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बड़ा सवाल, तय समय में बन पायेगा क्या बाइपास?

बड़ा सवाल, तय समय में बन पायेगा क्या बाइपास?इंट्रो : शहर में जाम आज की सबसे बड़ी समस्या है. इस समस्या के बड़े निदान के रूप में बाइपास का निर्माण देखा जा रहा है. लेकिन बाइपास निर्माण क्या समय से पूरा हो पायेगा. यह बड़ा प्रश्न है. अभी तक तो यही होता रहा है कि […]

बड़ा सवाल, तय समय में बन पायेगा क्या बाइपास?इंट्रो : शहर में जाम आज की सबसे बड़ी समस्या है. इस समस्या के बड़े निदान के रूप में बाइपास का निर्माण देखा जा रहा है. लेकिन बाइपास निर्माण क्या समय से पूरा हो पायेगा. यह बड़ा प्रश्न है. अभी तक तो यही होता रहा है कि एक के बाद एक उलझन और समस्या आती रही और बाइपास का निर्माण टलता रहा. लेकिन अब बाइपास का निर्माण शुरू हो गया है. तो उम्मीद करें कि समय से बाइपास का निर्माण पूरा हो जायेगा?लोगो : क्या गारंटी कि तय समय में बनेगी सड़कनेशनल हाइवे को मिली है बाइपास बनाने की जिम्मेवारी, पिछले 10 साल में निर्धारित लक्ष्य के अनुसार नहीं हुआ कामपथ निर्माण विभाग के अंतर्गत आता है एनएचब्रजेश, भागलपुरबाइपास की बात करें, तो यहां बताया जा रहा है कि निर्माण कार्य प्रगति पर है. मिट्टी भरने के काम से निर्माण कार्य शुरू हुआ है. फिर भी यह यकीन नहीं हो रहा है कि निर्धारित समय पर सड़क बन जायेगी? विभाग ने बाइपास निर्माण के लिए दो साल का समय निर्धारित किया है. डीएम ने तो एक साल आठ माह में ही सड़क बनाने की ताकीद की है. लेकिन पिछले 10 साल में कोई भी सड़क निर्धारित समय पर नहीं बनी है. 14 साल में भी जमीन अधिग्रहण पूरा नहीं वस्तुस्थिति यह है कि जमीन अधिग्रहण का काम 14 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ है. वर्ष 2000 में जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई के दौरान विभाग जीरोमाइल के पास करीब 115 मीटर तक जमीन अधिग्रहण करना भूल गया था. इसको लेकर अब तक रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय को भी नहीं भेजी गयी है. ………………………………………………………………………………………………..विक्रमशिला सेतु एप्रोच पथ : सात माह का काम, दो साल बाद भी अधूरालगभग 10.60 किमी लंबी विक्रमशिला एप्रोच पथ को सात माह में बनना था, मगर दो साल बाद भी यह अधूरा है. तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री ललन सिंह ने कांट्रैक्टर साईं इंजीकॉन को 31 दिसंबर 2014 तक बनाने का डेट लाइन दिया था. उस तय सीमा तक भी सड़क नहीं बन सकी थी. इसके बाद कांट्रैक्टर से काम छीन लिया गया. दोबारा टेंडर की प्रक्रिया अपनायी गयी और बेगूसराय की ब्रॉडवे कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी गयी है. इस कांट्रैक्टर को भी पांच माह में सड़क बनाना था, निर्धारित समय 13 अक्तूबर से दो माह ज्यादा हो गया है और आधी से अधिक सड़क का काम बाकी है. कुल मिला कर स्थिति यह है कि लगभग दो साल में भी सड़क बन कर तैयार नहीं हो पायी है. एप्रोच पथ का निर्माण 28 फरवरी 2014 में शुरू हुआ है. घूरनपीर बाबा रोड : बनने में लगा छह माह का अतिरिक्त समय तिलकामांझी से घूरनपीर बाबा चौक तक एक किमी लंबी सड़क भी निर्धारित अवधि में नहीं बनी थी. यह काम साईं