इसके बाद उपेंद्र मंडल के कहने पर भक्ता मंडल ने उसे गोली मार दी. अपराधियाें ने उन पर सात -आठ गोलियां बरसायी. उपेंद्र मंडल ने घायलावस्था में उसकी जेब से 30 हजार रुपये निकाल लिये. अस्पताल में उसके बेटे मनीष यादव ने बताया कि मेरे पिताजी को राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में गोली मारी गयी है. वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ें, इसलिए विरोधी गोली मार कर उनकी हत्या करना चाह रहे थे. उन्होंने बताया कि हमलोगों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को समर्थन किया था. तभी से राजनितिक विरोधी हमलोगों से खुन्नस पाले हुए हैं.
मुखिया, पंचायत समिति , सरपंच व प्रमुख आदि पदों के प्रत्याशियों पर खतरा बढ़ गया है. वर्तमान व संभावित प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. मालूम हो वर्षों कि पूर्व में इस क्षेत्र में पहले दो अपराधिक गुटों के बीच वर्चस्व लेकर कई खूनी संघर्ष हो चुके हैं. घोड़े की टाप और बंदूकों की आवाज से लोग शाम ढलने से पहले की घरों में सिमट जाते थे. किसान खेतों में जाने से डरते थे. हालांकि इस खूनी खेल के कई बड़े सूरमा अब हाशिये पर चले गये हैं. लेकिन प्रमुख पति को गोली मारने की घटना से एक फिर से वर्चस्व की चिनगारी भड़कने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.