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झालरों की चमक से सराबोर हुआ बाजार

झालरों की चमक से सराबोर हुआ बाजार- दीपावली को लेकर बिजली के सजावटी झालरों से पटा है बाजार-बिजली के दीपक, मोमबत्ती व रंग-बिरंगी झालर तक हैं उपलब्ध-एलइडी लाइट के प्रति बढ़ा लोगों का बढ़ा है रुझान फोटो नंबर : मनोज जी दीपक राव, भागलपुर रोशनी का त्योहार दीपावली को लेकर बिजली के सजावटी झालरों का […]

झालरों की चमक से सराबोर हुआ बाजार- दीपावली को लेकर बिजली के सजावटी झालरों से पटा है बाजार-बिजली के दीपक, मोमबत्ती व रंग-बिरंगी झालर तक हैं उपलब्ध-एलइडी लाइट के प्रति बढ़ा लोगों का बढ़ा है रुझान फोटो नंबर : मनोज जी दीपक राव, भागलपुर रोशनी का त्योहार दीपावली को लेकर बिजली के सजावटी झालरों का बाजार सज चुका है. बाजार में चाइना पूरी तरह से हावी है. चाइना में बने रंग-बिरंगी फूल-पत्ती वाले लाइट के प्रति लोग आकर्षित हो रहे हैं, इस बीच मिट्टी के दीये रस्म अदायगी बन कर रह गयी है. आधुनिकता के दौर में हर वर्ष लाइट की क्वालिटी बदलती जा रही है और जलती हुई पुरानी लाइट भी बेकार हो रही है. लोगों का रुझान एलइडी लाइट के प्रति इतना बढ़ गया है कि सभी पुरानी चीजें लोगों के शौकिया सोच के सामने रद्दी की चीज बन रही है. 60 लाख से अधिक का होगा कारोबारबाजार इससे संबंधित छोटी-बड़ी 200 से अधिक दुकानें है. गिफ्ट दुकान वाले भी अभी तरह-तरह के डिजाइन में लाइट ला रहे हैं. इससे उनकी ग्राहकी चौगुनी बढ़ गयी है. ऐसे में दीपावली को लेकर सजावटी लाइट से केवल 60 लाख रुपये से अधिक के कारोबार की संभावना है. वॉल सिनरी से सजायेंगे घर लाइट से बने पेड़-पौधा, ओम, स्वस्तिक, जय माता दी, शुभ दीपावली, सजावटी गुलदस्ता, मिर्ची, फूल की लड़ियां, लाइट फोटो, राइस लाइट, मल्टी झालर, एलइडी लाइट, वॉल सिनरी आदि डिजाइन में लाइट दुकानों में सजायी गयी है. सजावटी सामान पर महंगाई की मारपिछले वर्ष से इस बार सजावटी बिजली झालरों पर 10 से 15 फीसदी महंगाई की मार है, जबकि इस में एक आइटम डीजे बल्व की मांग बढ़ने के साथ दाम घटे हैं. दीवाली में चाइना का घुसपैठ सजावटी लाइट के व्यवसायी विजय मंगल बताते हैं कि दुर्गा पूजा के एक सप्ताह के बाद ही दीवाली के बाजार में रौनक बढ़ती है. अब बाजार में धीरे-धीरे ग्राहकी बढ़ने लगी है. अधिकतर लाइट चाइना प्रोडक्ट है. इसे ही लोग पसंद भी करते हैं. इतने कम दाम में इतनी चमकदार लाइट यहां उपलब्ध नहीं हो पाती है. लाइट से दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश इस बार सजावटी लाइट की दुकानों में लोगों को पर्यावरण प्रेम से लोगों को लुभाने की कोशिश है. लोगों को भी सजावटी पेड़-पौधे में लाइट, लीची लाइट, अंगूर लाइट, झरना लाइट आदि भा रहा है. दूसरे लाइट दुकानदार गोल्डन कुमार ने बताया कि लोग ऐसी लाइट पसंद कर रहे हैं, जिसे साल भर तक