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साहत्यिकार का कॉलम ::: पुरस्कार लौटाना साहत्यि का अपमान

साहित्यकार का कॉलम ::: पुरस्कार लौटाना साहित्य का अपमानराधा शैलेंद्रबढ़ती असहिष्णुता के मामले पर लेखकों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं, वैज्ञानिकों व इतिहासकारों द्वारा सम्मान लौटाना कहां तक प्रासंगिक है, ये एक विचारनीय मुद्दा है. इससे पहले भी कई दंगे और मानवता को झकझोरने वाले नरसंहार हुए, लेकिन उस समय पुरस्कार क्यों नहीं लौटाये गये. पुरस्कार या […]

साहित्यकार का कॉलम ::: पुरस्कार लौटाना साहित्य का अपमानराधा शैलेंद्रबढ़ती असहिष्णुता के मामले पर लेखकों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं, वैज्ञानिकों व इतिहासकारों द्वारा सम्मान लौटाना कहां तक प्रासंगिक है, ये एक विचारनीय मुद्दा है. इससे पहले भी कई दंगे और मानवता को झकझोरने वाले नरसंहार हुए, लेकिन उस समय पुरस्कार क्यों नहीं लौटाये गये. पुरस्कार या सम्मान हमें कोई सरकार कोई व्यक्ति विशेष नहीं, हमारा देश हमें हमारी प्रतिभा के आकलन के आधार पर देता है. और हमें कोई हक नहीं कि हम एेसे पुरस्कार को लौटा कर अपने देश को ही हाशिये रख दें. साहित्य समाज का दर्पण होता है और साहित्यकारों का ये दायित्व है कि अपनी सोच और लेखनी से इस दर्पण को प्रकाशमान करें न कि मलिन. उनकी अच्छी सोच की लेखनी न सिर्फ समाज बल्कि पूरे राष्ट्र को पथ प्रदर्शित कर सकती है. मौजूदा हालात पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है न कि सिर्फ विरोध की. संवेदना हमेशा पवित्र और निर्दोष होनी चाहिए न कि राजनीति से प्रेरित? हमने एक ऐसे देश में जन्म लिया है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है. साहित्यकारों को चाहिए कि इसे हथियार बना कर सही दिशा में इसका इस्तेमाल करें. समाधान का रास्ता हमेशा बौद्धिक हो. पारंपरिक मूल्य मान्यताओं से जुड़े और अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करते हुए एक ऐसे दृष्टिकोण की रचना करें जिसमें विरोधाभास न हो. साहित्यकार, भागलपुर

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