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घोषणाएं हैं, वादे और दावे हैं, पर अंगिका गुम

घोषणाएं हैं, वादे और दावे हैं, पर अंगिका गुमचुनावी मुद्दा-राजनेता से लेकर स्थानीय नेता तक की जुबान अंगिका भाषा का विकास नहीं बोलीवरीय संवाददाता, भागलपुरहै कैहनो चुनाव. जे चीज लेली इ अंग क्षेत्र जानलो जायछै. जे भाषा के बिना भागलपुर अधूरा होय जाये, होकरे चर्चा नै. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय परिसर में कुछ लोग जमा थे […]

घोषणाएं हैं, वादे और दावे हैं, पर अंगिका गुमचुनावी मुद्दा-राजनेता से लेकर स्थानीय नेता तक की जुबान अंगिका भाषा का विकास नहीं बोलीवरीय संवाददाता, भागलपुरहै कैहनो चुनाव. जे चीज लेली इ अंग क्षेत्र जानलो जायछै. जे भाषा के बिना भागलपुर अधूरा होय जाये, होकरे चर्चा नै. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय परिसर में कुछ लोग जमा थे और उनमें एक व्यक्ति उक्त बातें बोल रहा था. दरअसल वे इस बात से दुखी थे कि हर क्षेत्र में विकास की बात नेता करते तो हैं, लेकिन अंगिका भाषा के विकास और इसके माध्यम से आमलोगों के विकास की बात नहीं होती है. आज अंगिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करने व कराने के बाद भी रोजगार के लिए छात्र व शिक्षक भी भविष्य में कोई उम्मीद नहीं देख रहे हैं. तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका के स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाई होती है. मंच से लेकर टोले-मोहल्ले तक मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे नेता इस विभाग के विकास की बात नहीं करते. भोजपुरी भाषा को यहां स्थापित करने का प्रयास तक नहीं किया गया है. अंगिका भाषा में शिक्षा प्राप्त करने पर रोजगार मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही. इस भाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाले छात्र-छात्राएं रोजगार के लिए भटक रहे हैं. अंगिका विभाग में 20, 25 से अधिक छात्र-छात्राएं नामांकन नहीं कराते. विभाग के शिक्षकों को नामांकन के लिए छात्र-छात्राओं की काउंसेलिंग करनी पड़ती है, ताकि विभाग का अस्तित्व बचा रहे.10 जून 2002 को स्थापित इस विभाग में पीजी की पढ़ाई होती है. स्नातक स्तर पर अंगिका की पढ़ाई इन 13 वर्षों में शुरू नहीं हो सकी. इसके लिए मांग खूब की गयी, लेकिन आगे कोई पहल नहीं हो सकी. स्नातकोत्तर अंगिका विभाग अपने पुस्तकालय से अपने ही छात्रों को पढ़ने के लिए पुस्तकें नहीं दे पाता. शिक्षकों का कहना है कि पुस्तकालय में कई पुस्तकें नहीं हैं. पुस्तकें बाजार में भी उपलब्ध नहीं है. महज दो कमरे में यह विभाग चल रहा है, वह भी हिंदी विभाग के भवन में. अंगिका अकादमी खोली गयी, लेकिन अकादमी की क्या योजना या रणनीति है कहीं नहीं दिख रही है. हमारे विभाग में तृतीय वर्गीय कर्मचारी तक नहीं है. संस्थाओं को बुनियादी सुविधा मिले. कॉलेजों में भी अंगिका की पढ़ाई शुरू हो. अंगिका से पढ़े छात्रों को नेट में बैठने की अनुमति हो. इसके बिना छात्र लेक्चरर नहीं बन सकते. स्कूल में बहाली का मौका मिले. ऐसा नहीं होने से ही छात्र अंगिका की तरफ आकर्षित नहीं होते.डॉ बहादुर मिश्र, शिक्षक, पीजी अंगिका विभाग, टीएमबीयूअंगिका अकादमी बनने से अंगिका को बहुत फायदा नहीं मिल रहा है. असली लड़ाई अंगिका को अष्टम अनुसूची में शामिल करने की है. इससे केंद्र सरकार की नौकरियां मिलेंगी. राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल जायेगी. अभी इसे केवल बिहार जान रहा है. क्यों नहीं नेता इसके लिए आवाज उठा रहे हैं. वे इसलिए नहीं उठाना चाहते कि कहीं अन्य भाषा वाले साथ न छोड़ दे. वोट के लिए यह कुछ भी कर सकते हैं. डॉ अमरेंद्र, अंगिका साहित्यकार

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