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शहर में दिल व दिमाग के डाॅक्टर नहीं

भागलपुर : भागलपुर शहर वर्तमान में देश के उन चुनिंदा शहरों में शुमार हो चुका है, जिसे भविष्य में स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होना है. इसकी तैयारी मुकम्मल हो रही है, तो शहर के स्मार्ट होने की आहट आम शहरी को सुनाई देने लगेगी. स्मार्ट सिटी के इस चमक के पीछे एक स्याह […]

भागलपुर : भागलपुर शहर वर्तमान में देश के उन चुनिंदा शहरों में शुमार हो चुका है, जिसे भविष्य में स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होना है. इसकी तैयारी मुकम्मल हो रही है, तो शहर के स्मार्ट होने की आहट आम शहरी को सुनाई देने लगेगी. स्मार्ट सिटी के इस चमक के पीछे एक स्याह पहलू यह भी है कि इस शहर में दिल-दिमाग, किडनी रोग समेत आधा दर्जन बीमारियों के विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है.मरीजों को इलाज के लिए पटना या फिर बाहर जाना पड़ता है.

भागलपुर में करीब चार सौ चिकित्सक हैं. शहर में कहने को एक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, एक सदर अस्पताल, करीब दो दर्जन क्षेत्रीय अस्पताल व 350 नामी-गिरामी चिकित्सकों के क्लिनिक व नर्सिंग होम हैं. मरीजों के इलाज के लिए करीब 400 चिकित्सकों की भारी-भरकम फौज भी है, लेकिन न्यूरोलॉजिस्ट (मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ), नेफ्रोलॉजिस्ट (किडनी रोग विशेषज्ञ) व यूरोलॉजिस्ट (मूत्र रोग विशेषज्ञ) कार्डियोलॉजिस्ट (हृदय रोग विशेषज्ञ),
गैस्ट्रोलॉजिस्ट एक भी नहीं है. शहर में एक भी प्लास्टिक सर्जन नहीं है. जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल में एक मात्र न्यूरो सर्जन डॉ पंकज कुमार हैं, लेकिन इनके पास इस विधा से जुड़े चिकित्सकों की टीम न होेने के कारण हॉस्पिटल में दिमाग से जुड़ी बीमारियों का आपरेशन नहीं हो पाता है. इन बीमारियों के ग्रसित मरीजों को इलाज के लिए पटना, सिलीगुड़ी व कोलकाता जाना पड़ता है.
शहर ट्रॉमा सेंटर व मायागंज की इमरजेंसी में वेंटिलेटर नहीं. ट्रॉमा सेंटर किसी भी अस्पताल की रीढ़ होती है लेकिन जेएलएनएमसीएच में इस सुविधा नहीं है. हॉस्पिटल परिसर में बना भानु कुसुमावती वार्ड का निर्माण ट्रॉमा सेंटर के लिए किया गया था, लेकिन वर्तमान में यह एक वार्ड में तब्दील हो गया है. यहां कहने के लिए इमरजेंसी वार्ड है, लेकिन आपातकाल में मरीजों के लिए जरूरी वेंटिलेटर व काॅर्डियक मॉनिटर इस इमरजेंसी की बिल्डिंग में नहीं है. पेंइंग वार्ड में भी कार्डियक माॅनीटर और वेंटीलेंटर नहीं है.
लाखों की एबीजी फांक रही धूल. जेएलएनएमसीएच में कुछ साल पहले लाखों रुपये की एबीजी(आर्टिरियल ब्लड गैस) मशीन खरीदी गयी थी. यह मशीन वर्तमान में करीब 12 लाख रुपये में आती है. यह मशीन वर्तमान में धूल फांक रही है. एबीजी टेस्ट से आइसीयू में भरती मरीजों के खून में ऑक्सीजन, पोटैशियम, कार्बन डाइआॅक्साइड व बाइ कार्बोनेट लेबल की जांच की जाती है. यह नहीं होने से मरीजों का सही से इलाज नहीं हो पाता है.
यह मशीन करीब पांच साल पहले लगी थी, जो कभी नहीं चली. एक एबीजी मशीन पीजी शिशु रोग विभाग के नीकू वार्ड में लगी है, जो लगने के कुछ महीने बाद बिगड़ी जो आज तक नहीं चली.
एमआरआइ जांच करानी है तो पटना जाइये. स्मार्ट सिटी में शुमार भागलपुर क्षेत्र के लाेगों के लिए एक और मायूसी की खबर है. पूरे शहर में आइसीयू जांच की सुविधा नहीं है. अगर किसी को दिमाग में ट्यूमर है या नहीं जानना है, तो उसे पटना जाना होगा. इसके अलावा स्पोर्ट्स इंज्यूरी, मस्क्यूलोस्क्लेटल की समस्या, रीढ़ की हड्डी व प्रोस्टेट जांच के लिए एमआरआइ (मैग्नेटिक रिसोनेंस इमेजिंग) जांच की सुविधा भागलपुर में नहीं. यह सुविधा पटना, सिलीगुड़ी या कोलकाता में मिलेगी.

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