भागलपुर: भागलपुर के सरकारी अस्पतालों में भी बांका की तर्ज पर सफाई व्यवस्था में वर्गमीटर का घालमेल किया गया है. अंतर इतना है कि जिला मुख्यालय के अस्पतालों में तो सफाई थोड़ी अच्छी भी है पर प्रखंडों की स्थिति बेहद खराब है. वहां न तो इसकी मॉनीटरिंग होती है न ही किसी सामाजिक संगठन को इससे सरोकार रहता है. नतीजतन ठेकेदार व अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों रुपये के वारे-न्यारे किये जा रहे हैं.
2012 तक सिर्फ सदर अस्पताल के इंडोर के 14839.25 वर्गमीटर की सफाई के लिए 2671 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 82802 रुपये हर माह एजेंसी को भुगतान किया जाता था. साथ ही बाहरी परिसर व रख-रखाव के लिए 2760 रुपये प्रति माह दिये जाते थे. पर 2013 में इसी अस्पताल के इंडोर का दायरा 22924 वर्गमीटर हो गया.
इसके लिए एजेंसी को प्रति वर्गमीटर 7.60 की दर से हर माह सर्विस टैक्स के साथ 195756 रुपये का भुगतान किया जा रहा है. वहीं बाहरी परिसर के लिए 31348 रुपये का भुगतान हो रहा है. इस संबंध में सीएस डॉ यूएस चौधरी का कहना है कि यह सब सरकार के निर्देश पर हुआ है. अस्पतालों में बेहतर सुविधा देने के लिहाज से महंगाई को देखते हुए कीमत में वृद्धि हुई है.
ऐसा बढ़ा वर्ग मीटर
पहले अस्पताल के फर्श व टाइल्स लगी दीवारों की सफाई होती थी पर नये टेंडर में अस्पताल के इंडोर की छत, पूरी दीवार व फर्श भी शामिल कर दिया गया. हालांकि ऐसा सिर्फ कागजों पर ही होता है. जमीनी स्तर पर सिर्फ फर्श के साथ लगे वार्डो व परिसर की धुलाई होती है. सदर अस्पताल में पहले 20 केवीए के जेनेरेटर से आपूर्ति करने के एवज में 150 रुपये प्रति घंटा की दर से एजेंसी को भुगतान होता था. वर्तमान में 30 केवीए के जेनेरेटर से प्रति घंटा 350 रुपये की दर से भुगतान हो रहा है. इसके अलावा जिला के छह एफआरयू सेंटर जिसमें रेफरल व अनुमंडलीय अस्पताल शामिल हैं. इन सभी जगहों में सफाई व जेनेरेटर का एक ही दर तय किया गया है. सिर्फ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कम दर रखी गयी है. हालांकि यह दर भी पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ी हुई है.
यह है वर्तमान स्थिति पहले का खर्च
सदर अस्पताल – जेनेरेटर खर्च – 219602 प्रति माह (350 रुपये घंटा) 150 रुपये घंटा
बेड शीट व सजिर्कल समानों को धोने का खर्च – 32584 3775
ऐसे होनी है सफाई होता ऐसे है
सभी कमरे, वार्ड, बरामदा, शौचालय, दीवार व आंतरिक छत फर्श, शौचालय, बरामदा, वार्ड, दीवार से लगे टाइल्स
प्रत्येक ऑपरेशन के बाद वेस्टेज को निर्धारित स्थानों पर डिस्पोजल विलंब से होता है
मरीजों को ट्रॉली से पहुंचाना, बेड पेन एवं यूरिनल लगाना
नहीं होता है
मरीजों के मल, मूत्र, अवशिष्ट पदार्थो, रक्त की सफाई व गंदे कपड़ों को हटाना बेड पर गंदा होने पर मरीजों को फटकार
सफाई कार्य 24 घंटे चलता रहे कर्मी हैं पर 24 घंटे नहीं होती
फिनाइल, ग्लास क्लीनर, मॉस्किटो व कॉकरोच स्प्रे से सफाई नहीं होती है
प्रत्येक बेड से चादर, तकिया, कवर रोज धोना व आयरन करना तकिया व कवर मिलता नहीं आयरन होता नहीं
कंबल, परदा, तोशक गंदा होने पर तुरंत सफाई परदा कभी-कभार साफ, कंबल से आती बदबू
कपड़ा धुलाई वॉशिंग मशीन से हो हाथ से हो रही धुलाई
लाखों खर्च होने के बाद भी मरीजों को नहीं मिल रहा सीधा लाभ
बेहतर सुविधा के लिए सफाई का दायरा और कीमत बढ़ाया गया था ताकि मरीजों को इसका सीधा लाभ हो सके. ऐसा पूरे राज्य के अस्पतालों में किया गया था. अब तो कोई मॉनीटरिंग करने वाला ही नहीं है तो स्थिति और भी खराब होने वाली है. इन सब मुद्दों को लेकर भी सड़क व पुल की समस्या के आंदोलन के बाद हम आंदोलन करेंगे.
अश्विनी चौबे
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सह भागलपुर विधायक