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डंफ की थाप पर फाल्गुनी मस्ती में डूबे लोग

कमतौल . बांसुरी की स्वर लहरिया व डंफ की थाप पर थिरकते कदम़ धमाल की फाल्गुनी मस्ती के बीच सरोबार होती लोक संस्कृति. कुछ इसी प्रकार का नजारा था शनिवार की शाम बसंतोत्सव के अवसर पर अहिल्यास्थान स्थित गांधीनगर टोले पर आयोजित बसंतोत्सव कार्यक्रम का़ बजरंग म्यूजिकल ग्रुप की ओर से आयोजित बसंतोत्सव कार्यक्रम में […]

कमतौल . बांसुरी की स्वर लहरिया व डंफ की थाप पर थिरकते कदम़ धमाल की फाल्गुनी मस्ती के बीच सरोबार होती लोक संस्कृति. कुछ इसी प्रकार का नजारा था शनिवार की शाम बसंतोत्सव के अवसर पर अहिल्यास्थान स्थित गांधीनगर टोले पर आयोजित बसंतोत्सव कार्यक्रम का़ बजरंग म्यूजिकल ग्रुप की ओर से आयोजित बसंतोत्सव कार्यक्रम में आये कई अतिथि कलाकारों ने फाल्गुन की ऐसी छटा बिखेरी कि दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया़ बसंतोत्सव का आरंभ माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से शुरू हो जाता है़ उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है़ लोग वासंती वस्त्र धारण कर होली और धमार के गायन,वादन कर नृत्य में विभोर हो जाते हैं़’ सरस्वती कंठाभरण’ में लिखा है कि सुवसंतक वसंतावतार के दिन को कहते हैं़ वसंतावतार अर्थात जिस दिन बसंत पृथ्वी पर अवतरित होता है़ यह दिन वसंत पंचमी का ही है़ ‘मात्स्यसूक्त’ और ‘हरी भक्ति विलास’ आदि ग्रंथों में इसी दिन को बसंत का प्रादुर्भाव दिवस माना गया है़ इसी दिन मदन देवता की पहली पूजा का विधान है़

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