हाल-ए-सदर अस्पताल. चिकित्सक व कर्मचारियों सहित अन्य संसाधनों की कमी
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कहने को इमरजेंसी, होता सिर्फ प्रसव
हाल-ए-सदर अस्पताल. चिकित्सक व कर्मचारियों सहित अन्य संसाधनों की कमी सुविधाओं के अभाव में सदर अस्पताल महज प्रसव केंद्र बन कर रह गया है. यहां अन्य संसाधनों के अलावा चिकित्सकों व कर्मियों की घोर कमी है. भागलपुर : लोक नायक जय प्रकाश (सदर) अस्पताल में कहने के लिए 24 घंटे की इमरजेंसी की सुविधा है. […]
सुविधाओं के अभाव में सदर अस्पताल महज प्रसव केंद्र बन कर रह गया है. यहां अन्य संसाधनों के अलावा चिकित्सकों व कर्मियों की घोर कमी है.
भागलपुर : लोक नायक जय प्रकाश (सदर) अस्पताल में कहने के लिए 24 घंटे की इमरजेंसी की सुविधा है. यहां पर हर वक्त एक चिकित्सक व दो नर्सें आपातकाल में आने वाले मरीजों के इलाज के लिए तत्पर है. लेकिन हकीकत इसके उलट है. यहां पर इमरजेंसी के नाम पर सिर्फ प्रसव के लिए प्रसूताएं आती हैं. इमरजेंसी में आने वाले मरीजों(इसमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल) की आैसत संख्या आठ है. इतने मरीज तो जिले के सभी पीएचसी में इलाज के लिए आते हैं. इमरजेंसी के नाम यहां पर डिलेवरी, उल्टी-दस्त, डायरिया, अतिसार व हल्के-फुल्के रूप से चोटिल लोगों का इलाज होता है.
एक चिकित्सक, दो नर्स और चार बेड की इमरजेंसी. सदर अस्पताल में कहने को तो पांच वार्ड में मरीजों के लिए 40 बेड उपलब्ध है. लेकिन इमरजेंसी वार्ड में सिर्फ चार बेड है. यहां पर मरीजों के लिए एक चिकित्सक व दो नर्स की ड्यूटी शिफ्टवाइज लगती है. यहां पर भरती एक मरीज के परिजन ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रविवार की रात नौ बजे एक महिला डिलेवरी के लिए आयी थी. लेकिन यहां पर चिकित्सक के न रहने पर कहीं और लेकर चले गये. इसी तरह की वारदात करीब दो माह पहले भी हुई थी. तातारपुर थानाक्षेत्र में एक 13 साल की बालिका के साथ दुष्कर्म हुआ था.
उसका मेडिकल कराने के लिए पुलिस सदर अस्पताल में रात करीब साढ़े दस पहुंची थी. लेकिन यहां पर नाइट शिफ्ट में तैनात चिकित्सक नहीं थी. उनके आवास पर स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी गयी थी लाने के लिए. तब जाकर रात करीब एक बजे उस किशोरी का मेडिकल हुआ.
प्रसव को छोड़, बाकी हर प्रकार के केस होते हैं मायागंज रेफर
केस नंबर एक :
चार जून को दोपहर 12:30 बजे भीखनपुर का निवासी संदीप कुमार मार्ग दुर्घटना में घायल हो गया. आनन-फानन में परिजन उसे लेकर सदर हॉस्पिटल लेकर गये. यहां पर चिकित्सक न रहने की दशा में मौजूद स्वास्थ्यकर्मियों ने बाहर से ही उसे मायागंज रेफर कर दिया. परिजनों ने पूछा तो बताया कि हड्डी के डॉक्टर नहीं है यहां. यह स्वास्थ्यकर्मियों का बहाना नहीं था, बल्कि सच्चाई है. जिम्मेदार बताते हैं कि सदर अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं है.
शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं
केस नंबर दो :
पांच जून को सीमा देवी (काल्पनिक नाम) को प्रसव के लिए सदर अस्पताल में लाया गया. नार्मल डिलेवरी में उसे पुत्र पैदा हुआ. शाम तक बच्चे की हालत बिगड़ी तो यहां पर मौजूद नर्स ने परिजनों को बताया कि यहां पर शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं है, इलाज के लिए बाहर ले जाना पड़ेगा. इसके बाद परिजन जच्चा-बच्चा को लेकर कहीं और चले गये. यहां पर आने वाले मरीज के लिए हड्डी एवं शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं है. ऐसे में इन रोगों से संबंधित मरीजाें को इलाज के लिए मायागंज हॉस्पिटल या फिर कहीं और जाना पड़ता है.
सदर अस्पताल की इमरजेंसी में एक जून को सात, दो को सात, तीन को आठ, चार को चार, पांच को 13 और छह जून को तीन बजे तक आठ मरीज भरती हुए थे. इन मरीजों में लगभग सभी मरीज डिलेवरी के ही थे. पूछने पर एक नर्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां पर डिलेवरी के अलावा कभी-कभार डिसेंट्री, लूज मोशन, इंज्यूरी के मरीज आते हैं.
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