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टल्हिा कोठी : 49.50 लाख का बना डीपीआर, फिर भी रह गया उपेक्षा का शिकार

टिल्हा कोठी : 49.50 लाख का बना डीपीआर, फिर भी रह गया उपेक्षा का शिकार जर्जर भवन पर सीरीज टिल्हा कोठी के रखरखाव पर अब बजट की दरकार संवाददाता, भागलपुर भागलपुर का एेतिहासिक टिल्हा कोठी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बनकर रह गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर जिला प्रशासन ने टिल्हा कोठी के […]

टिल्हा कोठी : 49.50 लाख का बना डीपीआर, फिर भी रह गया उपेक्षा का शिकार जर्जर भवन पर सीरीज टिल्हा कोठी के रखरखाव पर अब बजट की दरकार संवाददाता, भागलपुर भागलपुर का एेतिहासिक टिल्हा कोठी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बनकर रह गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर जिला प्रशासन ने टिल्हा कोठी के जीर्णोद्धार के लिए 49.50 लाख की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की गयी, मगर इस डीपीआर पर आगे का काम नहीं किया गया. इस तरह जीर्णोद्धार पर बनी योजना फाइलों में ही दफन हो गयी. उपेक्षा के कारण इस कोठी की स्थिति जर्जर हो चुकी है. टिल्हा कोठी के रखरखाव पर अब बजट की दरकार है. फिलहाल, तिलकामांझी विश्वविद्यालय टिल्हा कोठी के रंग-रोगन पर यूजीसी द्वारा दिये गये बजट 10 लाख से कर रहा है. नवीनीकरण पर 10 करोड़ आयी थी लागत वर्ष 1985 में टील्हा कोठी के नवीनीकरण पर 10 करोड़ खर्च किया गया था. इस राशि से फोटोग्राफ के आधार पर टिल्हा कोठी का नवीकरण किया गया था. इससे पहले यह लगभग ढह चुका था. दीवारें टूट गयी थी. नवीनीकरण कार्य उदयकांत मिश्रा के नेतृत्व में हुआ था, क्योंकि वे प्रतिनियुक्ति पर टीएमबीयू में इंजीनियर पद पर बहाल हुए थे. क्या है इतिहास रवींद्र भवन(टिल्हा कोठी) अंगरेजी शासन काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान हुआ करता था. जानकारों की मानें तो गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रुके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे. भारत भ्रमण के दौरान यूनाइटेड किंगडम की एक ट्रैवल एजेंसी की प्रबंधक क्रिस्टिन न्यूमैन ऐतिहासिक टिल्हा कोठी भी देखने आयी थीं. उनका कहना था कि पूर्वी भारत में इतनी खूबसूरत बिल्डिंग नहीं देखी. 31 मई 2012 को टिल्हा कोठी भ्रमण करने आये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके विहंगम दृश्यों को देख इतने अभिभूत हो गये थे कि उन्होंने इस पर एक पुस्तिका तैयार करने को कहा था. यह तो केवल एक बानगी है. बताया जाता है कि बनारस के राजा चेत सिंह के विद्रोह को दबाने के लिए पश्चिम बंगाल के गवर्नर हेस्टिंग क्लीवलैंड अतिथि बन कर टिल्हा कोठी में ठहरे थे. वर्तमान दृश्य अंडरग्राउंड में प्रवेश करने के लिए कोठी के पश्चिमी ओर से एक छोटा सी खिड़की के आकार का द्वार बना हुआ है. इससे अंदर झांकने पर एक छोटा-सा कमरा दिखता है. फिलहाल इस कमरे में स्थानीय कर्मचारी भगवान की तसवीरें रख कर प्रतिदिन पूजा-पाठ किया करते हैं. कमरे की दीवार पर खिड़की के आकार का ही दूसरा द्वार बना है. दूसरे द्वार के बाद अंधेरा अधिक होने की वजह से अंदर देख पाना मुश्किल है. पहले द्वार को झाड़ियों और लताओं ने जिस तरह से ढक कर रखा है उससे यह पता चल पाना मुश्किल है कि इसके अंदर जाने के यहां रास्ते हो सकते हैं. बताते हैं पुरातत्व विभाग के शिक्षक प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शिक्षक सतीश कुमार त्यागी ने बताया कि ऐसा सुना जाता है कि अंगरेज जब यहां रहते थे, तो उनके मनोरंजन के लिए अंडरग्राउंड कमरे बनाये गये थे. इसमें बने लकड़ी के चैंबर में नृत्य, संगीत, पार्टी वगैरह हुआ करती थी, लेकिन इसका कोई साक्ष्य नहीं है. उन्होंने बताया कि अंडरग्राउंड कमरे का पुरातात्विक दृष्टिकोण से संरक्षण का कार्य शुरू हो, तो कोठी के कई रहस्य सामने आ पायेंगे. उन्होंने बताया कि टिल्हा कोठी को मामूली बिल्डिंग समझना कतई उचित नहीं है. उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन ने वर्ष 2012 में टिल्हा कोठी के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव तैयार कराया था, उसमें इसके निचले तल का पुरातात्विक दृष्टिकोण से संरक्षण व सुदृढ़ीकरण का कार्य भी शामिल किया गया था. कार्य शुरू हो गया होता, तो कोठी के बारे में लोगों को कई और राज का पता चल पाता.

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