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किताबों के इंतजार में ही बीत जाता है मासूमों का छह माह

भागलपुर : सरकारी स्कूलों में नामांकन के लिए भीड़ नहीं लगने या फिर अभिभावकों का सरकारी स्कूलों को प्राथमिकता नहीं देने की वजह किताबों की परेशानी भी है. सरकारी स्कूलों में प्राय: हर वर्ष बच्चों को किताबों का संकट झेलना पड़ता है. सत्र शुरू होने के बाद छह माह तक किताबें नहीं मिल पाती हैं […]

भागलपुर : सरकारी स्कूलों में नामांकन के लिए भीड़ नहीं लगने या फिर अभिभावकों का सरकारी स्कूलों को प्राथमिकता नहीं देने की वजह किताबों की परेशानी भी है. सरकारी स्कूलों में प्राय: हर वर्ष बच्चों को किताबों का संकट झेलना पड़ता है. सत्र शुरू होने के बाद छह माह तक किताबें नहीं मिल पाती हैं और शिक्षक सिलेबस के अनुमान के आधार पर पढ़ाते हैं. छह माह बाद जब किताबें पहुंचती भी है, तो तय समय पर सिलेबस पूरा नहीं हो पाता है और बच्चे अगली कक्षा में प्रवेश कर जाते हैं.

दरअसल बिहार टेक्स्ट बुक की पुस्तकें हर साल राज्य सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक नि:शुल्क रूप से दी जाती हैं. प्रत्येक बच्चों को किताबों का सेट दिया जाता है, जिसमें उनके क्लास की सभी पुस्तकें शामिल होती हैं. लेकिन यह बच्चों तक समय पर नहीं पहुंच पाने के कारण किसी काम का नहीं रह जाता है.
सबसे बड़े संकट से उबरना जरूरी
बिहार शिक्षा परियोजना कार्यालय ने वर्ष 2014 में 558745 बच्चों के लिए किताबों की मांग की थी. अकादमिक सत्र समाप्त होने में महज तीन माह बचे थे, लेकिन 143649 बच्चों को किताबें उपलब्ध नहीं हो पायी थी. वर्ष 2015 में 590375 बच्चों के लिए किताबों की मांग जिला कार्यालय से की गयी थी. लेकिन छह माह तक बच्चे किताबों का मुंह नहीं देख पाये थे. इससे पहले वर्ष 2011, 2012 व 2013 में भी मुख्यालय द्वारा पूरी किताबें एक साथ नहीं भेजे जाने के कारण स्कूलों में बच्चों व शिक्षकों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गयी थी. अब 2017 के लिए भी साढ़े पांच लाख से अधिक बच्चों के लिए किताबें मांगी गयी है. नया सत्र अब शुरू होनेवाला है, लेकिन नयी किताबों का अता-पता नहीं है.

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