29.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पहले शौचालय फिर मोबाइल

पहले शौचालय फिर मोबाइल हाल ही में गांव में एक लड़के से मुलाकात हुई। उसके हाथ में टैब था। वह कोलकाता में मजदूरी करता है और छठ में गांव आया था। इस बार उसने 13 हजार रुपये में टैब खरीदा था लेकिन उसके घर में शौचालय नही हैं। सभी खुले में शौच में करते हैं। […]

पहले शौचालय फिर मोबाइल हाल ही में गांव में एक लड़के से मुलाकात हुई। उसके हाथ में टैब था। वह कोलकाता में मजदूरी करता है और छठ में गांव आया था। इस बार उसने 13 हजार रुपये में टैब खरीदा था लेकिन उसके घर में शौचालय नही हैं। सभी खुले में शौच में करते हैं। यह एक छोटी सी कहानी है लेकिन इसके पीछे जो सच्चाई है, वह यही बताती है कि हम दिखावे के पीछे किस तरह भाग रहे हैं और कैसे उन चीजों को अभी भी नकार रहे हैं जिसका संबंध हमारे स्वास्थ्य और स्वच्छता है। लेकिन चकाचौंध ने हमारी आंखों को अपने वश में कर लिया है।गूगल करते हुए मुझे संयुक्त राष्ट्र की 2010 की एक रपट पढ़ने को मिली, जिसके अनुसार अपने देश में लोग शौचालय से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। अब बताइए, जरुरत किस चीज की है और हम किस चीज में लगे पड़े हैं। सरकार शौचालय बनाने के लिए जो पैसा देती है, वह आखिर कहां जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार देश में 54 करोड़ 50 लाख लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, वही केवल 36 करोड़ 60 लाख लोग शौचालयों का उपयोग करते हैं। यह आंकड़ा पुराना है लेकिन मेरा मानना है कि मोबाइल धारकों की बढ़ोत्तरी ही हुई होगी लेकिन शौचालय की संख्या उतनी ही होगी। अभी भी ग्रामीण समाज शौचालय को लेकर गंभीर नहीं है। सरकारी आंकड़ों पर लंबी बहस हो सकती है लेकिन ग्राउंड जीरो कुछ और कहता है। गांव-देहात में मोबाइल और महंगी बाइक आपको हर जगह मिल जाएंगे लेकिन क्या शौचालय दिखते हैं? यह बड़ा सवाल है। युवाओं को इन मुद्दों पर सोचना होगा और पहल करनी होगी। यह सब लिखते हुए मुझे डॉ बिन्देश्वर पाठक की अनूठी पहल पर बात करने की इच्छा हो रही है। उनकी संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने शौचालय के क्षेत्र में बड़ा काम किया है। बिहार से उन्होंने अपना काम आरंभ किया और आज वे दुनिया भर में जाने जाते हैं। देश और विदेश में उनके काम की सराहना की जाती है। डॉ बिन्देश्वर पाठक ने भी तो चार दशक पहले कदम ही उठाया होगा न! तो फिर हम कदम बढ़ाने से क्यों झिझक रहे हैं। मैला शब्द को हटाने के लिए, हर घर में शौचालय को शामिल करने के लिए और भी लोगों को सामने आना होगा। स्टार्टअप की बात हम सब करते हैं। इन दिनों हर कोई नया करना चाहता है। शौचालय के निर्माण और इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए क्यों नहीं कुछ हम भी नया करें। मोबाइल एप बनाने वाली कंपनियों से जुड़े युवाओं को इन विषयों पर सोचना चाहिए कि क्या ऐसा एप तैयार किया जा सकता है कि हम यह पता लगा लें कि सरकारी आंकड़ों में जिन घरों में शौचालय की बनने की पुष्टि है वह सच है यह गलत। इस तरह के प्रयास करने की जरुरत है।बताते चलें कि ‘गोटा-गो’ एक ऐसा एप है, जिसे कुणाल सेठ ने 2010 में तैयार किया था। खास बात यह है कि यदि आप घर से बाहर हैं और आपको टॉयलेट यूज करना हो तो यह एप आपको आपकी लोकेशन के आसपास के सभी पब्लिक टॉयलेट्स की जानकारी आपके मोबाइल फोन के स्‍क्रीन पर उपलब्‍ध कराएगा वो भी नक्‍शे के साथ। तो कितना कुछ हम नया कर सकते हैं, आइए बातों ही बातों में हम भी कुछ नया करते हैं समाज के लिए।गिरीन्द्र नाथ झाकिसान व ब्लॉगर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें