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स्वास्थ्य विभाग में सड़ रहीं करोड़ों की पुस्तकें

लापरवाही का खामियाजा . योजना से वंचित हो रहे हैं लोग रेफरल व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी नहीं हो पाता है प्रचार मोतिहारी : स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से करोड़ों रुपया की लागत से प्रचार-प्रसार के लिए छपने वाली किताबें पोस्टर, बैनर सड़ कर नष्ट हो रही है. यदि किताबों की डाक कर बिक्री […]

लापरवाही का खामियाजा . योजना से वंचित हो रहे हैं लोग

रेफरल व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी नहीं हो पाता है प्रचार
मोतिहारी : स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से करोड़ों रुपया की लागत से प्रचार-प्रसार के लिए छपने वाली किताबें पोस्टर, बैनर सड़ कर नष्ट हो रही है. यदि किताबों की डाक कर बिक्री कर दिया जाये, तो विभाग को करोड़ों रुपया का सालाना राजस्व की आमदनी होगी. लेकिन विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि किताबें, बैनर, पोस्टर आते ही उसी तरह रखे-रखे सड़ जाती है. केंद्र व राज्य सरकार की ओर से चलायी जा रही स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं के प्रचार-प्रसार एवं अद्यतन जानकारी के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति से करोड़ों रुपये की लागत से किताबें, बैनर, पोस्टर छपकर आती है, जो बिहार के सभी जिलों के जिला स्वास्थ्य समिति को भेजी जाती है.
वहां से इन किताबों, बैनर, पोस्टर को संबंधित पीएचसी को भेजी जाती है. ताकि सरकार के द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का प्रसार-प्रचार हो. लेकिन धरातल पर ऐसा नहीं होता है. राज्य स्वास्थ्य समिति से ज्यों ही किताबें छप कर जिला स्वास्थ्य समिति को आती है. गोदामों में रख दिया जाता है. जिला स्वास्थ्य समिति द्वारा सभी पीएचसी को यह जानकारी दे दी जाती है कि इन योजनाओं के लिए किताबें बैनर, पोस्टर, हैंडबिल आ गयी है. इसे ले जाये. लेकिन अब पीएसवी ले जाए या नहीं. इसकी जिम्मेदारियां किसी की नहीं रहती. पीएचसी ले जाये तो ठीक अन्यथा गोदाम में सड़ गल कर नष्ट हो जाते है. तब तक कार्यक्रम भी समाप्त हो जाता है. उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है. उपयोगिता समाप्त होने के बाद कर्मचारी उस बैनर, पोस्टर को अपने घर में पर्दा या बिछावन के रूप में उपयोग करते है.
पदाधिकारी नियुक्त करने का भेजा गया था प्रस्ताव: राज्य स्वास्थ्य समिति ने फरवरी 2016 में सिविल सर्जन को एक प्रस्ताव भेजा था कि एक आइइसी नोडल पदाधिकारी की बहाली करें ताकि वे इन किताबों, बैनर, पोस्टर को सभी पीएचसी को जिम्मेदारी पूर्वक भेजे. लेकिन इस प्रस्ताव का जवाब राज्य स्वास्थ्य समिति को नहीं भेजा गया. मामला अधर में लटका हुआ है और विभागीय उदासीनता से सड़ रही है.

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