भीखनपुर गुमटी नंबर एक के पास प्लास्टिक की छत के नीचे पल रहे कई लोगों को क्या पता कि नूतन वर्ष का अभिनंदन हो चुका है. गरीबी रेखा के नीचे जी रहे लोगों को तो बस दो वक्त का भोजन चाहिए. अर्से से वह इसी जद्दोजहद में जुटे हैं. रेलवे लाइन के दोनों ओर बने झोपड़ियों के बाहर कंपकंपाती ठंड के बीच नंगे पांव, खुले बदन धमाचौकड़ी मचा रहे बच्चे नये साल के जश्न से कोसों दूर हैं.
गोला खाने के बाद हाथों में रैकेट लेकर वह बैडमिंटन खेलने में मस्त हैं. भीखनपुर ही नहीं मायागंज अस्पताल व बरारी हाउसिंग बोर्ड कालोनी के समीप स्थित मुसहरी, बरहपुरा, मुंदीचक समेत प्रशासन द्वारा चिह्नित एक दर्जन स्लम एरिया का यही हाल है. नये साल को लेकर गुलजार रहा बाजार. क्या-क्या नहीं बिका. पर बमुश्किल पर्व-त्योहार मनानेवाले ऐसे लोग नये साल का जश्न मनाने में लाचार हैं. जिस दिन मजदूरी मिल जाती है और परिवार का पेट भर जाता है, वही दिन उनके लिये नया साल है. न इनके पास घर-आलय हैं और न ही शौचालय. बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं पर महंगाई इतनी कि कैसे भेजें विद्यालय. इनकी पहली जनवरी तो ऐसे ही बीत जाती है.