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किसी भी शहर से गुजरें वो भागलपुर लगता है

किसी भी शहर से गुजरें वो भागलपुर लगता हैप्रभात खबर का आयोजन टाउन हॉल में डॉ मुन्नवर राणा व डॉ राहत इंदौरी की शाम-ए-महफिलशायरों ने कहा, प्रभात खबर दिलों काे जोड़ने का काम करता हैविपिन/दीपक, भागलपुरलताहत, सिरमी, मुहब्बत, गंगा-जमुनी तहजीब से लेकर शुरू हुआ शाम-ए-महफिल भागलपुर पर जाकर समाप्त हुआ. ओस-अश्क से भीगी रात में […]

किसी भी शहर से गुजरें वो भागलपुर लगता हैप्रभात खबर का आयोजन टाउन हॉल में डॉ मुन्नवर राणा व डॉ राहत इंदौरी की शाम-ए-महफिलशायरों ने कहा, प्रभात खबर दिलों काे जोड़ने का काम करता हैविपिन/दीपक, भागलपुरलताहत, सिरमी, मुहब्बत, गंगा-जमुनी तहजीब से लेकर शुरू हुआ शाम-ए-महफिल भागलपुर पर जाकर समाप्त हुआ. ओस-अश्क से भीगी रात में मुनव्वर राणा ने ‘हर इक खुशबू का झोंका हमें काफूर लगता है, किसी भी शहर से गुजरें हमें वो भागलपुर लगता है’ सुनाकर श्रोताओं से खूब तालियां बटोरी. इस अवसर पर हॉल श्रोताओं से ठसाठस भरा था. हर प्रस्तुति पर वाह-वाह की गूंज और प्रस्तुति के दौरान सुई गिरने की आवाज सुनायी देनेवाला सन्नाटा. प्रभात खबर के इस कार्यक्रम को मुन्नवर राणा और डॉ राहत इंदौरी ने लोगों के दिलों से जुड़नेवाला सराहनीय पहल करार दिया.शायरों की दुनिया मुख्तसर होती है…प्रभात खबर की ओर से टाउनहॉल में आयोजित शाम-ए-महफिल में डॉ राहत इंदौरी ने अना, इश्क, और खुलूस को जोड़ते हुए एक से एक बेहतरीन शेर-गजल सुनाया तो मां, बेटी, बूढ़े, युवा, बेटे के रिश्तों पर आधारित प्रस्तुति देकर आंखों के काेरों को नम कर दिया. मुन्नवर राणा ने ‘हमारे कद को दर्जी का फीता क्या बतायेगा’ सुना कर शायरी की दुनिया में अपनी शहंशाही साबित करने की दिशा में पहला रचनात्मक कदम बढ़ा दिया. फिर शायरों की दुनिया का पता कुछ ऐसे बताया ‘शायरों की दुनिया मुख्तसर होती है, जो आपके(श्राेताओं) दिल में रहते हैं’. आप तो अंदर हैं, फिर बाहर कौन हैडॉ राहत इंदौरी ने मंच संभाला और अपनी पहली पेशकश करते हुए ‘किसने दस्तक दी दिल पर कौन है, आप तो अंदर हैं फिर बाहर कौन है’ कहा तो तालियों की गूंज में हाॅल डूब गया. इसके बाद तो एक के बाद एक शायरी गूंजती रही. ‘इंतेजामात नये सिरे से संभाले जाये, जितने कमजर्फ हैं महफिल से निकाले जाये, मेरा घर आग की लपटों में घिरा है लेकिन, जब मजा है तेरे आंगन में उजाला जाये’ सुना दिया जिसे सुन लोग वाह-वाह कर उठे. फिर उन्होंने श्रोताओं की नब्ज थामते हुए माहौल में रुमानियत का रस घोला और ये सुनाया ‘मेरी सांसों में समाया भी बहुत लगता है, और वही शख्स पराया भी बहुत लगता है, उससे मिलने की तमन्ना बहुत है, लेकिन आने-जाने में किराया बहुत लगता है.’ दिल्ली में हमीं क्यों बोलें अमन की बोली, यारों कभी तुम भी तो लाहौर से बोलोहुकूमत पर तंज कसते हुए डॉ राहत ने कुछ यूं शेर सुनाया ‘जो तौर है दुनिया का उसी तौर से बोलो, बहरों का इलाका है जरा जोर से बोलो, दिल्ली में हमीं क्यों बोलें अमन की बोली, यारों कभी तुम भी तो लाहौर से बोलो.’ लगभग साढ़े तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में मुन्नवर राणा और डॉ राहत इंदौरी अपनी एक से एक बेहतरीन प्रस्तुति देकर कभी लोगाें को ख्वाबों की दुनिया में ले गये तो कभी हकीकत से रूबरू कराते रहे. कभी हुकूमत से अदावत की तो कभी माटी की इबादत की. इस तरह सर्द रात में शेर-ओ-शायरी की महफिल गरम होती रही.

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