नवरात्र को लेकर शहर में भक्ति का माहौल-महालया आज -घोड़े पर मां का आगमन, नरवाहन पर प्रस्थान -कल कलश स्थापना के साथ शुरू होगा शारदीय नवरात्र-ऐश्वर्य, पराक्रम, ज्ञान, आत्मतत्व, विद्यातत्व और शिवतत्व की प्राप्ति के लिए शक्ति उपासना सर्वोपरिसंवाददाता,भागलपुर नवरात्र को लेकर शहर में भक्ति का माहौल बनने लगा है. मंगलवार (13 अक्तूबर) को कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र शुरू होगा. इससे पहले 12 अक्तूबर सोमवार को मां का आवाहन महालया से होगा. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को वैदिक, पौराणिक एवं तांत्रिक मंत्रोच्चार के साथ नवरात्र दुर्गा पूजा के लिए यथा विधि कलश स्थापित किया जायेगा. इसी कलश पर षष्ठी तक सभी पूजा होती हैं. महासप्तमी के प्रात:काल से प्रतिमाओं में पत्रिका प्रवेश के साथ प्राण-प्रतिष्ठा कर विजया दशमी तक पूजा का विधान है. ज्योतिषाचार्य प्रो सदानंद झा ने बताया कि ऐश्वर्य, पराक्रम, ज्ञान, आत्मतत्व, विद्यातत्व और शिवतत्व की प्राप्ति के लिए शक्ति उपासना सर्वोपरि है. शक्ति उपासना वैदिक काल से पौराणिक युग तक सात्विक एवं भाव प्रधान रहा है. पंडित रमेश चंद्र झा ने बताया कि दुर्गा सप्तशती को मंत्रों, देवी भागवत के पाठों एवं नवार्ण मंत्र जय एवं सात्विक हवन द्वारा मुक्ति की प्राप्ति होती है. आश्विन शुक्ल पक्ष में मां दुर्गा की पूजा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों फल देने वाली है. अभिजीत मुहूर्त में 11:36 से 12:24 बजे के बीच कलश स्थापन13 अक्तूबर को शारदीय नवरात्र का कलश स्थापन स्थापना अभिजीत मुहूर्त में करना शुभ है. चूंकि इस दिन चित्रा नक्षत्र एवं वैघृति योग है. इस समय कलश स्थापन करना वर्जित माना गया है. अत: मध्याह्न अभीजित मुहूर्त में 11: 36 से 12:24 बजे के बीच कलश स्थापन किया जायेगा. इसी के साथ मां दुर्गा का आगमन घोड़े पर होगा. शास्त्रों के अनुसार घोड़े पर आगमन होने से मान्यता है कि क्षत्र भंग होता है, अर्थात राजा का परिवर्तन होता है. इसमें उथल-पुथल की स्थिति रहती है. वहीं नर वाहन अर्थात लोगों के कंधे पर प्रस्थान होगा. इसमें शुभ कार्य होते हैं. वृष्टि होती है, फसल अच्छा होता है एवं प्रजा सुखी संपन्न रहते हैं. कलश स्थापना की सामग्रीकलश स्थापना के लिए गंगा जल के साथ पंचरत्न (स्वर्ण, हीरा, पद्मराज, सप्तमृतिका, पंचपल्लव, सर्वोषधि, रक्तवस्त्र(लाल सालूक), नारियल के साथ ये सभी वस्तुएं वेद मंत्रोच्चार द्वारा मिट्टी के कलश में दिया जाना चाहिए. इसके बाद मां भगवती षोडषोपचार पूजन, दुर्गा के सभी अंगों वाहन, परिकर, नव चंडिका, नव दुर्गा, नवग्रह, दशदिक्पाल, षोडष मातृका आदि का उनके मंत्रों से आवाहन पंचोपचार, पुष्पांजलि एवं आरती सहित की जानी चाहिए. पंडित रमेश चंद्र झा ने बताया कि नवरात्र में हरेक दिन संकल्प के साथ पूजन होना चाहिए.