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चीनी चुनौती के आगे बेबस मेहसी का बटन उद्योग

पुरानी व जुगाड़ तकनीक और कच्चा माल की अनुपलब्धता है बड़ी वजह पूर्वी चंपारण : कभी बिहार की शान रहा मेहसी का सीप बटन उद्योग इन दिनों भीषण संकट के दौर से गुजर रहा है. तकनीकी रूप से अपडेट न होने, कच्चा माल की उपलब्धता में परेशानी, चीन की स्पर्धात्मक चुनौती आदि वजहों ने देश […]

पुरानी व जुगाड़ तकनीक और कच्चा माल की अनुपलब्धता है बड़ी वजह

पूर्वी चंपारण : कभी बिहार की शान रहा मेहसी का सीप बटन उद्योग इन दिनों भीषण संकट के दौर से गुजर रहा है. तकनीकी रूप से अपडेट न होने, कच्चा माल की उपलब्धता में परेशानी, चीन की स्पर्धात्मक चुनौती आदि वजहों ने देश के इस अनूठे कुटीर उद्योग को बंदी की कगार पर पहुंचा दिया है. कभी इस छोटे से कसबे के आसपास 160 से अधिक लघु कारखाने थे और 10 हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष तौर पर इस उद्योग पर निर्भर थे. यहां तैयार होने वाले सीप बटन की इतनी मांग थी कि पूरा करना मुश्किल था.
आज आधे से अधिक कारखाने बंद हो गये हैं. जो चालू हैं, वे घाटे में चल रहे हैं. बेहद कम मजदूरी मिलने के कारण अब औरतें और बुजुर्ग ही इस रोजगार में रुचि ले रहे हैं, वे भी सीप की घिसाई से उड़ने वाले कैल्शियम की वजह से दमे का शिकार हो रहे हैं. इस इलाके के एक स्कूल सब इंस्पेक्टर द्वारा 1908 में शुरू किया गया सीप बटन का यह अनूठा उद्योग पिछले सौ से अधिक साल से पूर्वी चंपारण जिले के इस कसबे का आर्थिक
चीनी चुनौती के आगे…
आधार रहा है. इस कसबे के आसपास की 13 पंचायतों में 160 से अधिक इकाइयां स्थापित हैं और हाल-हाल तक यहां सालाना 35 करोड़ से अधिक बटन तैयार होते रहे हैं. आज भी दुनिया भर में मोप बटन (मदर ऑफ पर्ल्स) की काफी मांग है. मगर कई वजहों से यह उद्योग पिछले कुछ साल में चीन से पिछड़ रहा है.
बथना गांव के उद्यमी मो मुकीम कहते हैं. हमें एक हजार बटन तैयार करने में 200 रुपये से अधिक की लागत लग जाती है, जबकि खरीदार पौने दो सौ से अधिक की कीमत देने के लिए तैयार नहीं हैं. वे कहते हैं, चीन से इससे भी सस्ते मोप बटन इससे बेहतर क्वालिटी में उपलब्ध हो जा रहे हैं. वे इस गड़बड़ी की दो वजहें बताते हैं. पहला, अच्छी गुणवत्ता वाला सीप, जो हरदोई जिले के गर्रा नदी से आता था, वह काफी महंगा हो गया है. दूसरा, हमलोग लोकल मशीन से काम करते हैं, जिससे एक सीप से एक ही बटन बना पाते हैं, जबकि आधुनिक मशीनों से एक सीप से पांच-पांच बटन तक बनाये जा रहे हैं.
मेहसी के उद्यमियों को सीप और दूसरा कच्चा माल उपलब्ध कराने वाले व्यापारी संजय कुमार गुप्ता इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, पिछले दिनों यूपी सरकार ने वहां से सीप लाने पर रोक लगा दिया है. अपनी सरकार भी इस संबंध में कोई कदम नहीं उठा रही. लिहाजा सीप चोरी-छिपे आता है और महंगा हो जाता है.
चीन की चुनौती से जूझ रहे उद्यमियों ने लागत कम करने के लिए मजदूरी की दर कम कर दी है. आज की तारीख में बटन बनाने वाले कारीगरों को एक हजार बटन बनाने के बदले सिर्फ 20 से लेकर 50 रुपये ही मिलते हैं. लिहाजा युवाओं की रुचि इस उद्योग से घटती जा रही है और यहां सिर्फ औरतें और बुजुर्ग ही काम करने के लिए उपलब्ध हैं. कई जगह तो छोटे-छोटे बच्चे भी काम करते नजर आते हैं. कुछ साल पहले यहां सीप के गहने भी बनने शुरू हुए थे, वे भी चीन की चुनौती के आगे बेबस हैं.
हालांकि, सरकार की तरफ से इस उद्योग को मरने से बचाने के लिए फौरी कदम उठाये जा रहे हैं. दो कलस्टर की स्थापना क्रमशः बथना और मैन मेहसी गांव में की जा रही है, जहां आधुनिक मशीनों के जरिये बेहतर उत्पाद तैयार करने की कोशिश की जायेगी. मगर यह कदम नाकाफी साबित होने वाला है, क्योंकि एक तो इन दोनों कलस्टरों से सिर्फ 56 लोग ही जुड़ पायेंगे, मजदूरों की समस्या जस की तस रह जायेगी और फिर यूपी के हरदोई से सीप लाने का मसला अपनी जगह कायम है, जहां के सीप की गुणवत्ता सबसे बेहतर मानी जाती है.
सीप घिसने से निकल रही डस्ट से बीमार हो रहे हैं लोग
कभी यहां 160 से अधिक यूनिट सक्रिय थे, अब आधे से अधिक हो चुके हैं बंद
जो चालू हैं, वे घाटा उठा कर काम करने को मजबूर हैं
महज 20 से 40 रुपये प्रति हजार की मजदूरी पर काम करने को विवश हैं मजदूर
बुजुर्ग, औरतें और किशोर-किशोरियां ही कर रही हैं मजदूरी का काम
बाढ़पीड़ितों पर अधिकारी दें ध्यान

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