अपने पूजा घर आदि स्थानों में सजा सके. ग्राहक दूसरी दीपावली आते ही नयी तरह की लाइट खोजने लगते हैं. इस बार बाजार में एलइडी लाइट की मांग बढ़ी है. खासकर रिमोट, डीजे व चकरी बल्व की मांग अधिक कर रहे हैं. एक कारोबारी ने बताया खुदरा दुकानदार सामान्य दिन में इस तरह की लाइट नहीं के बराबर बेच पाते हैं. कोई अवसर या त्योहार ही इसके कारोबार के उपयुक्त होता है. अभी 12 से 15 हजार रुपये तक रोजाना केवल झालर लाइट की बिक्री हो जाती है. शुभकारी है बंबू ट्री व लाफिंग बुद्धा सजावटी फूल-पत्तियों के कारोबारी गोल्डन कुमार बताते हैं सजावटी लाइट में लट्टू झालर, पाइप झालर के अलावा पूजा स्थान या अपने टेबल पर सजाने के लिए भगवान कुबेर, बंबू ट्री एवं लाफिंग बुद्धा खरीदना शुभ मान रहे हैं. इससे इसकी बिक्री एकाएक बढ़ गयी है. सामान दामसजावटी दीया 50-150सजावटी मोमबत्ती 50-150एलइडी लाइट 100-450फूल की लड़ियां 10-100वंदन वार 50-450हार माला 20-250डीजे बल्व 100चकरी बल्व 150 से 450रिमोट एलइडी झालर 200 से 650 रोप लाइट 800 से 1200शुभ दीपावली 100-150लाइट फोटो 150-300राइस लाइट 100-150मिरची लाइट 20-50मल्टी झालर 60-150लाफिंग बुद्धा 20-150बंबू ट्री 100-450झरना वाला लाइट 1000 से 1500लाइट गणेश 250बॉक्स मैटरमिट्टी के दीपक की सिर्फ रस्म अदायगीजहां एक ओर बाजार में बिजली के सजावटी झालरों ने कब्जा जमा लिया है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी के दीये कहीं-कहीं स्थान विशेष पर देखे जा रहे हैं. इससे यही लगता है कि धीरे-धीरे आधुनिकता के दौर में मिट्टी के दीये रस्म अदायगी न हो जाये. मिट्टी के दीये की बिक्री कम होने से कुम्हार का रोजगार छिन ही रहा है, वहीं चाइना में बने इन इलेक्ट्रॉनिक झालरों की बिक्री बढ़ने से स्वदेशी आंदोलन की हवा निकल गयी है. पहले एक लाख, अब 10 हजार भी नहीं बिक रहे रामसर-काजीवलीचक के धर्मेंद्र पंडित ने बताया कि छह सात वर्ष पहले तक एक लाख मिट्टी के दीये बिक जाते थे, तो परिवार खुशहाल दिखता था. अब इलेक्ट्रॉनिक झालर आ जाने से बाजार सिमटता जा रहा है. परिवार के कई लोग दूसरे धंधे से जुड़ने लगे हैं या बाहर जाकर दूसरे धंधे से जुड़ गये. पहले दीपावली आने का इंतजार रहता था, अब केवल त्योहार के रूप में इसे देखते हैं. धंधा के लिए सामान्य मौसम सा ही दिखता है. लोगों के घटने से मिट्टी का दीया बनाने में मेहनत बढ़ गया और मुनाफा घट गया. यही कहना सुखदेव पंडित, छोटन पंडित, उग्रमोहन पंडित आदि का भी है. यहां पर बनते हैं मिट्टी के दीयेशहर के रामसर, अंबे, गंगटी, मिरजानहाट, रामपुर, मारूफचक, नाथनगर, चंपानगर विषहरी स्थान आदि स्थानों पर लोग आज भी मिट्टी के दीये, मूर्ति, मिट्टी के बरतन आदि बना कर जैसे-तैसे जीवन यापन कर रहे हैं. अब उनका मुनाफा घट कर 25 फीसदी रह गयी है.

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