बक्सर : फाल्गुन शुक्ल महीने की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है. इस बार यह एकादशी 17 मार्च को है. इस दिन महादेव को रंग-गुलाल, अबीर, भांग, धतूरा, मंदार पुष्प, विल्लवपत्र चढ़ाने की परंपरा है.
इससे जीवन में उत्साह व समृद्धि मिलती है. आपसी कटुता मिटती है. पूरे वर्ष महादेव की कृपा बनी रहती है. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन काशी में होली पर्व का शुभारंभ माना जाता है.
रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार काशी पहुंचे थे. इस पर्व में शिवजी के भक्त रंग, अबीर व गुलाल उड़ाते, खुशियां मानते चलते हैं. देवाधिदेव बाबा विश्वनाथ को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है और उन्हें मां गौरा के गौने पर लाया जाता है.
होलिकाष्टक में आठ दिनों तक शुभ संस्कार करने पर रोक : होलिकाष्टक और मीन मलमास एक साथ शुरू हो रहे हैं. होलिकाष्टक में आठ दिनों तक शुभ संस्कार करने की मनाही है.
इसी दिन से मीन मलमास शुरू होकर एक महीने तक चलेगा. सूर्य जब मीन राशि में प्रवेश करता है तो सूर्य मलीन अवस्था में होता है. चूंकि सूर्य को विवाह का कारक ग्रह माना जाता है, सूर्य के मलीन अवस्था में होने के कारण विवाह समेत अन्य संस्कार इस दौरान नहीं किये जाते हैं. सूर्य 14 मार्च को मीन राशि में प्रवेश कर गया. यह 14 अप्रैल तक विद्यमान रहेगा. सूर्य जब मीन राशि से निकल कर मेष राशि में प्रवेश करेगा, तब ही विवाह जैसे संस्कार पुन: शुरू होंगे.
महादेव की कृपा से सालों भर भरा रहेगा उत्साह
शास्त्रीय मान्यता है कि होलिकाष्टक के दौरान किये जानेवाले शुभ कार्यों का उचित फल नहीं मिलता. इस मान्यता के चलते नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि नहीं किये जा सकेंगे. इस बार होलिकाष्टक 14 मार्च से शुरू होकर 20 मार्च होलिका दहन तक रहेगा. 21 मार्च को होली (धुलेंडी) मनाई जायेगी.
रंगभरी एकादशी को कैसे करें पूजा
आंवला वृक्षों में श्रेष्ठ कहा गया है, इसका हर भाग इंसान को लाभ पहुंचाता है और इसी वजह से ये भगवान विष्णु को प्रिय है. इस दिन भगवान शंकर का ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप भी विशेष रूप से फलदायी माना गया है. इस दिन भोले की पूजा हर दुखों को हर लेती है और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं.