरक्षा के लिए बीमा के क ई प्रावधान हैं लेकिन जागरुकता के अभाव में लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते. बीमाकर्मियों की माने तो जिला में मकानों का बीमा करानेवालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है.
बीमा के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव
न्यू इंडिया इंश्योरेंश कंपनी के शाखा प्रबंधक विकास चंद्र पाठक ने बताया कि क्षेत्र के लोगों में बीमा की प्रवृति नहीं है. आम आदमी इसे बेकार समझते हैं. बीमा की महत्ता वे उसके मिलने वाले रिटर्न का आंकलन कर निर्धारित करते हैं. हालांकि बीमा का मतलब रिस्क कवर करना भी होता है. जिसे लोग तरजीह नहीं देते. उन्होंने बताया कि मकानों के बीमा कराने पर मामूली प्रीमियम अदा करने पड़ते हैं. लेकिन जागरुकता के अभाव में लोग इसे बेकार मानते हैं. मकान के बीमा की प्रीमियम राशि सबसे न्यूनतम है फिर भी लोग इसका लाभ नहीं उठाते हैं.
श्री पाठक ने बताया कि सामान्य बीमा के प्रति लोगों की उदासीनता का आलम यह है कि अगर शहर में वाहन चेकिंग लगातार हो तो बीमा कंपनियों में वाहनों के बीमा के लिए कतार लगती है अन्यथा लोग वाहनों का भी बीमा नहीं कराते. अभिकर्ता प्रेमशंकर कर्ण ने बताया कि मकान निर्माण के लिए जो बैंक से लोन लेते हैं उनका तो बीमा स्वत: हो जाता है, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या जिला में बहुत कम है.
इसके अतिरिक्त इक्का दुक्का लोग ही हैं जो अपने मकानों का बीमा कराते हैं. उन्होंने कहा कि लोगों यह समझना होगा कि प्राकृतिक विपदा कभी भी आ सकती है. ऐसे में मकानों का बीमा होने पर किसी भी प्रकार की क्षति की स्थिति में लोगों को सामान्य प्रीमियम पर राहत मिल सकती है.

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