इंजीकॉन को सौंपा गया था. सड़क बनाने के लिए तीन माह का समय निर्धारित किया गया था. सड़क बनना एक मार्च 2014 से शुरू हुआ, जिसे 31 मई 2014 में पूरा करना था. कांट्रैक्टर को एक साथ तीन सड़कें बनानी थी. घूरनपीर बाबा रोड को निर्धारित तिथि के भीतर बनाने के लिए कांट्रैक्टर ने दिलचस्पी नहीं ली. नतीजा, निर्धारित तिथि 31 मई 2014 से छह माह बाद सड़क बनी. स्थिति यह है कि नवनिर्मित सड़क छह माह भी नहीं टिकी. फिलहाल जर्जर हो गयी है. वैकल्पिक बाइपास : सात माह के बजाय डेढ़ साल में बनी सड़क वैकल्पिक बाइपास की बात करें, तो एक किमी लंबी यह सड़क महज सात माह में बननी थी, लेकिन इसे बनने में लगभग डेढ़ साल लगा. कांट्रैक्टर साई इंजीकॉन को बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. निर्माण का कार्य निर्धारित तिथि 28 फरवरी 2014 में शुरू किया गया. इसे 27 सितंबर 2014 में बना कर तैयार करना था. लेकिन मार्च 2015 तक बन पायी. यानी, सड़क बनने में निर्धारित तिथि 27 सितंबर 2014 से छह माह ज्यादा का समय लगा था. स्टेशन चौक से इंजीनियरिंग कॉलेज तक एनएच-80 : निर्धारित तिथि से छह माह ज्यादा लगा समय स्टेशन चौक से इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच सात किमी लंबी सड़क को बनने में निर्धारित तिथि से छह माह ज्यादा लगा था. ज्यादा समय लगने के बाद भी विभाग और ठेकेदार दोनों ने मिल कर जैसे-तैसे सड़क निर्माण का कार्य को फाइनल कर दिया था. सड़क बनाने की जिम्मेदारी बादल युवराज कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौंपी गयी थी. उनकी ओर से 25 जनवरी 2013 के बाद से सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया गया. उन्हें 24 अप्रैल 2014 तक में सड़क बना कर तैयार करना था. मगर नवंबर से पहले सड़क नहीं बन सकी. एनएच विभाग और कांट्रैक्टर पर जब चारों ओर से दबाव बनने लगा, तो आनन-फानन में सड़क का निर्माण कार्य फाइनल कर दिया. इस चक्कर में नाला बनाना भी भूल गये. अंत में नाला निर्माण की योजना को यह कह कर ड्राॅप कर दिया गया कि जहां नाला बनना है, वह जगह अतिक्रमित है. निर्माण कार्य के दौरान ही सड़क टूटने लगी थी. कौन सी सड़क निर्धारित समय से कितने माह बाद बनी है. तिलकामांझी-बरारी रोड (03 किमी): निर्धारित समय : 06 दिसंबर 2012-05 फरवरी 2013 -निर्धारित तिथि से पांच माह बाद बनी सड़क -भीखनपुर-बरहपुरा रोड (0.31 किमी)निर्धारित समय : 05 नवंबर 2012-13 दिसंबर 2012 -निर्धारित तिथि से तीन माह ज्यादा लगा समय तिलकामांझी-घूरनपीर बाबा रोड(एक किमी)निर्धारित समय : 30 अगस्त 2010-27 फरवरी 2011 -निर्धारित तिथि से छह में ज्यादा लगा समय विक्रमशिला सेतु एप्रोच रोड (15 किमी)निर्धारित समय : 01 मार्च 2009-31 अगस्त 2009-निर्धारित तिथि से तीन माह ज्यादा समय लगा जगदीशपुर-सन्हौला रोड (18.75 किमी)निर्धारित समय : 08 अगस्त 2008-31 मार्च 2010 -निर्धारित तिथि से छह माह ज्यादा समय लगा -तिलकामांझी-चंपानगर रोड (8 किमी)निर्धारित समय : 24 जनवरी 2007-23 जनवरी 200808 अगस्त 2008- 31 दिसंबर 2010 -निर्धारित तिथि से तीन माह ज्यादा समय लगा घंटा घर से खलीफाबाग चौक व कोतवाली चौक होकर तातारपुर तक (1.60 किमी)निर्धारित समय : 04 फरवरी 2009-03 अगस्त 2009 -निर्धारित समय से दो माह ज्यादा समय लगा एसएम कॉलेज से कचहरी व भीखनपुर होकर मिरजानहाट तक (03 किमी)-निर्धारित समय : 06 अगस्त 2008 से 31 मार्च 2009 -निर्धारित तिथि से छह माह ज्यादा समय लगा तिलकामांझी से बरारी रोड (03 किमी)निर्धारित समय : 06 अगस्त 2008-05 फरवरी 2009 -निर्धारित तिथि से दो माह ज्यादा समय लगा वैकल्पिक बाइपास (10.55 किमी)निर्धारित समय : 08 जनवरी 2007-07 अक्तूबर 200802 जून 2008-01 दिसंबर 2008 निर्धारित तिथि से पांच माह ज्यादा समय लगा बॉक्स मैटर निर्धारित समय पर नहीं बनने वाली सड़क के गुणवत्ता की गारंटी नहींनिर्धारित समय पर नहीं बनने वाली सड़क के गुणवत्ता की गारंटी नहीं रहती है. इसका उदाहरण स्टेशन चौक से इंजीनियरिंग कॉलेज तक जाने वाली करीब सात किमी लंबी सड़क है. निर्धारित समय एक साल एक माह रखा गया था. निर्धारित तिथि 24 अप्रैल 2014 तक में सड़क नहीं बन सकी. इससे बनने में निर्धारित समय से सात माह ज्यादा का समय लगा था. 25 जनवरी 2013 के बाद से काम शुरू किया था. निर्धारित तिथि जैसे पूरा हुआ, वैसे कार्य की प्रगति इतनी तेज कर दी कि गुणवत्ता का ख्याल ही नहीं रहा. नतीजा, निर्माण का कार्य के दौरान ही सड़क पर गड्ढे बनने लगे और काम फाइनल होने तक सड़क क्षतिग्रस्त हो गयी. यह तो एक मात्र उदाहरण है. शहर को जोड़ने वाली और शहर की अंदरुनी सड़क का भी हाल ठीक उसी तरह है, जो सड़कें निर्धारित समय पर नहीं बनती है. रोड प्रोजेक्ट में देरी का प्रमुख कारण कांट्रैक्टर बिजनेस के उद्देश्य से रोड प्रोजेक्ट लेता है और इस पर काम करता है. 40 से 50 प्रतिशत पैसा रख कर काम लेता है. बिजनेस बढ़ाने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट के साथ दूसरा, तीसरा प्रोजेक्ट भी लेने की कोशिश करता है. थोड़ा-थोड़ा पैसे सभी प्रोजेक्ट में लगाता है. कभी-कभार प्राक्कलन राशि से कम रेट पर प्रोजेक्ट तो हासिल कर लेता है, मगर एक प्रोजेक्ट में से पैसा नहीं निकलता है, तो वे दूसरे प्रोजेक्ट में लगा नहीं पाते हैं और इस चक्कर में फंस जाते हैं. जिस कांट्रैक्टर का मैनेजमेंट स्ट्रांग नहीं है, वे भी रोड प्रोजेक्ट में फंसते हैं. कैश फ्लो की कमी जिस कांट्रैक्टर के पास रहा, वे तो अवश्य ही फंसते हैं. रोड प्रोजेक्ट को पूरा करने में थोड़ा-बहुत भी विलंब हुआ, तो 10 प्रतिशत टाइम एक्सटेंशन चार्ज कटने लगता है. इस तरह से उनका पैसा ब्लॉक होने लगता है और रेड प्रोजेक्ट पूरा होने में विलंब होता है. जिस कांट्रैक्टर का मैनेजमेंट स्ट्रांग है, तो वे इन टाइम प्रोजेक्ट पूरा कर लेते हैं. (नोट : विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर बताया है)बाइपास योजना के तहत तीन आरओबी, एक चंपा नदी पर पुल बनना है. रेलवे से मिलने वाले समय पर आरओबी का निर्माण निर्भर करेगा. रेलवे से जैसे-जैसे समय मिलेगा, वैसे-वैसे आरओबी का निर्माण कार्य होगा. इस कारण बाइपास योजना को पूरा होने में दो-चार माह ज्यादा समय लग सकता है. हालांकि सड़क तो छह माह में बन जायेगी. फिर भी कोशिश रहेगी कि बाइपास प्रोजेक्ट को निर्धारित समय पर पूरा कर लिया जाये.सुनीलधारी प्रसाद सिंहअधीक्षण अभियंताराष्ट्रीय उच्च पथ अंचल, भागलपुर

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