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ज्यादा खतरनाक बन कर लौटा डेंगू वॉयरस

भागलपुर : किसी भी रोग का वायरस का वैक्टीरिया दो-तीन साल में खुद को रिएक्टिव करता है. एक बार सक्रिय रहने के बाद जब वो दुबारा सक्रिय होकर आता है तो वह पहले से ही दाेगुना खतरनाक हो चुका होता है. यही हाल है इस वक्त शहर में डेंगू के वायरस का. पहले से खतरनाक […]

भागलपुर : किसी भी रोग का वायरस का वैक्टीरिया दो-तीन साल में खुद को रिएक्टिव करता है. एक बार सक्रिय रहने के बाद जब वो दुबारा सक्रिय होकर आता है तो वह पहले से ही दाेगुना खतरनाक हो चुका होता है. यही हाल है इस वक्त शहर में डेंगू के वायरस का. पहले से खतरनाक होकर लौटा है. जेएलएनएमसीएच(मायागंज हॉस्पिटल) के अधीक्षक डॉ आरसी मंडल के मुताबिक, इस साल मायागंज हॉस्पिटल में भरती होने वाले मरीजों में से अब तक डेंगू की चपेट में करीब 60 मरीज आ चुके हैं.

यूं समझें : माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट (डॉ) कुमार अमरेश के मुताबिक, जब बैक्टरिया, वायरस शरीर पर अटैक करता है, सबसे पहला उसका सामना शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज से होता है. इनमें संघर्ष के बाद जो वैक्टीरिया और वायरस बच जाते हैं वे शरीर को बीमार कर देते हैं.
विभाग गंभीर नहीं: विभागीय अधिकारियों को पता था कि डेंगू इस बार ज्यादा कहर बरपाएगा. बावजूद विभाग ने तैयारी नहीं की. आलम यह है कि डेंगू का लार्वा ढूंढने के लिए प्रशिक्षित स्टॉफ को प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया है. जिससे इस साल अभी तक टीम का गठन तक नहीं हो पाया. अभी भी विभाग के पास लार्वा मारने वाली दवा(एमीफॉस) तक मयस्सर नहीं है.
जनवरी से लेकर 12 सितंबर तक करीब 60 मरीजों में डेंगू की पुष्टि: 45 वायरल वायरल, 35 प्रतिशत जलजनित बीमारी व 20 प्रतिशत अन्य बीमारियां से ग्रसित मरीज मायागंज हॉस्पिटल में हुए भरती.
छुपकर ताकत बढ़ा रहे बैक्टीरिया: कुछ बैक्टीरिया शरीर के अंदरूनी हिस्सों में छिपकर खुद को एंटीबॉडीज के मुकाबले मजबूत करते हैं. इस प्रक्रिया को एंटीजेनिक वेरियेशन कहते हैं. बाद में जब बाहरी बैक्टीरिया शरीर पर हमला करते हैं तो अंदर छिपे वायरस भी एक्टिव हो जाते हैं.

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