दुर्गा पूजा शारदीय नवरात्र की तिथि 13 अक्तूबर : पहली पूजा चित्रा नक्षत्र में शैल पुत्री स्वरूप की 14 अक्तूबर : दूसरी पूजा स्वाति नक्षत्र में ब्रह्मचारिणी स्वरूप की 15 अक्तूबर : तीसरी पूजा विशाखा में चंद्रघंटा स्वरूप की 16 अक्तूबर : चतुर्थी पूजा अनुराधा नक्षत्र में कुष्मांडा स्वरूप की 17 अक्तूबर : पंचमी पूजा ज्येष्ठा नक्षत्र में स्कंदमाता स्वरूप की 18 अक्तूबर : षष्ठी पूजा मूल नक्षत्र में कात्यानी स्वरूप की 19 अक्तूबर : सप्तमी पूजा पूर्वा आषाढ़ नक्षत्र में काल रात्रि स्वरूप की 20 अक्तूबर : अष्टमी तिथि में पत्रिका प्रवेश महारात्रि जागरण, महानिशा पूजा, महाअष्टमी में बलि प्रदान. इसके अलावा अष्टमी पूजा उत्तरा आषाढ़ में महागौरी स्वरूप की, नवमी पूजा आषाढ़ नक्षत्र में सिद्धिदात्री स्वरूप की एवं दशमी को अपराजिता पूजन होगा.21 को महाअष्टमी एवं महानवमी व्रतज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा ने बताया कि शरद ऋतु के नवरात्र में हमेशा अष्टमी युक्त नवमी ग्राह्य है. इसलिए 21 अक्तूबर बुधवार को महाअष्टमी एवं महानवमी दोनों का व्रत संयुक्त रूप से मनाया जायेगा. मिथिला पंचांग के अनुसार नवरात्र अनुष्ठान के लिए किया जाने वाला हवन 21 अक्तूबर को प्रात: 8:52 बजे से 22 अक्तूबर के प्रात: 7:22 बजे तक नवमी तिथि रहने के कारण किया जा सकेगा. विजया दशमी 22 अक्तूबर गुरुवार को अनुदया क्षयवती दशमी तिथि है, इसलिए नवरात्र व्रत का पारण, देवी विसर्जन, अपराजिता पूजन 22 अक्तूबर को प्रात: 7:22 बजे के बाद किया जा सकेगा. पंडित रमेश चंद्र झा बताते हैं कि 21 अक्तूबर बुधवार को महाअष्टमी एवं नवमी दोनों का व्रत संयुक्त रूप से मनाया जायेगा. काशी पंचांग के अनुसार नवरात्र पूजन के अनुष्ठान के लिए किया जाने वाला हवन 21 अक्तूबर बुधवार को प्रात: 8:41 से लेकर 22 अक्तूबर गुरुवार को प्रात: 7:11 बजे तक किया जा सकता है. नवमी तिथि का प्रवेश 21 को प्रात: 8:41 बजे होगा. दशमी का प्रवेश 22 अक्तूबर गुरुवार को प्रात: 7:11 बजे होगा. 20 को होगी निशा पूजा पंडित रमेश चंद्र झा ने बताया कि सप्तमी सुबह 9:58 बजे तक है. इसके बाद अष्टमी का प्रवेश है. इस कारण मध्य रात्रि में निशा पूजा, नवपत्रिका पूजन, रात्रि जागरण आदि होगा. पंडित रमेश चंद्र झा ने बताया कि काशी पंचांग एवं मिथिला पंचांग में 10 से 12 मिनट का अंतर है. काशी पंचांग के अनुसार मां दुर्गा की सभी तिथि का पूजन पहले हैं, जबकि मिथिला पंचांग में बाद में.दो से 10 वर्ष की कुंवारी कन्याओं का पूजन उन्होंने बताया कि अष्टमी व नवमी को कुंवारी कन्याओं का पूजन होता है. इस दौरान पूजन के साथ-साथ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है. इसके लिए कन्याओं की संख्या नौ हो एवं इनकी उम्र दो से दस वर्ष हो. इसे उत्तम माना जाता है. जयंती धारण करने की विधिकलश स्थापना के समय जौ और गेहूं कलश के नीचे गंगा मिट्टी में रखा जाता है. जो कलश व प्रतिमा विसर्जन के समय तक अंकुरित हो जाता है. इसे ही जयंती कहा जाता है. इसे मंत्रोच्चार के साथ कान में धारण किया जाता है.जयंती धारण करने का मंत्रओम् जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी.दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वाधा नमोस्तुते . प्रत्येक पूजा के लिए अलग-अलग फूल का रंगपहली पूजा सफेद व लाल फूलदूसरी पूजा अपराजिता(नीला)तिसरी पूजा पीला व लालचौथी पूजा सफेदपंचमी पूजा नीला व लालछठी पूजा लाल व पीला सप्तमी पूजा सफेद व लालअष्टमी पूजा लाल, नीला व पीलानवमी पूजा लाल, नीला व पीलानोट:- पूजा के लिए संदर्भ ग्रंथ व पंडितों का मार्गदर्शन जरूरी होता है.
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