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आबै वाला परदेसी के इंतजार छै उम्मीदवारो के

आबै वाला परदेसी के इंतजार छै उम्मीदवारो के तसवीर: आशुतोष प्रत्याशी कर रहे मतदान तिथि से एक दिन पहले तक आने की अपील 10 अक्तूबर तक ट्रेन के स्लीपर व जनरल बोगी में खचाखच भीड़ वरीय संवाददाता, भागलपुर दशहरा से लेकर तमाम पर्वों पर आनेवाले लोगों का इंतजार उनके घरवाले ही नहीं कर रहे, बल्कि […]

आबै वाला परदेसी के इंतजार छै उम्मीदवारो के तसवीर: आशुतोष प्रत्याशी कर रहे मतदान तिथि से एक दिन पहले तक आने की अपील 10 अक्तूबर तक ट्रेन के स्लीपर व जनरल बोगी में खचाखच भीड़ वरीय संवाददाता, भागलपुर दशहरा से लेकर तमाम पर्वों पर आनेवाले लोगों का इंतजार उनके घरवाले ही नहीं कर रहे, बल्कि विस सीट से खड़ा होनेवाले प्रत्याशी भी कर रहे हैं. अपने जनसंपर्क में भी वह अपने वोटर से बातचीत में उनके रिश्तेदारों के आने की तिथि की भी पड़ताल करते नजर आ रहे हैं. प्रत्याशियों की नजर परदेसी के चंद वोट पर भी है. प्रत्येक विस सीट के औसतन 13 हजार वोटर भी अहम श्रम विभाग के पास तो कोई वाजिब आंकड़ा नहीं है, मगर उनके आकलन के मुताबिक भागलपुर जिले से हर साल बाहर कमाने के लिए जाने वालों की संख्या 50 हजार से लाख तक हो सकती है. कोसी बेल्ट को शामिल करने पर यह संख्या लगभग तीन लाख हो जाती है. रोजगार से जुड़ी निजी एजेंसियों की मानें तो बाहर कमाने वाले लोग छह लाख से अधिक पार कर गये होंगे. आकलन बताते हैं कि एक विधानसभा पर यह संख्या औसतन 13 हजार से भी अधिक हो सकती है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में इन मतदाताओं के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है. विभाग के वाजिब आंकड़ा नहीं होने में पेंचवर्ष 2011 में समाज कल्याण विभाग ने श्रम विभाग के माध्यम से प्रत्येक ग्राम पंचायत के मुखिया को अपने क्षेत्र से बाहर जानेवाले लोगों का रजिस्टर तैयार करने का निर्देश दिया था, मगर न तो वो रजिस्टर तैयार हुआ और न ही पंचायत स्तर से श्रम विभाग को आंकड़ा भेजा जा सका. पांच-दस दिनो र कमाय भले ही चल्लो जाय, हेकरो गम नै छै दशहरा व मुहर्रम के बाद दीवाली और फिर छठ को देखते हुए लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है. बहुत लोग दशहरा के बाद आते हैं मगर इस बार इसलिए भी पहले आ रहे हैं कि वह चुनाव में मतदान कर सकें. दिल्ली सहित मुंबई, गुजरात आदि औद्योगिक जगहों से भागलपुर आनेवाली ट्रेन में 10 अक्तूबर तक वेटिंग भी नहीं दिख रही है. जबकि ट्रेनों के जनरल बॉगी का हाल और बदतर है. ट्रेन से उतरने वाले यात्रियों से जब पूछा गया कि इस बार पहले आ गये तो उन्होंने जवाब दिया कि पर्व पर आना ही था, सोचा पांच-दस दिनों की दिहाड़ी जाये मगर वह अपने मनपसंद नेता को वोट देने पहले आ जायें.

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