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साहत्यिकार का कॉलम :::: क्या जो सच-सच बोलेंगे, वे मारे जायेंगे

साहित्यकार का कॉलम :::: क्या जो सच-सच बोलेंगे, वे मारे जायेंगेचंद्रेशपिछले कुछ समय से देश के कई हिस्सों में असहिष्णुता, असुरक्षा व घृणा का ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि बकौल कवि राजेश जोशी -‘जो सच सच बोलेंगे, वे मारे जायेंगे….’. इसकी शुरुआत अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक सोच को एक नयी दिशा देने […]

साहित्यकार का कॉलम :::: क्या जो सच-सच बोलेंगे, वे मारे जायेंगेचंद्रेशपिछले कुछ समय से देश के कई हिस्सों में असहिष्णुता, असुरक्षा व घृणा का ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है कि बकौल कवि राजेश जोशी -‘जो सच सच बोलेंगे, वे मारे जायेंगे….’. इसकी शुरुआत अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक सोच को एक नयी दिशा देने वाले नरेंद्र दाभोलकर की नृशंस हत्या से हुई और इस कड़ी में दबे-कुचले लोगों की आवाज उठाने वाले जन नेता व लेखक गोविंद पनसारे और फिर जाने-माने लेखक, शिक्षाविद व साहित्य अकादमी से पुरस्कृत एमएम कलबुर्गी का नाम जुड़ गया. इसके बाद दादरी समेत कई अन्य इलाकों में बीफ का मुद्दा उछाला गया और कई निर्दोष लोग नृशंसता के शिकार बने. इन घटनाओं के विरोध में जब अपने-अपने क्षेत्र के सुविख्यात लेखकों, फिल्मकारों व वैज्ञानिकों ने प्रतीकात्मक रूप से अपने अपने पुरस्कार लौटाने शुरू किये तो उनके खिलाफ तथाकथित राष्ट्रभक्तों ने देश भर में घृणा का प्रचार शुरू कर दिया. और अब तो उनकी राष्ट्र भक्ति पर प्रश्न चिह्न लगा कर उन्हें देशद्रोही साबित करने की कुत्सित कोशिशें हो रही हैं. दरअसल यह विचार ही अपने आप में घातक है कि जो सत्ताधारी दल की विचारधारा से असहमति रखते हैं, वे देशद्रोही हैं. जबकि असहमति ही जीवंत लोकतंत्र की पहली शर्त है. असहिष्णुता के इस माहौल में कोई स्वतंत्रचेता लेखक, कलाकार कुछ भी नया नहीं रच सकता है. हमारे देश की गौरवशाली परंपरा रही है जिसमें अलग-अलग धर्म संप्रदाय के लोग सैकड़ों वर्षों से साझा संस्कृति का हिस्सा रहे हैं. इस ताने-बाने को धर्म संप्रदाय के नाम पर छिन्न-भिन्न करने की कोशिश आत्मघाती साबित होगा और देश कमजोर होगा. लेखक, कलाकार व वैज्ञानिक देश को नयी दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, लेकिन भय के माहौल में यह संभव नहीं है. पुरस्कार लौटाने का किसी को भी अधिकार है. इसलिए इस पर सवाल उठाना बेमानी होगा. जो लोग पुरस्कार लौटा रहे हैं, भारी मन से ही उन्होंने यह निर्णय लिया होगा. विरोध प्रदर्शन का इससे ज्यादा अहिंसक तरीका और क्या हो सकता है. जरूरत इस बात की है कि उनकी पीड़ा और चिंता को सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग संजीदगी से महसूस करें और संवाद के जरिये ऐसा माहौल बनायें जिससे उन्मादियों की तरह जो लोग अनर्गल बयान दे रहे हैं उन पर लगाम लगाया जा सके. तभी समाज में अमन-चैन, भाईचारे का माहौल कायम किया जा सकता है, जो चिंतन और सृजन की बुनियादी शर्त है. वरिष्ठ साहित्यकार व रंगकर्मी

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