उपेक्षा . दशकों से बेकार पड़े हैं नलकूप, खेतों में पड़ी दरार
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पदाधिकारी को भी नहीं मालूम, कितने हैं नलकूप
उपेक्षा . दशकों से बेकार पड़े हैं नलकूप, खेतों में पड़ी दरार बेनीपुर : सरकार के बहु प्रचारित कृषि रोड मैप का प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में दशकों से खराब पड़े सौ से अधिक राजकीय नलकूप मुंह चिढ़ा रहे हैं. एक ओर जहां प्रकृति के हाथों मजबूर किसान परेशान हो रहे हैं, वहीं हर खेतों […]
बेनीपुर : सरकार के बहु प्रचारित कृषि रोड मैप का प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में दशकों से खराब पड़े सौ से अधिक राजकीय नलकूप मुंह चिढ़ा रहे हैं. एक ओर जहां प्रकृति के हाथों मजबूर किसान परेशान हो रहे हैं, वहीं हर खेतों को पानी उपल्ब्ध कराने की सरकारी ऐलान उनके लिए छलावा साबित हो रहा है. कहने के लिए तो नगर परिषद के गठन से पूर्व के 22 पंचायत वाले बेनीपुर प्रखण्ड में 108 राजकीय नलकूप हैं, पर सभी विभागीय लचर कार्य प्रणाली की भेंट चढ़ कर रह गये हैं.
ये हैं नलकूप . सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बेनीपुर में पुराने 26 नवार्ड फेज तीन के 21, नवार्ड फेज आठ के 26, नवार्ड फेज नौ के 19 तथा उदवह योजना के तहत 16 राजकीय नलकूप लगाये गये, किसी न किसी कारण से दशकों से सभी बेकार पड़े हैं. इधर किसान निजी पंपसेट मालिकों के हाथों पटवन के नाम पर आर्थिक दोहन के शिकार हो रहे हैं.
हर साल होती मरम्मत, नहीं मिलता पानी . नवादा के किसान वीरेन्द्र झा कहते हैं कि कहने के लिए गांव में दो-दो सरकारी बोरिंग है. हर वर्ष मरम्मत भी किया जाता है, पर कभी हम किसान के खेतों में पानी नहीं मिलता है. वर्षा के पानी से चार बिगहा धान की रोपनी तो कर ली है, पर वर्षा रूकते ही खेतों में दरार पड़ने लगे हैं. यदि सरकारी नलकूप चालू रहता तो अभी खेतों में दरार नहीं पड़ा होता.
चोर चुरा कर ले गये सामान . जरिसों के रवीन्द्र कुमार झा एवं फूलकांत मिश्र कहते हैं कि
गांव के टोटाही मुसहरी के पास सरकारी नलकूप है.
पूर्व में जब तक यह चालू अवस्था में था तो किसान खुशहाल थे. पहले बिजली के अभाव में यह बन्द रहता था. धीरे-धीरे देख-रेख के अभाव में चोर सब कुछ चुरा कर ले गये. अब किसान भगवान भरोसे खेती करते हैं. पानी के लिए आसमान की ओर टकटकी लगाये रहते हैं. करें भी तो क्या, यहां पटवन का दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है.
न सिंचाई विभाग का कार्यालय है, न मिलते अधिकारी .वहीं बहेड़ा के राजीव मिश्र बताते हैं कि सरकारी नलकूप के रखरखाब पर प्रति वर्ष लाखों खर्च हो रहे हैं, फिर भी एक भी नलकूप चालू नहीं हो रहा. लगता है यह विभागीय संचिका तक ही सिमट कर रह गया है.
सब से परेशानी की बात तो यह है कि अनुमंडल स्तर पर सिंचाई विभाग का न तो कोई कार्यलय है और न ही कोई अधिकारी मिलते हैं. आखिर किसान अपनी इस से सम्बन्धित शिकायत भी किस से करें.
विभागीय जेइ की नजर में मात्र 23 नलकूप
मजे की बात तो यह है कि प्रखण्ड पदाधिकारी को यह तक पता नहीं कि उनके प्रखण्ड में कितने राजकीय नलकूप हैं. उसमें कितने खराब हैं. वहीं सिंचाई विभाग के कनीय अभियनता कृष्ण कुमार के पास इसकी सही जानकारी नहीं है. पूछने पर उन्होंने कहा कि मात्र 23 नलकूप हैं. इसमें मात्र छह चालू हैं. उन्होंने कहा कि विशेष जानकारी लेनी हो तो मेरे दरभंगा स्थित कार्यालय आ जायें सब मिल जायेगा. इधर जेई भले ही क्षेत्र के आधा दर्जन नलकूप के चालू होने का दाबा कर रहे हैं, पर जमीनी हकीकत इससे कोंसो दूर है.
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