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वोट का तंत्र किसी को नहीं छोड़ता, उसकी अपनी पॉलिटिक्स है
बिहार में चुनाव हो और झारखंड में हलचल न हो, यह संभव नहीं. झारखंड भी तो कभी बिहार का हिस्सा था. वहां बिहार की अच्छी-खासी आबादी रहती है. झारखंड की राजधानी रांची से कई ट्रेन बिहार के छोटे-बड़े शहर तक पहुंचती है. दुर्गापूजा और बिहार चुनाव दोनों एक साथ. दोनों में गजब का उत्सवी रंग. […]
बिहार में चुनाव हो और झारखंड में हलचल न हो, यह संभव नहीं. झारखंड भी तो कभी बिहार का हिस्सा था. वहां बिहार की अच्छी-खासी आबादी रहती है. झारखंड की राजधानी रांची से कई ट्रेन बिहार के छोटे-बड़े शहर तक पहुंचती है. दुर्गापूजा और बिहार चुनाव दोनों एक साथ. दोनों में गजब का उत्सवी रंग. सबके पास बात और कुछ नया कहने व करने का बहाना.
रांची से भागलपुर वनाचंल एक्सप्रेस से आना हुआ. रांची रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर एक. समय 2.45 बजे. रांची में सेना की बहाली होने के कारण पूरा प्लेटफॉर्म युवाओं से भरा था. इसी बीच वनांचल एक्सप्रेस का आगमन और बोगी नंबर पांच में मेरी यात्र. ट्रेन में सवार होते ही कुछ ही देर बाद चुनावी चर्चा जोर पकड़ने लगी. चर्चा के बिंदु में था- विकास और बयान. इसके स्नेत थे मीडिया की खबरें. कुछ उत्साही लोग चुनावी गणित में जोड़-तोड़ की देर तक चर्चा करते रहे. युवाओं के साथ बातचीत का दौर शुरू हुआ, तो वह भागलपुर ही आकर रुका. सभी लोग बिहार चुनाव की रणनीति पर चर्चा कर रहे थे.
कहलगांव के रहने वाले मनीष कुमार का तर्क था कि इस बार बिहार में किसी भी पार्टी की बहुमत वाली सरकार नहीं बनेगी. कहलगांव के रहने वाले मनीष झारखंड में रोजगार करते हैं. वह कहते हैं कि काश, बिहार में रोजगार होता, तो वह झारखंड नहीं आते. अब तक चुनाव में सभी नेताओं ने बिहार को ठगा है. विकास की बात करते हैं, लेकिन जाति से ऊपर नहीं उठते.
इस बार विधानसभा चुनाव में महागंठबंधन और एनडीए में कांटे की टक्कर है. कोई भी उम्मीदवार 10,000 वोट से ज्यादा के माजिर्न से नहीं जीत सकता. चंदन कुमार भागलपुर के नाथनगर के रहने वाले हैं. वह कहते हैं कि नाथनगर कभी सिल्क के कारोबार के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन अभी की स्थिति एकदम उलट है. सिल्क कारोबार पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. न सरकार ने ध्यान दिया और न ही जनप्रतिनिधि ने. इस बार नाथनगर विधानसभा में भी विकट स्थिति है. किस पार्टी का उम्मीदवार जीत सकेगा, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
ट्रेन अपने रफ्तार से चल रही थी. कुछ लोग अलसा रहे थे, तो कुछ चाय की चुस्कियों के बीच चुनावी रंग में अभी तक रंगे हुए थे. कुछ बोगी से उतर रहे थे, तो कुछ नये यात्री बोगी में सवार हो रहे थे. मुङो लग रहा था कि हमारे लोकतंत्र में भी कई यात्री ऐसे ही वोट की ट्रेन में सवार होते हैं.
कुछ चुप रहते हैं, कुछ चेहरे पहचान में बने रहते हैं. उनकी सीट आरक्षित ही रहती है. कुछ तो ट्रेन के कुछ दूर जाने पर ही विस्मृत हो जाते हैं. वोट का तंत्र किसी को नहीं छोड़ता! उसकी अपनी पॉलिटिक्स है! इस कड़ी में कई बाते मन में उमड़ती-घुमड़ती है, लेकिन सबसे सब बाते कह भी तो नहीं सकते. हम लोगों की बातें सुनते हैं. उस पर टिप्पणी ज्यादा नहीं करते. केवल हां-ना से काम चलाते रहते हैं.
भागलपुर के टीएनबी लॉ कॉलेज के छात्र श्वेत कमल कहते हैं कि बिहार में चुनाव जाति आधारित होती है. पूरा समाज जाति पर आधारित है. बिहार में आज तक चुनाव का मुद्दा विकास आधारित नहीं रहा. इस बार भी सभी राजनीतिक दलों ने जाति आधारित प्रत्याशी ही मैदान में उतारा है. कई जगहों पर तो खानदान की परंपरा कायम है. सफर कर रही अनामिका रॉय कहती हैं कि वह बिहपुर की रहने वाली हैं. बिहपुर विधानसभा में भी कांटे की टक्कर है.
लोग अपने उम्मीदवार से क्षेत्र का विकास चाहते हैं. लेकिन ऐसा प्रत्याशी नहीं होना दुखद है. क्षेत्र का विकास हो, इसी आशा से लोग वोट देते हैं. लेकिन आम मतदाता ठगे जा रहे हैं. अनामिका कहती हैं कि इस बार बिहार में विकास मुद्दा होना चाहिए. लेकिन इस बार भी विकास मुद्दा गौण है.ट्रेन भागलपुर पहुंचने वाली है. मैं अपने सामान समेटने लगता हूं. मुङो लगता है कि यह ट्रेन ऐसे ही बातों से आगे भी गुलजार रहेगी.
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