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छोड़ा आशियाना, सड़क पर ठिकाना

भागलपुर:भागलपुर-कहलगांव मार्ग पर इंगलिश गांव के समीप सड़क किनारे सबसे पहले एक जगह चिह्नित करता है बौधू ठाकुर. चारों तरफ से पहले यह सुनिश्चित करता है कि अगले एक-दो माह तक वहां डेरा डाला जा सकता है या नहीं. बुधवार को दोपहर दो बजे तक वह बांस का दो खंभा गाड़ कर उसके ऊपर एक […]

भागलपुर:भागलपुर-कहलगांव मार्ग पर इंगलिश गांव के समीप सड़क किनारे सबसे पहले एक जगह चिह्नित करता है बौधू ठाकुर. चारों तरफ से पहले यह सुनिश्चित करता है कि अगले एक-दो माह तक वहां डेरा डाला जा सकता है या नहीं. बुधवार को दोपहर दो बजे तक वह बांस का दो खंभा गाड़ कर उसके ऊपर एक बांस का एक बल्ला डालता है.

इतने में झमाझम बारिश शुरू हो जाती है और वह बल्ले के ऊपर एक सफेद प्लास्टिक डालता है. इस दौरान वह खुद भीगता रहता है और अपनी पत्नी व करीब 13 साल के बेटे को प्लास्टिक के भीतर भेजता है, जिसमें चौकी, उस पर रखे बिस्तर और चौकी के नीचे अनाज की दो-तीन बोरियां व बकरियां थीं. इतने में अचानक बौधू को याद आती है कि कुछ चीजें घर से लाना वह भूल गया है और उसे लाना जरूरी है. लेकिन उसे भय है कि जिस तरह जलस्तर बढ़ता जा रहा है, वह लौट पायेगा या नहीं.

भय की वजह यह भी थी कि एक दिन पहले मंगलवार को बगल के रामनगर गांव में एक बुजुर्ग सिंहेश्वर मंडल कटाव के कारण हुई धसान में दबने के बाद पानी के तेज बहाव में बह गये थे और उनकी मौत हो गयी थी. बौधू नाव से भी घर जाने से डर रहा था. उनके अंदर डर इस बात को लेकर भी था कि थोड़ी देर पहले ममलखा में नाव पलटने की सूचना आग की तरह फैल गयी थी. बाढ़ की विपदा केवल इंगलिश गांव के रहनेवाले बौधू ठाकुर ही नहीं झेल रहे हैं. एनएच 80 पर सड़क किनारे तंबू लगा रहे हरिवंश पासवान जैसे कई अन्य लोग भी बौधू के नये पड़ोसी बन चुके हैं. उनके साथ-साथ इंगलिश, फरका, घोषपुर, ममलखा सहित कई गांव के हजारों लोग परेशान हैं. बाढ़ उनकी जान पर बन आयी है. कोई रिश्तेदार के घर शरण लिये है, तो कोई सड़क किनारे डेरा डाल चुका है. कई लोग गांव छोड़ कर सड़क किनारे रहने के लिए आ ही रहे हैं.

अब आयी कई आफत : एक बुजुर्ग सुखो मंडल बताते हैं कि बाढ़ पीड़ितों ने गांव तो छोड़ दिया है. सड़क किनारे बस तो गये हैं, लेकिन सड़क से गुजरते ट्रक व अन्य वाहनों को देख इनकी जान कतई सुरक्षित नहीं दिख रही है. बारिश, तेज हवा के कारण भोजन पकाना मुश्किल हो रहा है. जितना अनाज ढो पाये हैं, उससे बहुत दिनों तक भोजन नहीं चल सकता. खेत डूब चुके हैं. किसानी-मजदूरी समाप्त हो चुकी है. रोजगार का संकट हो गया है. एक सप्ताह किसी तरह भोजन कर भी लेंगे, लेकिन उसके बाद क्या होगा. यह सोच कर पीड़ित परेशान हैं. थोड़ी ही दूरी पर गांव है, लेकिन वहां का शौचालय इस्तेमाल नहीं कर सकते, शौचालय डूबे हुए हैं. सड़क किनारे गंदगी से संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है. सड़क किनारे झाड़ियों से कभी भी सांप निकल आते हैं. पेड़ की टहनियों पर डेरा डाले बिडगोय झांकता रहता है.
भूसा घर में पानी, पशुओं का चारा कहां से आयेगा : इंगलिश गांव के पास एनएच के किनारे नाश्ता के दुकानदार सुग्रीव यादव बताते हैं कि गांव में भूसा घर में पानी घुस गया है. भूसा निकालना अब मुश्किल है. गांव छोड़ चुके लोग अपने साथ मवेशी भी लेकर गये हैं. मवेशी के चारे का संकट हो गया है. सड़क किनारे इतने चापाकल नहीं कि सभी लोगों को पानी उपलब्ध हो सके. पानी के लिए उनकी परेशानी काफी बढ़ी हुई है. अधिकतर चापाकल बाढ़ में डूब चुके हैं. रंजीत यादव का सवाल झकझोरता है. वे बताते हैं कि जिनके पास पक्के का मकान है, उन्होंने छत पर डेरा डाल लिया है. लेकिन जो झोपड़ी में रहनेवाले हैं, वे क्या करेंगे. राकेश यादव कहते हैं कि कुछ लोग रिश्तेदारों के घर चले गये हैं. लेकिन कई लोग इसलिए सड़कों के किनारे डेरा डाले हुए हैं कि उन्हें अपना स्थायी घर भी बीच-बीच में जाकर देखना है और दूसरी वजह है कि उनके रिश्तेदारों का घर दूर है या फिर रिश्तेदार की ऐसी आर्थिक स्थिति नहीं कि उन्हें सहारा दिया जा सके.
इंगलिश गांव की कटी सड़क, मुख्य मार्ग से संपर्क भंग : इंगलिश गांव की सड़क पानी के तेज बहाव में करीब 25 फीट बह चुकी है. इससे गांव का मुख्य मार्ग से संपर्क भंग हो चुका है. ग्रामीण चार-छह बांस लगा कर किसी तरह लोगों को पार करा रहे हैं. नीचे बहाव इतना तेज है कि बांस से फिसलने के बाद लोगों को बचाना मुश्किल जान पड़ता है. इस गांव की गलियाें से पानी का बहाव इतना तेज है कि उसकी आवाज एनएच से साफ-साफ और दिन में सुनाई देती है.

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