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श्रावणी मेला में दोनों समुदाय के लोग करते हैं कांवरियों की सेवा

सुलतानगंज : सा वन में अजगैवीनगरी में सामाजिक एकता व सौहार्द का संगम भी दिखाई देता है. सुलतानगंज में हिंदू ही नहीं मुसलिम भाई भी कांवरियों की सेवा कई प्रकार से करते हैं. कांवरिया जब बाबाधाम की यात्रा पूरी कर अपने घर लौटते हैं, तो यहां दोनों समुदायों से मिले सम्मान की चर्च करते हैं. […]

सुलतानगंज : सा वन में अजगैवीनगरी में सामाजिक एकता व सौहार्द का संगम भी दिखाई देता है. सुलतानगंज में हिंदू ही नहीं मुसलिम भाई भी कांवरियों की सेवा कई प्रकार से करते हैं. कांवरिया जब बाबाधाम की यात्रा पूरी कर अपने घर लौटते हैं, तो यहां दोनों समुदायों से मिले सम्मान की चर्च करते हैं. मुसलिम भाई भी कांवरियों की सलामती, उनकी यात्रा सुलभ हो, अपने घर सही सलामत पहुंचें,

इसके लिए अल्लाह से दुआ मांगते हैं. मुसलिम समुदाय के कई लोग यहां कांवरियाें के लिए सामग्री भी बेचते हैं. वे कहते हैं सावन में उनके लिए कांवरियाें की सेवा ही सर्वोपरि होती है. मो महमूद, मो चांद आदि कई वर्षों से कांवर की दुकान लगाते हैं. ये पूरे सावन शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते हैं. मो मुन्ना, जब्बार, मो अब्बास, मो टुनटुन, मो कलाम, मो फिरोज, मो शहनवाज आदि कांवरिया सामग्री की बिक्री करते हैं. ये कहते हैं हम लोग पूरे सावन माह कांवरियों को अतिथि मान कर उनकी सेवा में लगे रहते हैं.

मो महमूद ने बताया कि सावन में कांवरियों के सामानों की बिक्री के लिए पूरी शुद्धता बरती जाती है. मांस-मुरगा की दुकान बंद कर दी जाती है. घर में भी कोई मांस-मुरगा नहीं खाता है. यहां आने वाले कांवरियों को भी हिंदू-मुसलिम के बीच कोई फर्क नहीं दिखता.
बाबा के यहां जाने से होते हैं रिचार्ज
श्रा वणी मेला में कांवरिया बनने का सौभाग्य सभी को नहीं मिलता. जो कांवरिया बन जाते हैं, उन्हें कुछ ही दिनों के लिए ही सही, सांसारिक बाधाओं से मुक्ति जरूर मिलती है. कांवरिया पथ पर सीवान के सोनू बम, रौशन बम,अरविंद बम मिलते हैं. प्रभात खबर से बातचीत में वे कहते हैं बाबाधाम के रास्ते में कष्ट सह कर जो आनंद मिलता है, वह आनंद एसी रूम में भी नसीब नहीं है. 32 साल से देवघर जा रहे मनोज खेमका कहते हैं सात दिनों की यात्रा साल भर ऊर्जावान रखती है. बाबा के दरबार में जो सबसे बड़ी चीज मिलती है, वह है मन की शांति. बोलबम के जयघोष का फल, कांवरिया पथ पर ही देखने को मिल जाता है. कष्ट सह कर आनंद की प्राप्ति बाबा के निकट पहुंचाती है. इस हाइटेक युग में मशीन हो चुके लोग शांति के लिए भटक रहे हैं. सुलतानगंज से देवघर कांवरिया बन कर निकल जाने से अद्भुत शांति मिलती है. नालंदा, टाटानगर, असाम, दिल्ली से कांवरियों का जत्था सुलतानगंज से लगभग नौ किमी दूर मासूमगंज के आगे मिलता है. वे कहते हैं इस रास्ते का आनंद बाबा के ही तरह निराला है. कांवरिया बन जाने के बाद कोई भेदभाव किसी में नहीं होता. घर से दूर होने के बाद भी घर की याद नहीं आती. बस एक ही तमन्ना रहती है दिल में, बाबा का दर्शन हो जाये. बाबा का दर्शन होते ही मिल जाता है शांति का वो खजाना, जिसका शब्दों में व्याख्या नहीं किया जा सकता.
कोलकाता से सुलतानगंज पहुंचे गोवर्धन साहू, वंदना साहू, राजेश अरोरा,डबलू साह, राजू राम लगभग 15 वर्षों से देवघर जा रहे हैं. वे कहते हैं कि व्यवस्था के भरोसे शिव के भक्त नहीं चलते हैं. लेकिन, व्यवस्था में सरकार को सुधार करने की जरूरत है. गंगा घाट से कांवरिया पथ पर सुविधा में विस्तार करने की आवश्यकता है. वे लोग कहते हैं कि बाबा पर जलार्पण से सुख, शांति व समृद्धि के साथ मन आनंदित हो उठता है. साल भर फिर कुछ कमी नहीं होती है.

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