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उपेक्षित हैं शहीद व स्मारक

सुलतानगंज : सुलतानगंज में शहीदों के स्मारक उपेक्षित हैं. रेलवे स्टेशन के मालगोदाम के समीप 15 अगस्त 1942 को अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए आधा दर्जन वीर सपूत शहीद हो गये थे और दर्जन भर जख्मी हो गये थे. एक शहीद परमेश्वर झा का नाम उजागर हुआ था. इस जगह महेंद्र सिंह ने शहीद स्मारक […]

सुलतानगंज : सुलतानगंज में शहीदों के स्मारक उपेक्षित हैं. रेलवे स्टेशन के मालगोदाम के समीप 15 अगस्त 1942 को अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए आधा दर्जन वीर सपूत शहीद हो गये थे और दर्जन भर जख्मी हो गये थे. एक शहीद परमेश्वर झा का नाम उजागर हुआ था. इस जगह महेंद्र सिंह ने शहीद स्मारक के रूप में गांधी जी की प्रतिमा स्थापित करायी .

वर्तमान में गांधी प्रतिमा स्थल उपेक्षित पड़ा हुआ है. यही हाल जेपी स्मारक का भी है. अकबरनगर के बसंतपुर गांव के शहीद अशोक कुमार निराला के नाम से प्रवेश द्वार बनाने की घोषणा पर अब तक अमल नहीं हो पाया है. 18 अक्तूबर 2012 को नक्सली हमले में अशोक शहीद हो गये थे. उस वक्त नेताओं ने उनके नाम पर प्रवेश द्वार बनाने की घोषणा की थी.

बाबू सियाराम सिंह ने आजादी के लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अंग्रेजों ने सियाराम बाबू की गिरफ्तारी के लिए इनाम का भी घोषणा की थी. लेकिन, देश के आजाद होने तक अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार नही कर सके. सियाराम सिंह को दूसरे कुंवर सिंह की उपाधि मिली थी.
कर्णभूमि व अंग क्षेत्र को राष्टीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीवित रखने का सार्थक प्रयास बाबू सियराम सिंह ने किया था. लेकिन उस महान सपूत काे आज भी राजकीय सम्मान नहीं मिल पाया है. उनकी जयंती व पुण्यतिथि नहीं मनायी जाती है. सियाराम सिंह स्मृति मंच के संयोजक राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि उनका पैतृक गांव तिलकपुर आज भी उपेक्षित है.

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