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रावण ने कुबेर पर आक्रमण कर पुष्पक विमान छीना

बक्सर : रामलीला समिति बक्सर के नेतृत्व में आयोजित रामलीला में चौथे दिन रामलीला मंचन के दौरान रावण, मेघनाथ, दिग्विजय व पृथ्वी पुकार प्रसंग का मंचन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं को दिखाया गया कि शादी के पश्चात रावण कुबेर पर आक्रमण कर उनसे पुष्पक विमान छीन लेता है. जब उसे पता चलता है कि त्रिकुट […]

बक्सर : रामलीला समिति बक्सर के नेतृत्व में आयोजित रामलीला में चौथे दिन रामलीला मंचन के दौरान रावण, मेघनाथ, दिग्विजय व पृथ्वी पुकार प्रसंग का मंचन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं को दिखाया गया कि शादी के पश्चात रावण कुबेर पर आक्रमण कर उनसे पुष्पक विमान छीन लेता है. जब उसे पता चलता है कि त्रिकुट पर्वत पर ब्रह्मा जी द्वारा बनायी गयी सोने की लंका है तो रावण वहां जाता है और यक्षों से लंका छुड़ाकर स्वयं राजा बन जाता है. रावण के यहां राक्षसों की सेना बढ़ जाती है.

बढ़े हुए सेना को देखकर रावण अपने सभी योद्धाओं से हवन, जप, तप, श्राद्ध आदि में विघ्न बाधा डालने का आदेश देता है. अभिमानी रावण ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. उसने अपने बड़े पुत्र मेघनाथ को इंद्र आदि देवताओं को बंदी बनाने के लिए भेज देता है.
इंद्र आदि सभी देवतागण अपने प्राणों की रक्षा करते हुए कंद्राओं में छिप जाते हैं. देवलोक में मेघनाथ संग्राम कर सभी देवताओं को ब्रह्मफास में बांधकर रावण के पास ले आता है. रावण ने सभी देवताओं को अपना दास बना लिया और सभी को अपने सेवा कार्य में लगा लिया. रावण द्वारा ऋषियों और संतों पर भी अत्याचार किया जाने लगा.
वह मेघनाथ को आदेश देकर पंचवटी पर रहने वाले सभी ऋषि मुनि, संतों का रक्त एक घड़े में खिंचवा लेता है. संतों का रक्त खींचने पर ऋषि क्रोधित होकर श्राप दे देते हैं कि रावण तू जहां इस रक्त को रखेगा अकाल पड़ जायेगा और घड़े से एक दिव्य शक्ति लेगी जो राक्षसों के विनाश का कारण बनेगी.
रावण ने उस घड़े को जनकपुर की सीमा में गड़वा दिया. इधर देवी पृथ्वी इस अत्याचार को नहीं सहन कर सकी.वह सभी देवताओं के पास गयी जहां देवताओं ने प्रभु से विनती की. देवताओं को प्रभु ने दर्शन देते हुए कहा कि मैं शीघ्र ही राजा दशरथ के गृह में दुष्टों का नाश एवं भक्तों को सुख प्रदान करूंगा.
कुबेर के पुत्रों को नारद जी ने दिया शाप
मंचन करते कलाकार
बुधवार को दिन में कृष्ण लीला के दौरान ऊंखल ( ओखली ) बंधन लीला प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें कुबेर के पुत्र नलकुबड़ व मणिग्रीव गोमती नगर में स्नान कर रहे होते हैं. तभी वहां देवर्षि नारद जी उपस्थित होते हैं.
वहां उपस्थित सभी यज्ञ बालक देवर्षि को प्रणाम करते हैं परंतु कुबेर के दोनों पुत्र नारद जी का उपहास करने लगते हैं. यह देखकर नारद जी उन दोनों भाइयों को जड़वत देने का श्राप देते हैं.यह देखकर नलकुबड़ व मणिग्रीव देवर्षि से अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करते हैं. नारद जी को दोनों बालकों पर दया आ जाती है. उन्होंने कहा कि तुम जड़ तो हो जाओगे परंतु द्वापर में नंद यशोदा के आंगन में तुम दो इमली के वृक्ष बनोगे.
तुम्हारा नाम यमला-अर्जुन होगा और श्रीकृष्ण के द्वारा तुम्हारा उद्धार होगा. इधर श्रीकृष्ण का सखा मदमंगल कन्हैया को मटकी फोड़ने को उकसाया जाता है. श्रीकृष्ण मटकी फोड़ देते हैं. जब एक सखी यशोदा को कृष्ण के करतूत की सूचना देती है तो मैया कृष्ण को ऊंखल से बांध देती हैं. श्रीकृष्ण ऊंखल को घसीटते हुए दोनों वृक्षों के समीप स्पर्श कर यक्ष बालकों का उद्धार करते हैं.
इस प्रसंग के दृश्य की मार्मिक व जीवंत मंचन को देखकर मौजूद श्रद्धालु गद्गद हो गये.

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